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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

चुनिए उन्हें जो --

चुनिए उन्हें जो कुछ नया कर दिखाएँ ,,--जो नौकरी पेशा लोगों के हितों की रक्षा करें ,,--जो फिरका परस्त ताकतों को मात देन ,,--युवाओं को काम दिलाएं ,,--खेल खिलाड़ियों की इज्ज़त करें ,,--आदि ।
-------ये सारे सिर्फ़ नारे ही हैं , बृक्षकी पत्तियाँ चुनना है ,,--मूल ,जड़ देखना ,समझना ,जानना चाहिए ,,--
===== चुनिए उन्हें जो अच्छे मानव हों , अच्छे मानव के गुण शास्त्रों मैं देखिये , जानिए समझिये और अपनाइए ,समझाइये ,,--चुनिए।। ----इति-शुभम ......

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

अगीत विधा

कविता जगत मैं अगीत विधा का आजकल काफ़ी प्रचलन है .। यह विधा १९६६ से डा रन्ग नाथ मिश्र सत्य द्वारा प्रच्लित की गयी है। अगीत एक छोटा अतुकान्त गीत -रचना है, ५ से ८ पन्क्तियों की। जो निराला जी के लंबे अतुकांत गीतों से भिन्न है । यथा-

चोरों ने सन्गठन बनाये ,
चालें चल हरिश्चन्द्र हटाये,
सत्ता मैं आये ,इठलाये,
मिल कर चोर- चोर चिल्लाये,
जनता सिर धुनकर पछताये।
अब तक इस विधा की बहुत सी काव्य कृतियाँ प्रकाशित होचुकीं हैं। अब श्री जगत नारायन पांडे व
डा श्याम गुप्त द्वारा अगीत महाकाव्य,खन्ड काव्य लिखे गये हैं।--
महाकाव्य--
-सौमित्र गुणाकर ( श्री ज.ना. पान्डे--श्री लक्षमण जी के चरित्र चित्रण पर)
- सृष्टि (ईषत इच्छा या बिगबैन्ग-एक अनुत्तरित उत्तर)-डा श्याम गुप्त
खन्ड काव्य-
-मोह और पश्चाताप( ज.ना. पान्डे- राम कथा )
-शूर्पनखा (डा श्याम गुप्त)
आज इस विधा मैं सात प्रकार के छन्द प्रयोग होरहे हैं--
१.अगीत छन्द -अतुकान्त ,५ से ८ पन्क्तियां
२. लयबद्ध अगीत--अतुकान्त,५ से १० पन्क्तियां,लय व गति युक्त
३ .गतिबद्ध सप्त पदी अगीत -सात पन्क्तियां, अतुकान्त ,गतिमयता
४ .लयबद्ध षट्पदी अगीत-छ्ह पन्क्तियां,१६ मात्रा प्रत्येक मैं निश्चित ,लय्बद्धता
५.नव अगीत -अतुकान्त ,३ से ५ तक पन्क्तियां,
६ .त्रिपदा अगीत --तीन पन्क्तियां,१६ मात्रा निश्चित ,लय,गति ,तुकान्त बन्धन नहीं
७,त्रिपदा अगीत गज़ल --त्रिपदा अगीत की मालिका,प्रथम छन्द की तीनों पन्क्तियों
मैं वही अन्त्यानुप्रास,अन्य मैंअन्तिम पन्क्ति मैंवही शब्द आए ।
ageet के udaaharan --
इधर udhar जाने से kyaa hogaa ,
मोड मोड़ पर जमी हुई हैं,
परेशानियां,
शब्द शब्द अर्थ रहित
कह रहीं कहानियां;
मन को बह्यलाने से क्या होगा ।--डा रन्ग नाथ मिश्र सत्य

२.लय बद्ध अगीत -
तुम जो सदा कहा करतीं थीं,
मीत सदा मेरे बन रहना ,
तुमने ही मुख फ़ेर लिया क्यों,
मैंनें तो कुछ नहीं कहा था।
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको।
मीत शब्द को नहीं पढा था ,
तुमने मन के शब्द कोश में। --डा श्याम गुप्त (प्रेम काव्य से )

३,गतिमय सप्त पदी अगीत छन्द--
छुब्द होरहा है हर मानव ,
पनप रहा है वीर निरन्तर,
राम और शिव के अभाव में,
विकल हो रहीं मर्यादायें;
पीडाएं हर सकूं जगत की,
ग्यान मुझे दो प्रभु प्रणयन का। --जगत नारायण पान्डे (मोह और पश्चाताप से)

४,लय बद्ध षट पदी अगीत-
परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वन्द्व भाव कण-कण मएं उभरा ।
हल चल से गति मिली कणों को,
अपः तत्व में साम्य जगत के ।
गति से आहत नाद बने फ़िर ,
शब्द,वायु,ऊर्जा,जल और मन ॥ -डा. श्याम गुप्त (स्रिष्टि-महा काव्य से )

५,नव-अगीत छन्द--
बेडियां तोडो,
ग्यान दीप जलाओ,
नारी! अब -
तुम्ही राह दिखाओ;
समाज को जोडो. । -सुषमा गुप्ता

६.त्रिपदा अगीत छन्द-
प्यार बना ही रहे हमेशा ,
एसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी का । - डा श्यम गुप्त

७, त्रिपदा अगीत हज़ल-
बात करें
भग्न अतीत की न बात करें,
व्यर्थ बात की क्या बात करें;
अब नवोन्मेष की बात करें।

यदि महलों मैं जीवन हंसता,
झोंपडियों में जीवन पलता;
क्या ऊंच नीच की बात करें।

शीश झुकायें क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमायें;
कुछ आदर्शों की बात करें ।

शास्त्र ,बडे बूडे ओ बालक,
है सम्मान देना पाना तो;
मत श्याम व्यन्ग्य की बात करें ।--डा श्याम गुप्त

कुछ मुख्य कवियों के नाम --१.
१, डा ऊषा गुप्ता -प्रोफ़ेसर हिन्दी विभाग ,लखनऊ वि वि , प्रेरक ।
२ डा रंग नाथ मिश्र सत्य --संस्थापक व प्रवर्तक
३ श्री जगत नारायण पांडे -प्रथम अगीत महाकाव्यव खंड काव्य के रचयिता
४ डा श्याम गुप्ता --मूर्त संसार व अमूर्त ईश्वर पर प्रथम महाकाव्य एवं खंड काव्य रचयिता एवं अगीत के विभिन्न छंदों के प्रवर्तक
५ सोहन लाल सुबुद्ध
६ पार्थो सेन -----अन्य देश ,विदेश मैं फैले हुए बहुत से कविगण .......

