ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 15 मार्च 2009

स्कूल बन रहे हैं अन्धकार का केन्द्र

आदरणीय जगदीश गांधी जी , विश्व एकता सत्संग के मंच पर कहरहे हैं कि स्कूल धन कमाने के लिए नहीं खोलने चाहिए ,शिक्षा एसी हो जो हमारी केवल विश्लेषणकरने की क्षमता बढाये , आत्मविश्वास का संवर्धन करे ; इसे कहते हैं कथनी व करनी का अन्तर --यदि आप सीएम् एस स्कूल मैं पदार्पण करेंगे तो तुंरत ही पता चल जायेगा कि आप किसी अंगरेजी स्कूल मैं आगये हैं , चहुँ ओर सर्वत्र ,पत्ते- पत्ते , इंच -इंच पर अंगरेजी मैं ही सब कुछ लिखा मिलेगा , गोया कि भारतीय बच्चे अंगरेजी मैं पढ़ कर ही सब कुछ जान सकते हैं, हिन्दी पढने योग्य भाषा ही नहीं है। ,वे सोचें व विश्लेषण भी अंगरेजी चश्मे से ही करें , अपना स्वयम्भूत या अपनी भाषा मैं अपनी संस्कृति भी न समझें । आज सारी दोष पूर्ण शिक्षा इसी नीति का परिणाम है --गांधीजी! ; मोहनदास गांधी ने कब चाहा था कि स्वतंत्र भारत मैं शिक्षा का माध्यम अंगरेजी हो ?---अब तो चेतिए ।
यदि आज के शिक्षाविद् (तथाकथित) , शास्त्रग्य , राजनीतिग्य स्वयं कमाने व कमाकर उच्च स्थान पर पहुँचने का लोभ त्यागदें व स्वयं उसी राह पर चलकरअच्छी स्थिति पर आकर , 'पर उपदेश कुशलता 'की बजाय
स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करें तो -----? गंभीरता से विचार करें ।

कोई टिप्पणी नहीं: