ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 31 जनवरी 2009

ड़ाग एवं इंडिया और मिलोनियर

डागतो हम तब भी थे और अब भी हैं
फख्र है अब मिलते हैं इनाम भी ।
सोचते हैं श्याम आख़िर क्या करें ?
गर्व अथवा शर्म हम क्या -क्या करें ।
उसने कहा हम दोस्त अच्छे आपके ,
कुछ न करना हमसे पूछे बिन सनम ।
दोस्ती या दुश्मनी की आपने ?
गर्व अथवा शर्म हम क्या क्या करें ।

शनिवार, 24 जनवरी 2009

भागम भाग ज़िंदगी और युवा --पर डॉ पल्लवी भटनागर का आलेख हिन्दुस्तान दैनिक -२३-०१-०९

क्या खूब तर्कसंगत एवं मनोवेग्यानिक विवेचन किया गया है । सम सामयिक एवं अत्यावश्यक है सोचना इस पर कि हम तथा समाज व मानवता कहाँ भागी जारही है तथा क्यों ,किसलिए ?
"इस दौरे भागम- भाग मैं ,सिजदे मैं प्यार के ,
कुछ पल झुकें तो इससे बढ़ कर ज़िंदगी नहीं ।" --श्याम

पञ्च मकार -हिन्दुस्तान -२४-०१-०९

खुशवंत सिंह लिखते हैं -शास्त्रों मैं पञ्च मकार --काम, क्रोध, लोभ , मोह ,अंहकार ---ये सब 'म' से कहाँ प्रारंभ होते हैं , फ़िर मकार कैसे ? वाम मार्गी लोगों के पञ्च मकार तो पढ़े व सुने हैं , मांस ,मैथुन ,मत्स्य ,मध्य ,मुद्रा ---
उपरोक्त कहाँ लिखे हैं ,कोई बताएगा?

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

नारी विमर्श --नारी -पुरूष विमर्श

स्त्री पुरूष मित्रता को सामान्यत : जन-मन सदैव काम भावना से युक्त ही मानता व देखता है। परन्तु सदैव ऐसा ही हो , यह आवश्यक नहीं है। अनासक्त भाव मय निष्कपट एवं बिना काम भावना के स्त्री- पुरूष मैत्री यद्यपि आकास -कुसुम के समान ही है, पर है। अब साहित्यकार कहने लगे हैं किअब नारी- पुरूष विमर्श की बात होनी चाहिए । पर सत्य तो यह है कि नारी- पुरूष कब पृथक- पृथक थे ,और कभी पृथक- पृथक नहीं सोचे ,समझे व लिखे जा सकते । जहाँ नारी है ,वहाँ पुरूष अवश्य है । एक दूसरे से अन्यथा किसी का कोई अस्तित्व नहीं है। अतः बात नारी- पुरूष विमर्श की ही होनी चाहिए ।
डॉ श्याम गुप्त

बुधवार, 21 जनवरी 2009

कुछ नव अगीत

दर्पण मैं अपनी छवि ,
देती है, आनंदानुभूति ,
मन दर्पण मैं झांकें ,
तो होगी ,
सच्ची अनुभूति।

शंकित हैं कलियाँ
अंगडाई लें कैसे ;
डरतीं हैं ,
देख न लें ,
गुलशन के सरमायेदार ।

स्वर्ण -मृग के पीछे ,
दौड़ रहे हैं ,आज भी राम;
आस्था रूपी सीता का ,
होरहा है हरण ,
आज भी ,अविराम ।

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

सुहाना जीवन. --

छत पर, वरांडे मैं,
या ,जीने की ऊपर वाली सीढीपर,
खेलते हुए ,या लड्ते हुए ,
तुमने लिया था सदैव ,
मेरा ही पक्ष ।
मेरे न खेलने पर,
तुम्हारा भी वाक् -आउट ,
मेरे झगढ़नेपर,
पीट देने पर भी -
तुम्हारा मुस्कुराना ;
एक दूसरे से नाराज़ होने पर ,
बार -बार मनाना,
जीवन कितना था सुहाना ;
हे सखि ! जीवन कितना था सुहाना ।

चौथा स्तम्भ हिन्दुस्तान देनिक १९.१.२००९

चौथा स्तम्भ --बंदिशेंकभी प्रगति नहीं लातीं।
--वास्तव मैं तो बंदिशें ही प्रगति के द्वार खोलतीं हैं। सोचिये यदि गणित की, विज्ञान की, संगीत की ,
यातायात की तथा समाज की बंदिशें न हों तो उन्नति केसे होगी? समाज का डर न हो तो हर व्यक्ति ही अपनी- अपनी ढफली गायेगा , नंगा नाचेगा , २प्लस २ =५ कहेगा ,सरगम को मरगम कहेगा ???