एक नज़्म --प्रीति रस

प्रेम रस वो पिलादे ऐ साकी ,
रह न जाए कोई प्यास बाकी ।

कल रहें ना रहें क्या पता ,
कब न जाने हो ' कल ' क्या पता।
जाने क्या लेके आए सहर ,
है अभी तो बहुत रात बाकी।

कल कहाँ होंगे जीवन के मेले ,
जाने क्या क्या न होंगे झमेले।
ऐसी तन्हा नहीं रात होगी ,
प्यार की ये घड़ी फ़िर न होगी।

यूँ ही जाने न दे रात बाकी ,
है अभी कुछ मुलाक़ात बाकी।

हाले दिल कुछ कहें कुछ सुनाएँ ,
रंग जीवन के भी गुनुगुनाएं ।
रागिनी- राग के स्वर सजें ,
राज तन मन के पूछें बताएं।

रह न जाए कोई साध बाकी ,
ऐसी हाला पिलादे ऐ साकी ।

ऐसी हाला भरा एक प्याला ,
प्रीति रस जिसमें छक कर हो डाला ।
भक्ति के भाव रस का समर्पण ,
संग मनुहार चितवन के ढाला।

हस्ती मिट जाय मेरी ओ तेरी ,
नाम प्रभु का ही रह जाय बाकी।

प्रेम प्याला पिलादे ओ साकी ,
रह न जाए कोई प्यास बाकी॥
--डा श्याम गुप्त

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

शब्द शक्ति --शब्दों के तथ्यात्मक अर्थ --कविता के सूक्ष्म तथ्य

शब्द की शक्ति अनंत व रहस्यात्मक भी है। चाहे गद्य हो या पद्य -किसी भी शब्द के विभिन्न रूप व ,पर्याय वाची शब्दों के कभी समान अर्थ नहीं होते। (जैसा सामान्यतः समझा जाता है। ) यथा--
" प्रभु ने ये संसार कैसा सजाया."---एक कविता की पंक्ति है । --यहाँ सजाया =रचाया =बनाया ,कुछ भी लिखा जा सकता है । मात्रा ,तुक व लयएवं सामान्य अर्थ मैं कोई अन्तर नहीं, कवितांश के पाठ मैं भी कोई अन्तर नहीं पढता । परन्तु काव्य व कथन की गूढता तथा अर्थ्वात्तात्मक दृष्टि से ,भाव संप्रेषण दृष्टि से देखें तो --
1---बनाया =भौतिक बस्तु के कृतित्व का बोध देता है ,स्वयं अपने ही हाथों से कृतित्व का बोध , कठोर वर्ण है ,।
२.--रचाया =समस्त सृजन का बोध देता है ,विचार से लेकर कृतित्व तक , आवश्यक नहीं की कृतिकार ने स्वयं ही बनाया हो। किसी अन्य को बोध देकर भी बनवाया हो सकता है।
३--सजाया =भौतिक संरचना की बजाय भाव -सरंचना का बोध देता है। ,बनाने (या स्वयं न बनाने -रचाने ) की बजाय या साथ-साथ , आगे नीति ,नियम ,व्यवहार ,आचरण ,साज- सज्जा आदि के साथ बनाने , रचाने ,सजाने की कृति व शब्दों की सम्पूर्णता का बोध देता है।
प्रभु के लिए यद्यपि तीनों का प्रयोग उचित है । परन्तु ब्रह्मा ,देवताओं ,मानव के संसार के सन्दर्भ मैं बनाया अधिक उचित होगा। सिर्फ़ ब्रह्मा के लिए रचाया भी। अन्य संसारी कृतियों के लिए विशिष्ट सन्दर्भ मैं तीनों शब्द यथा स्थान प्रयोग होने चाहिए । उदाहरित कविता मैं --सजाया-- शव्द अधिक उचित प्रतीत होता है।
एक अन्य शब्द को लें --क्षण एवं पल --दौनों समानार्थी हैं । परन्तु --क्षण =बस्तु परक ,भौतिक ,वास्तविक समय प्रदर्शक तथा ,कठोर वर्ण है । tathaa पल =भावात्मक , स्वप्निल व सौम्य -कोमल वर्ण है । इसीलिये प्रायः पल- छिन शब्द प्रयोग किया जाता है ,सुंदर समय के लिए।

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

तेरी ग़ज़ल

तेरे दिन ओ रात ग़ज़ल ,
तेरी तो हर बात ग़ज़ल।

प्रेम प्रीति की रीति ग़ज़ल,
मुलाक़ात की बात ग़ज़ल।

तू हंसदे होजाय ग़ज़ल,
तेरा तो हर अश्क ग़ज़ल ।

तेरी शह की बात ग़ज़ल,
मुझको तेरी मात ग़ज़ल।

तेरे डर का फूल ग़ज़ल,
पात -पात हर पात ग़ज़ल।

मेरे यदि नग्मात ग़ज़ल,
तेरा हर अल्फात ग़ज़ल।

हंस देखकर शरमाये ,
चाल तेरी क्या बात ग़ज़ल।

मेरी बात पे मुस्काना ,
तेरे ये ज़ज्बात ग़ज़ल ।

तेरी lat का खुल जाना ,
तेरा हर अंदाज़ ग़ज़ल।

तेरी ग़ज़लों पर मरते ,
कैसी सुंदर घात ग़ज़ल।

श्याम सुहानी ग़ज़लों पर
तुझको देती दाद ग़ज़ल॥
--डा श्याम गुप्त

रविवार, 26 अप्रैल 2009

इन्द्र धनुष


प्यार का जो खिला है इन्द्रधनुष ,
जो है कायनात पर सारी छाया हुआ ।
प्यार के गहरे सागर मैं दो छोर पर ,
डूब कर मेरे मन मैं समाया हुआ।
इसके झूले में , मैं झूलती हूँ मगन ,
सुख से लवरेज है मेरा मन मेरा तन।
--इन्द्र धनुष उपन्यास से

शनिवार, 25 अप्रैल 2009






वन्दना -राधा कृष्ण की .

राधे श्री मन मैं बसें ,राधा मन घनश्याम ,

राधा श्याम ह्रदय बसें,हर्षित मन हों श्याम ।



लीला राधा- श्याम की ,श्याम सके क्या जान ,

जो लीला को जान ले श्याम रहे न श्याम।



मेरे उर मैं बस रहो ,राधा संग घनश्याम ,

प्रेम बांसुरी उर बजे,धन्य- धन्य हो श्याम।



ललित त्रिभंगी रूप में राधा संग गोपाल ,

निरखि- निरखि सो भव्यता,होते श्याम निहाल।



अमर प्रेम के रंग का ,पाना चाहें ज्ञान,

राधा नागरि का करें नित प्रति उर मैं ध्यान।



श्याम खडा कर बद्द जो राधाजी के द्वार ,

श्याम कृपा तो मिले ही ,राधा कृपा अपार।



हे राधे !हे राधिका !,आराधिका ललाम ,

श्याम करें आराधना ,होय राधिका नाम।



रस स्वरुप घनश्याम हैं ,राधा भाव-विभाव ,

श्याम भजे रस संचरण ,पायं सकल अनुभाव।।

डा श्याम गुप्त -प्रेम काव्य से ।

विज्ञान ,समाज ,व भारत

रामचंद्र गुहा ,तथा कथित इतिहासकार विज्ञान को समाज से जोड़ने की बात कर रहे हैं ,सटीक बात है। पर क्या हम अंगरेजी का ही चश्मा लगाए रहेंगे?,वे फ्रांस , ब्रिटेन की तरफ़ देखने को कहते हैं ,किन्ही गेजेडके उदाहरण से , पश्चिम के संस्थानों की प्रशंशा करते हैं । प्रशंशा तो अच्छी चीज की होनी ही चाहिए ,पर क्या भारत मैं कोई उदाहरण नहीं हैं जिसकी तरफ़ देखा जाय, सिर्फ़ अमेरिका , ब्रिटिश ही भारत को प्रेरणा दे सकते हैं।
भारत की कृषि गवेश्नाएं ,घाघ ,भड्डरी की कहावतें क्या समाज को विज्ञान से नहीं जोड़तीं । ऋषियों ,मुनियों का तप स्वाध्याय ,प्रवचनों ,शिक्षाओं के साथ- साथ -शल्य -चिकित्सा ,खगोलीय अध्ययन क्या समाज व विज्ञान का तालमेल नहीं है ।
कौन सागर मैं कूदे औ चुने मोती श्याम,
हम को किनारे के सीपी ही लुभाने लगे।

मतदान का बहिष्कार

लो जी , सब कहते हैं किबिल्ली के कोसने से छींका नहीं टूटता ,मक्खी के छींकने से आसमान नहीं गिरता । अजी टूटता भी है और गिरता भी है , तथा टूटा भी और गिरा भी और खूब गिरा ।
रायबरेली के एक पूरे के पूरे गाँवने मतदान का ( क्योंकि हमने अपने ब्लॉग पर परामर्श दिया था ,वो हवाओं मैं पहुंचा ,फिजाओं मैं बिखरा )बहिष्कार करदिया ।
बात मेरी न सुने सारा ज़माना चाहे ,
चाँद जाहिद तो सुनेंगे औ सुधर जायेंगे।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

प्रेम पाती मिली

प्रेम पाती मिली ,मन कमल खिल गया ,
हम को ऐसा लगा सब जहाँ मिल गया

चाँद -तारे धरा पर उतरने लगे ,
पुष्प कलियों से हिलमिल कर इठ्लाराहे।
देके आवाज़ गुपचुप बुलाते मुझे ,
कोई प्यारा मधुर बागवाँ मिल गया।

अक्षर -अक्षर मैं तेरी महक चंदनी
शब्द मानों तेरे ही चंचल नयन ।
भाव ह्रदय के मन की पहेली से हैं ,
छंद रस प्रीति पायल की छनछन बने ।
पढ़के ऐसा लगा प्रेम सरिता का मन ,
तोड़ तटबंध निर्झर बना बह गया।

ख़त तुम्हारा मिला ,मन कमल खिल गया ,
पढ़ के ऐसा लगा सब जहाँ मिल गया॥
-डॉ श्याम गुप्त ।




शाश्वत धर्म , सामयिक धर्म ,मतदाता धर्म

मृदुला सिन्हा -लिखतीं हैं कि मतदाता धर्म निभाना चाहिए। यदि सामयिक धर्म , शाश्वत धर्म के आड़ेआता हो तो ? शाश्वत धर्म निभाना चाहिए , यदि आप सोचते हैं कि सभी प्रत्याशी ग़लत हैं तो वोट मत दीजिये क्योंकि यही तो आपका मत (वोट)है । आपने शाश्वत धर्म निभाया।
सत्य, न्याय , मानवता ,राष्ट्रीयता आपके शाश्वत धर्म हैं । यदि हिम्मत है तो इन के विरुद्ध कर्मों पर चिल्लाइये , लड़िये - नहीं तो चुप तो रह ही सकते हैं । इन के विरुद्ध किसी से भी लड़ा जा सकता है। --- तुलसी ने कहा-
---हरिहर निंदा सुनहि जो काना ,होई पाप गौ घात समाना ।
-- काटिय जीभ जो बूत बसाई, कान मूँद नतु चलिय पराई।।

एवं--
--तज्यो पिता - प्रहलाद , विभीषण -बन्धु भरत-महतारी,
---बलि गुरु तज्यो कंत बृज -बनितन भये मुद मंगल कारी ।

झंडे और चुनाव आचार संहिता

ये कौन सी आचार संहिता है, झंडे व बैनरों के लगाने पर ,--आचार संहिता प्रत्याशी व दलों पर है या मतदाता पर । मतदाता , जनता का मौलिक अधिकार है की वह चाहे झंडे लगाए या न लगाए या चार लगाए या दश , इसमें क्या हानि व लाभ है?---

गुरुवार, 23 अप्रैल 2009

एक ग़ज़ल

आंखों की राह आए वो दिल मैं समा गए ।
कैसे बताएं कब मिले कब दिल मैं आ गए ।

हम चाहते ही रह गए ,चाहें नहीं उन्हें ,
वो हाथ लेकर हाथ मैं क़समें दिला गए।

अब क्या कहें क्या ना कहें मजबूर यूँ हुए ,
सब कुछ तो उनसे कह गए,बातों मैं आ गए।

कातिल थी वो निगाह ,शातिर थे वो निशाने ,
घायल किया ,बेसुध किया ख़्वाबों मैं छा गए।

इतनी ही है बस आरजू ,अब हमारी श्याम ,
सच कहिये हम भी आपकी चाहों को भा गए। ---डॉ श्याम गुप्त

सम्पादकों के लेख

कमजोर प्रधान मंत्री की मज़बूती --हि समा आलेख हरजिंदर ----इस राजनेतिक आलेख पर हमें यहाँ नहीं कहना है। हमें कहना है किपहले समाचार पत्रों मैं एक ही सम्पादकीय होता था ,सम्पादक अपनी बात उसी मैं ही कहता था। शेष पत्र का स्थान समाचारों व अन्य विविध क्षेत्र के विद्वानों के विचारों के लिए होते थे ।
अब तो सम्पादक, उपसंपादक, सहायक -सभी स्वयं ही अपने लेख अपने ही पत्र मैं छपवाते रहते हैं। और ये सहायक सम्पादक में भी वरिष्ठ ,कनिष्ठ क्या है ?
लेखक ने एक जादूगर बांसुरी वाला -चूहों व बच्चों को मोहित करने वाली अंगरेजी कथा का जिक्र किया है , हिन्दी ,हिन्दुस्तान ,हिन्दुस्तानी कथाएं , कृष्ण की बांसुरी से मोहित होनेवाली गायों की कथा को कौन याद रखे ? और क्यों ?, भारतीयता की बातें -च ..च ..

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

अतुकांत कविता --अगीत -रस ,छंद ,गति व लय.

बालू से सागर के तट पर ,
खूब घरोंदे गए उकेरे ।
वक्त की ऊंची लहर उठी जब ,
सब कुछ आकर बहा ले गयी ।
छोड़ गयी कुछ घोंघे -सीपी ,
सजा लिए हमने दामन मैं। ----प्रेम काव्य (प्रेम अगीत ) से लयबद्ध अगीत

सभी जीव मैं वही ब्रह्म है ,
मुझमें तुझमें वही ब्रह्म है।
उसी एक को समझ के सब मैं,
मान उसी को हर कण- कण मैं ।
तिनके का भी दिल न दुखाये ,
सो प्रभु को ,परब्रह्म को पाये। ----श्रृष्टि ,अगीत विधा महा काव्य से -शटपदीअगीत

शूर्प सुरुचिकर लंबे नख थे ,
रूपवती विदुषी नारी थी ।
साज श्रृंगार वेश भूषा से -
निपुण, विविध रूपसज्जा मैं ।
नित नवीन रूप सजने मैं ,
उसको अति प्रसन्नता होती । --शूर्पनखा काव्य उपन्यास से (छह पदी अगीत )

भ्रमर !
तुम कली- कली का ,
रस चूसते हो ,
क्यों ?
बगिया की गली -गली घूमते हो ,
क्यों ? ---अगीत। (भ्रमर गीत से )

और एक छह पदी सवैया --
प्रीति मिले सुखरीति मिले, धन- मीत मिले सब माया अजानी ।
कर्म की,धर्म की,भक्तिकीसिद्धि-प्रसिद्धि मिले सब नीति सुजानी ।
ज्ञानकीकर्मकी अर्थकी रीति ,प्रतीति सरस्वती-लक्ष्मी की जानी ।
रिद्धि मिली सब सिद्धि मिलीं, बहुभांति मिलीं निधि वेद बखानीं ।
सब आनंद -प्रतीति मिलीं , जग प्रीति मिली बहु भांतिसुहानी ।
जीवन गति सुफल -सुगीत बनी मन जानी , जग पहचानी ।। ---प्रेम काव्य से।

दोष मेरा है

वोट और मुद्दों पर डाक्टरों के विचार ,अध्यात्म की राह -उमा पाठक ,पोथी ही न पढाएं -जीवन मूल्य भी सिखाएं -पुष्पेश पन्त ; सभी पढ़कर लगता है किवास्तविक राय यही है कि ---
आज जब मैं हर जगह ,
छल द्वंद्व द्वेष पाखण्ड झूठ ,
अनाचार अत्याचार व अन्याय -
को देखता हूँ ;
उनके कारण और निवारण पर ,
विचार करता हूँ ,
तो मुझे लगता है कि -
दोषी मैं ही हूँ ,
सिर्फ़ मैं ही हूँ ।

आप लड़ें या झगडें ,
दोष चाहे एक दूसरे पर मढें,
दोष इसका है न उसका है न तेरा है ,
मुझे शूली पर चढादो ,
दोष मेरा है। --------काव्य मुक्तामृत से ।
स्थित सुधरेगी ,आशा बाकी है।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

धर्म, धरती और हम .

हिन्दुस्तान समाचार पत्रमैं कोई ने जगजीत सिंह उपरोक्त विषय पर कलम चलाई है। आपने -नानक, अबू बकर, मोहम्मद साहिब ,पर्शिया के मिर्जा हुसैन , बौद्ध मत, , बहाई धर्म, महावीर सभी का जिक्र किया है । हमें इन महापुरुषों के जिक्र व उनकी शिक्षाओं से कोई शिकवा नहीं --परन्तु , मिस्टर सिंह जी ! क्या आपको विश्व इतिहास के सबसे प्राचीन ,अमिट , महानतम , सर्व श्रेष्ठ -धर्म ,मत या विचार ,कोई जो कुछ भी समझे अपने -अपने ज्ञान -अनुभव ,श्रृद्धा,विश्वास के अनुसार --हिन्दू -सनातन धर्म का कोई ज्ञान नहीं ,या वह वर्णन योग्य नहीं , या जानबूझ कर ------
"तेरी रहमत का भी यारब कोई जवाब नहीं ।
कौन कहता है कि मौला तू लाजवाब नहीं ॥ "

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

भरोसा पिता के काम का -पार्टी के नाम का

आपका अपना क्या है ? लोग पिता को पूछते तो है नहीं हाँ उनके नाम का सौदा करने से अवश्य नहीं चूकते ।

पिता ने ही लगादी रुबीना की बोली

यह तो होना ही था ,-अनाधिकारी को असमय ,अनायास प्रसिद्धि ,पैसा एवं आसमानी चाहूं की सीढीमिलती है तो यही होता है। स्लम -को करोड़पति का सपना यही है होना ।ये अनावश्यक कर्म समाज को यही रास्ते दिखलाते हैं।

राम राज्य और नफरत --एवं सोनिया गाँधी

सोनिया जी का कथन है किराम राज्य तो ऐसी शाशन प्रणाली है कि उसमें नफ़रत की कोई जगह नहीं है। क्या सोनिया जी राम , राज्य एवं नफरत का अर्थ सही मायने मैं समझतींहैं । नफरत - भी ईश्वर -कर्ता की एक कृति है -अवश्यम्भावी , परन्तु प्रत्येक भाव- वस्तुका समय व स्थिति अनुसार आचरण होना चाहिए । क्या उन्हें महात्मा गांधी याद नहीं जो कहते थे --घृणा बुराई से करो बुरे से नहीं । अर्थात -यथातथ्य । यदि राम रावणत्वसे घृणा /नफरत नहीं करते तो रावण के नाश को कृत संकल्प कैसे होते। ---यह है राम राज्य का अर्थ --यथा योग्य सम्मान ,न्याय व सुरक्षा । कृष्ण का कहना है- मैं दुष्टों के लिए कठोर व संतों के लिए साधुभावः हूँ।
नफरत करो तो , दुष्टता ,बुराई ,अन्याय ,अनाचार ,व्यसन व अपने दुर्गुणों से नफरत करो ।

बच्चों व गरीवों का क्या है वे तो सभी से मिलकर खुश हो जाते हैं ,उन्हें क्या पता कौन सोनिया कौन अडवानी ।

रविवार, 19 अप्रैल 2009

बूढे सपनों मैं कैद जवान देश .-मृणाल पांडे

क्या यह एक जवान देश है ?, नया देश है ? इतिहास को पाश्चात्य नज़र से देखने वाले , व स्वतंत्रता के बाद ही भारत का इतिहास समझ ने वाले यह भूल करते ही रहते हैं। दुनिया के सबसे पुराने देश के बारे मैं।
क्यों हम भूल जाते हैं , कि-राजा युवा होता था , मंत्री सदैव बूढा ,अनुभवी , तपातपाया। यदि आप मंत्रियों को ही राजा समझते हैं तो जो होना है हो ,क्या करें । यदि प्रजातंत्र के अनुसार -प्रजा राजा है तो मंत्रीगण कौन व कैसे हों आप स्वयं ही सोचिये ।
युवा शक्ति ,जोश व साहस ,उमंग को कर्म करना होता है , अनुभव व ज्ञान के परामर्श से।

खबर और आत्मा की आवाज .मीडिया

वर्तिका नंदा ने ब्रिटिश मीडिया मैं गिरावट की बात कही है । भारत की रिपोर्टिंग की भी चिंता जताई है।" सबसे पहले हम ", "हमारा चेनल सबसे आगे " "पत्रकारों को अपनी नौकरी करने पर भी सम्मान --(यदि पत्रकार ने कोई समाज सेवा ,उत्कृष्ट साहित्य सेवा आदि किया है तो उल्लेख के साथ उसी क्षेत्र का सम्मान हो सकता है.--पत्रकारिता अनिवार्य कर्म है , सेवा नहीं ), पीतपत्रकारिता , सर्वश्रेष्ठ चंनल आदि मारा मारी हटे तो गिरावट समाप्त हो क्योंकि इससे धनार्जन व कदाचरण का स्थान कम होगा। पत्रकारों के लिए अनुशाशन संहिता की अत्यावश्यकता है। ख़बर नवीसों को समाचार पत्रों मैस्वयं अपने आलेख नहीं छापने देना चाहिए । उच्चकोटि के विद्वान ही यह कार्य करें ।

अंकल सभी धर्म एक हैं.

अब बताइये बच्चों के काल्पनिक मुख से क्या-क्या कहलाया जा रहा है ! बच्चों को क्या सिक्षा दी जा रही है ? आख़िर बच्चों को राजनीती ( वरुण घटनाक्रम -जो विवादित है ) मैं लाने की , घसीटने की आवश्यकता ही क्या है सिखाना ही है तो यह सिखाएं कि-वस्तुतः सभी धर्म एक नहीं धर्म ही सिर्फ़ एक ही है -मानवता धर्म । अब लोग बच्चों के सिरपर भी रख कर अपनी रोटी सकने लगे हैं। जो सभी धर्मों की बात करता है वह धर्म का अर्थ न समझ कर -मज़हब , सम्प्रदाय की बात कहरहा होता है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2009

पैसे का खेल आई पी एल -और चुनाव

पैसे की महिमा से मंडित आई पी एल के समाचारों ने अखबारों मैं चुनावी समाचारों को भी पीछे छोड़ दिया है । साहित्य व कला की बात कौन करे? -- जबकि कला व साहित्य से जुड़े लोग हमारा वोट -हमारे मुद्दे पर बहस मैं लगे हुए हैं। आरती का कहना है किसंस्कृत कर्मियों के बारे मैं पढ़े लिखे लोगों को ही पता लग पाता है,बहुसंख्यक को नहीं । भला क्यों नही ?-कला ,साहित्य। संस्कृत -कर्मीं --अपने -अपने स्वयं के लाभ, लाबी व विदेशी नक़ल ,एवं पांडित्य से परे रहकर , जन-जन की भाषा ,बोलचाल व विषयों पर काम करें , भारतीय सामाजिक सरिकारों पर काम करें ,उनके इतिहास ,धर्म संस्कृति की बात करें तभी तो वे जन सामान्य के करीब आपायेंगे.--कात्यायिनी--कला का बाजारी करण हुआ है। --मनोज चाहते हैं कि संस्कृत कर्मियों की भी जबाव देही तय हो। ---राजेश का कहना है कि दलों से जुड़ने के कारण कलाकारों की प्रतिरोध क्षमता घटी है। सभी विचार कलाकारों के लिए आत्म मंथन के विषय है। क्या वे सोचेंगे?

दल बदल व धर्म

के विक्रम रावकहते है कि-दलबदल व धर्म भी हो सरोकार के दायरे मैं-धर्म कोई मजहब नहीं है ,मजहब को उभारना असंगत है पर धर्म तो मानव व समाज ,राष्ट्र का चारित्रिक व नैतिक मापदंड है , उसी सरोकार की बात तो होनी चाहिए । मजहबी जूनून अनैतिक होता है धर्म नहीं।

हिन्दुस्तानी चरित्र का दोहरापन ---

खुशवंत सिंह उमा भारती के व्यवहार का दोहरेपन की बात करते हैं ?वे औरतों की बेईज्ज़ती के लिए उन्हें पुरूष से खतरनाक कोबरा कहते हैं, और अंग्रेज रुडयार्ड किपलिंग का उदाहरण देते हैं। ये विदेशी चाशनी मैं बढे पले व सोचने वाले लोगों को भारतीय उदाहरण कभी याद नहीं रहते ,जहाँ नारी को सदैव पुरूष से महान माना है।
छत्रपति शिवाजी के बारे मैं एक घटना है की कैसे वे एक कुए की जगत पर बैठ कर बच्चों को मिठाई बाँट रहे थे । अंग्रेज अधिकारी ने यह देखकर , अत्यन्त आश्चर्य हुआ की इतना नरम दिल स्वभाव वाला व्यक्ति , एक खूख्खार लडाका ,कठोर दंड देने वाला ,व अंग्रेजों के प्रति इतने कठोर रखवाला कैसे हो सकता है। शिवाजी ने अगले दिन उह अंग्रेज के अपराधी साथी के सर को कलम कर्वादिया था। --क्या शिवाजी का दोहरा हिन्दुस्तानी आचरण है। खुशवंत जी बापू को याद करें जो अकारण पर निंदा को अनुचित मानते थे। कृष्ण को पढ़ें ,सुनें समझें की यथानुसार आचरण किसे कहते हैं। किपलिंग को भूल जाएँ।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

स्कूल व यौन शिक्षा --राज्य सभा की रिपोर्ट

हर बात कितावों से नहीं जानी जाती । भारत मैं ही नहीं सारे विश्व मैं यह शिक्षा सखियों ,माँ ,बहन ,भाभियों द्वारा सदियों से मिलती आरही है ।इससे आपसी पारिवारिक तालमेल ,सामाजिकता का व्यवहार ,आपसी समझ व सौहार्द की पृष्ठ - भूमि व रिश्तों की डोर बनतीहै। जो आज के अनुशाशन हीन युग की बहुत बड़ी आवश्यकता है। यौन शिक्षा का यह सब वितंडा उन लोगों का फैलाया हुआ है जो व्यर्थ की पुस्तकें ,लेख आदि लिख कर व प्रकाशित करके , बेच कर अपना धंधा फैलाना चाहते है, अज्ञानी व भारतीय संस्कृति के विरोधी उनसे हाथ मिलाना चाह रहे हैं।
हम समय रहते सावधान रहें तो अच्छा है।

खिलाड़ी हैं हमसे खेलें नहीं , नहीं तो ------

मेरी समझ मैं यह कभी नहीं आया किखेलों को इतना महत्त्व ,तूल देने की क्या आवश्यकता है। खेल शारीरिक व्यायाम व खेल के लिए होते हैं न कि किसी प्रतिस्पर्धा ,या पैसा कमाने के लिए। अतः खेल को कैरियर बनाने को भी निरुत्साहित किया जाना चाहिए ।जो प्रतिभा अन्य आवश्यक महत्त्व के कार्यों मैं लग सकती है वह अनावश्यक नष्ट हो रही है। मेरे विचार से खेल आदि सिर्फ़ स्कूल ,कालिज स्तर तक ही होने चाहिए । आगे सभी खेल ,खेल विभाग व मंत्रालय आदि बंद कर देने चाहिए । हमें अच्छे नागरिक -जो देश ,समाज की ,मानवता की उन्नति मई योगदान करें - चाहिए न कि प्रोफेशनल ,पैसे के लिए खेलने वाले खिलाड़ी ।
खेल को धंधा बनाने का वही परिणाम होता है जो आज हो रहा है -अनुशाशन हीन ,आत्म मुग्ध, घमंड से पूर्ण युवा , जो राष्ट्रपति का भी अपमान कर सकते हैं।
अत्यधिक खेल एवं खेल को प्रोफेशन बनाने के कारण ही "रोम " साम्राज्य का पतन हुआ। क्योंकि अनावश्यक व समाज ,देश राष्ट्र , मानवता के व्यापक हित से रहित प्रतिस्पर्धा
सदैव भ्रष्ट राजनीति व आचरण को जन्म देती है।
धंधेबाज ,पैसे के लिए खेलों के आयोजनों की कोई आवश्यकता नहीं है इन्हें शीघ्र समाप्त कर देना चाहिए।

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

जाति-विहीन , वर्ग विहीन समाज नहीं अपितु जाति-वर्ग निरपेक्ष समाज.

एस आर दारापुरी का कहना है जाति विहीन व वर्ग विहीन समाज --विशेषता विहीन तत्व सिर्फ़ परमाणु अवस्था मैं ही होता है ,विभिन्न तत्व ,अणु, पदार्थ विशेषता धारण करने पर ही बनते हैं -क्या हम उन्नति छोड़कर पुनः वहीं पहुंचना चाहते है जहाँ से चले थ ? वस्तुतः जाति व समाज निरपेक्ष --अर्थात वे तो रहेंगे अपनी -अपनी विशेषताओं के साथ , देश समाज राष्ट्र हितार्थ - परन्तु उनके साथ भेद- भाव किसी स्तर पर नहीं हो । शरीर मैं प्रत्येक ऊतक व अंग का अपना -अपना महत्त्व है। इसी सत्य को जानें , समझें ,मानें ।

रवि शंकर भारत

युवा प्रत्याशी , रवि शंकर भारत का कथन-टीचेर का न पढाना नहीं चलेगा, जाती आधारित आरक्षण मंजूर नहीं ,दशवीं पास मंत्री ऐ सी मैं बेठे , डाक्टर ८ साल पढ़कर गाओं मैं जाए कुछ ठीक नहीं ---नई सोच हैं । आप सब सोचें और समझें ।

एकजुट होकर वोट करें .ही

सपा के नेता का कहना है की पिछडी जातियाँ एक जुट होकर वोट करें।
एक जुटता स्वयं के ही हित मैं या देश के ? स्वयं के हित मैं एक जुटता भेड़चाल कहलाती है जो पशु -इंस्टिंक्ट है। देश समाज राष्ट्र मानवता हित मैं एकजुटता -मानववाद कहलाता है । अतः मानवतावाद व राष्ट्रवाद हित वाले प्रत्याशी व पार्टी को समर्थन देन , न किसिर्फ़ पार्टी विशेष को ।आप व पार्टियां -कौन सी एकता चाहते है? सिर्फ़ वोट की या देश की।

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

सचिन व मोम का पुतला

जब सलमान जैसे लोगों का मोम का पुतला बन चुका है तो सचिन के पुतले पर ,सचिन के लिए क्या खुशी की बात हो सकती है ? पुतलों को बनाने की आवश्यकता व उपादेयता एवं नीति क्या प्रश्न उठाने योग्य नहीं है?
पर हमें क्या ,हम तो ताली बजाते है, कौन सोचने समझने के फेर मैं पड़े ।

अमृत के छींटे--हिन्दुस्तान -१४-०४-०९

आलेख उन लोगों के लिए आँखें खोलने वाला है जो यही प्रचार करता है की वर्ण व्यवस्था पर सर्वप्रथम अम्बेडकरने ही विचार किया था। छुआ-छूत,ऊँच - नीच,ने भारत मैं कभी भी प्रश्रय नही पाया। सदियों से राम, कृष्ण ,नानक आदि हर युग मैं यही कहते, बताते, सिखाते आए हैं। अनीतिवान तो सदैव ही समाज मैं रहते आए हैं व रहते रहेंगे। इससे सन्मार्ग पर चलना बंद नहीं होता । दीप सदा प्रज्वलित होते रहेंगे। --तमसो मा ज्योतिर्गमय ।

दर्द -तीस हज़ार लोग वोट न डालने की शपथ लेंगे

वहुत समय बाद एक अच्छी ख़बर है। शायद ५१% वोट से कम वोट पाने वाले वाले प्रत्यासी को ,परिणामों के लिए योग्य न माना जाय, एवं अकर्मण्य सांसदों व विधायकों को बापस बुलाने के अधिकार की यह पूर्व भूमिका ही हो यह कदम। अथ शुभम शीघ्रास्तु ।

रविवार, 12 अप्रैल 2009

चुनाव व लोकतंत्र पर--

लघु है पर विभु अर्थ बताये ,उसे मन्त्र कहते हैं।
लघु काया बहुभार उठाये ,उसे यंत्र कहते हैं ।
मिलें बीस प्रतिशत मत जिसको ,श्याम उसी की ,
बन जाए सरकार ,उसी को लोकतंत्र कहते हैं।

सबको अपनी- अपनी क्षमता ,
और योग्यता के अनुरूप ।
कार्य और सम्मान मिले ,यह-
लोकतंत्र का सच्चा - रूप।

नेहरू ,पन्त ,पटेल ,अटल से ,
ही प्रत्यासी यदि आएं।
सभ्य नागरिक सभी स्वयं ही ,
अपने मत देने जाएँ ।

tabhee अधिकतम जनता के मत,
के अनुरूप saje यह तंत्र ।
लोकतंत्र तब बन पायेगा
सचमुच सुखद लोक का तंत्र । ------डॉ श्याम गुप्ता

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ज्यों गाडर की ठाट--

ऐसी गति संसार की ,ज्यों गाडर की ठाट ,
एक पडी जेहि गाडमैं ,सबै जाहिंतेहि बाट। ---कबीर दास ने क्या खूब कहा है। मुझे क्यों याद आरहा है? आज सुबह ही सुबह ,लालू की रेल के तमाशे देखने को मिलगये। इन मैनेजमेंट के स्कूल वालों को तो पैसे बटोरने हैं ,अतः लालू जैसे को भी मैनेजमेंट -गुरु ,कुछ भी बना सकते हैं। मैं ६० वर्षों से रेलवे को देखरहा हूँ ,पिछले ३७ बर्षों से अत्यन्त निकट से, परन्तु जैसी मिस -मैनेजमेंट कुछ वर्षों से रेलवे मैं है वैसा कभी नहीं था। आज ही गरीव-रथ ट्रेन आने पर ,न तो डिब्बों पर सीरिअल नंबर ही थे, जिन पर थे ग़लत -सलत पड़े थे , जी -६ पर जी ९ आदि -अन्दर सीटों के नंबर भी ग़लत थे । रेलवे स्टाफ को स्वयं कुछ नही पता था ,यात्री बार -बार एक कोच से दूसरे मैं अपना डिब्बा व सीट खोजते फ़िर रहे थे। जब एक ऐ सी ,स्वयं लालू की ट्रेन का मैनेजमेंट नहीं हो सकता तो ------। बस सब भेडचाल मैं एक दूसरे को गुरू कहे जारहे हैं.--यथा--
" उष्ट्रानाम लग्न वेलायाम ,गर्धभा स्तुति पाठका :
परस्पर प्रशन्शन्ति ,अहो रूपमहो ध्वनि ॥ " ----सिर्फ़ तमाम गाडियां चलाने से क्या होता है ,रख- रखाव तो बाबा- आदम के जमाने से भी ख़राब है।

जीत के लिए ५१% वोट -

बहुत सही लिखा है डॉ असगर अली ने -चुनावों मैं यदि जीत के लिए ५१% वोट मिलाने पर ही ,कैंडीडेट की पात्रता मानी जानी चाहिए ,उसके पश्चात ही आगे जीत के लिए वोटों की गणना करना चाहिए। चुनाव व नेताओं से सम्बंधित अधिकाँश समस्याएँ हल हो सकतीं हैं।

बुधवार, 8 अप्रैल 2009

सही जानकारी -जिम्मेदार चुनाव -दैनिक हि.

मृणाल पांडे का कहना है किबाहुबलियों की चुनाव मैं यह स्थिति युवा मतदाता क्यों बर्दास्त करें ?,उनमें इस स्थिति का तोड़ पैदा करने की इच्छा है ।हिन्दुस्तान व खबरिया चेनल आई बी एन -७ का अनुभव है --कैसा व किस प्रकार का व किन स्तरके युवाओं पर है यह अनुभव ?-- क्योंकि यही युवा लोग -पैसे की दौड़ मैं आगे हैं ,येनकेनप्रकारेणअपना काम निकलवाने के लिए कुछ भी ,कुछ भी करने को तैयार होजाते हैं ;पिछली पीडी से भी अधिक तेजी से । अर्थात वही'ढाकके तीन पात' कि सामने वाला ही सुधरे ,हम नहीं ।सिर्फ़ जानकारी ,तर्क, एकजुटता से यह नहीं होगा , जागते रहो -होशियार -जैसे लुभावने नारों से भी नहीं । हम अपनी आवश्यकताएं कम करें ,प्रलोभनों से दूर रहें । आवश्यकता व मजबूरी मै भी बाहुबलियों ,धन ,अनुचित साधनों का सहारा न लें , यदि कोई उचित उम्मीदवार नहीं है तो वोट भी न दें sवयम को सुधारें ,न की अन्यको।

रविवार, 5 अप्रैल 2009

कविता का भूत से मुलाक़ात -हि-०५-०४-०९

सुधीर पचौरी ने --न जाने क्या कहा है, क्या कहना चाहते हैं ? कवि के बारे मैं या कविता के बारे मैं ! पूरे आलेख का कोई अर्थ नहीं निकलता ! हाँ , यह अवश्य ज्ञात होता है कि, इस आलेख की ही भांति वस्तुतः आज कविता का यही हाल है । अधिकाँश कवि व कवितायें स्वयं ही नहीं जानते कि वे क्या कहना चाहते है । वस्तुतः आज तथाकथित पत्रकार ,अखबार वाले ,खबरची , सम्पादक गण ही कवि व साहित्यकार वन गए हैं।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

बासंतिक नवरात्र एवं राम नवमी पर विशेष -

वह आदि- शक्ति ,वह प्रकृति माँ
नित नए रूप रख आती है।
उस परम- तत्त्व की इच्छा बन,
यह सारा साज सजाती है।

वह लक्ष्मी है, वह सरस्वती ,
वह माँ काली ,वह पार्वती ।
वह महा शक्ति है अणु- कण की
वह स्वयं शक्ति है कण- कण की

वह ऊर्जा बनी मशीनों की ,
विज्ञान ज्ञान- धन कहलाई ।
वह आत्म शक्ति ,मानव मन मैं ,
संकल्प शक्ति बनकर छाई।

वह प्यार बनी तो दुनिया को ,
कैसे जियें , यह सिखलाया।
नारी बनकर कोमलता का ,
सौरभ- घट उसने छलकाया।

--आदि-शक्ति परमेश्वरी ( काव्य- दूत से )



__सीता का निर्वासन ?-----
अहल्या व शबरी ,
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;जबकि-
सीता , राम की व्यक्तिगत शंका है।
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है ,
इसीलिये तो,
सीता का निर्वासन होता है।

स्वयं पुरूष का निर्वासन ,
कर्तव्य-विमुखता व कायरता कहाता है ,
अतः , कायर की पत्नी ,
कहलाने की बजाय ,
सीता को निर्वासन ही भाता है। --(काव्य-मुक्तामृत से)
---डॉ श्याम गुप्ता