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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

अगीत--जारी

२- लयबद्ध सप्तपदी या षट्पदीअगीत --
नर ने भुला दिया प्रभु , नर से ,
ममता बंधन नेह समर्पण ,
मानव का दुश्मन बन बैठा ,
अनियंत्रित वह अति- अभियंत्रण ।
अतिसुख अभिलाषा हित जिसको ,
स्वयं उसी ने किया सृजन था। --सोलह मात्रा, छः पंक्तियाँ सहित , सुर व लयबद्ध अगीत छंद ।
३-नव-अगीत --तीन से पाँच पंक्तियाँ ,मात्रा ,तुकांत बंधन नहीं ।
दहेज़ के अजगर ने,
कितने जीवन लीले ,
समाज बन संपेरा ,
अब तो इसको कीले।
४-लयबद्ध त्रिपदा अगीत --तीन पंक्तियाँ ,सोलह मात्रा, लय व सुर सहित अगीत छंद ---
चमचों के मज़े देख हमने ,
आस्था को किनारे कर दिया,
दिया क्यों जलाएं हमीं भला।

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