विश्व मैं वह कौन सीमाहीन है ,

हो न जिसका छोर सीमा मैं बंधा ?

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

स्ट्रीट डॉग मिलोनीअर-गोल्डन ग्लोब और हिन्दुस्तान की गरीबी -झोपड़पट्टी

क्या बात है अंगरेजी कथा ,उपन्यास ,फ़िल्म -- हिन्दुस्तान की गरीबी का चित्रण --अवार्ड्स तथा गोल्डन ग्लोबस जीतने मैं जबरदस्त सम्बन्ध है । आसान फार्मूला है। देश की बुराई करो और इनाम जीतो ,नाम पाओं

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

अपन- तुपन --कविता काव्य- दूत से.

मेरे रूठकर चले आनेपर
पीछे -पीछे आकर ,
'चलो अपन- तुपन खेलेंगे '
माँ के सामने ,यह कहकर
हाथ पकड़कर ,
आंखों मैं आंसू भरकर
तुम मना ही लेतीं थी , मुझे
इस अमोघ अस्त्र से ,
बार- बार ,हर बार
सारा क्रोध ,गिले- शिकवे
काफूर होजाते थे ,
और बाहों मैं बाहें डाले ,
फ़िर चलदेते थे ,खेलने
हम-तुम ,
अपन- तुपन।

Fault lies in me --poem

Today in the society there,
I found a chaos everywhere;
Cruelty, injustice, fraud & greed,
Bluff, intolerance in our callous breed.

Reasons of this inflammed state,
Remedy & cure or perilous fate;
With reasonability and depth, I see,
I found the fault lies in me.

I file the contract with beautiful lies,
And services of low quqlity I supply;
To stand in a queue, why I feel shy,
To get work done ,backdoor tricks I try.

Crime corruption loots and thefts,
I turn my back on wicked acts;
Justice, sacrifice, truthfuldeeds,
Petriotism,loyalty,are obsolete.

Expertised in politics in every field,
For personal benefits undue pessures I yield;
Why the cycle of bribery I further extend,
I receive single way & pay at many ends.

People may keep fighting and quarrelling everyday,
Infighting and fault finding,not help anyway,
Neither you are at fault nor SHYAM nor he,
I pray hang me, fault lies in Me.

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

PLASTIKASUR A POEM--(Plastic ,The Demon of today)

The priest read the stars and wondered,
"Time of reincarnation of god",he thundered.
My young daughter,inqusitive andbold,
Smiled in amazement &thus she told,
"Since our childhood,we have heared,
When demon is born,in this world,
His powers are fortfied by the boons of Tridev-
Either Brahma or Vishnu or great bestower Mahadev.
There is chaos on the earth& everywhere,
The god incarnate to make things fair.
Nowadays on earth no demon dwell,
Why incarnation of god do stars foretell

The priest grumbled & closed his book,
Rearrenged his Uttariya with a sarcastic look;
"True my child ! ccever and bold.
"The Asur is born" , the priest thus told;
Of extreme lust of worldly yields,
Of people at large frpm every field.
Breath still there many dreaded Asurs,
Most seen high headed,Plasticasur.

The plastic the pulse of our civilization,
Have brought our life a colourfull passion,
His magical clutches in an auspicious way,
Engulf the world in pollution like spiders pray.
That icon of luxury & fulfillment ,
Is today a cancer of environment.

Dr Shyam Gupta

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

memories --poem

Through the campus of staff college
Beneath the trees, I pass
To reach in time
For management class.

The memories of college
Struck my mind
Like a revolution-
Of cyclonic wind.

The friends the gossips,
The ciass-room heats,
Sweet sour memories
Of functions and treats.

The memories of-
Sports and fetes,
Of unsolved issues,
And sweet sour dates.

What memoires are?
When I think apart,
These are books and magezines
In the library of heart.

We open them up,
In the secret hours lane,
To live those forgotten-
Moments again.

Dr. Shyam Gupta.

शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

नव वर्ष पर नव अगीत कवितायें.

बंद हैं हर गली
रास्ते हैं गुम
लगीं हैं आतंक की अर्गलायें;
द्वार पर ,
किस तरह ज़िंदगी
बाहर आए
चह्चहाये।

कांटे ही कांटे हैं ,
गुलशन मैं
पुष्प हैं गंध हीन
प्रेम की बयार चले ,तो-
बहे सुगंध
सुरभित हों पुष्प ।

फेंके हुए दोनों पर,
झपट पड़े दोनों
कुत्ता और आदमी
जीत गया श्वान
आदमी हैरान ।