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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 29 जून 2009

धारा ३७७,समलेंगिकता ,सेक्स शिक्षा व माता पिता की शर्त --

सम लेंगिकता के पक्षधर कहरहे हैं कि इसा क़ानून के हटाने से लोग अनावश्यक पुलिश उत्प्रीणन से बचेंगे। क्या मूर्खतापूर्ण ,अदूरदर्शी दलील है ,ऐसे ही लोग यह दलील दे सकते हैं ,मूर्खतापूर्ण बात के समर्थक । पुलिस तो चोरी,डकैती,ह्त्या ,बलात्कार सभी कानूनों में उत्प्रीणन करती है ,तो क्या पुलिस को,आदमी को ,स्वयं को सुधारने की बजाय ये सब क़ानून हटा दिए जायं,सभी अपराधों में पुलिस के डर से सब क़ानून , या फ़िर पुलिस को ही हटा दिया जाय ???????????????????????
इधर सेक्स शिक्षा में माता-पिता की सहमति -शर्त है कि लड़कों को लडके व लड़कियों को महिलायें ही पदायें । यह व्यवस्था क्या समलेंगिकता को और प्रश्रय नहीं देगी।सारे पब्स ,डांसिंग स्कूल,जिम,पार्लर्स ,मसाज़ केन्द्र आदि ही तो यह सब फेलाने के केन्द्र हैं । सेक्स शिक्षा स्कूलों में हो ही क्यों ? क्या वैसे ही स्कूलों पर कोर्स के बोझ कम हैं । माता-पिता ,भाई-भाभी , बहनें ,मित्र आदि आख़िर क्यों है ? क्या युगों से आज तक विना स्कूलों के यह शिक्षा सभी को मिलरही है या नहीं ?आज ऐसी क्या नवीन परिस्थिति उत्पन्न हुई है की यह प्रश्न उठा है ,इस पर राष्ट्र- व्यापी बहस होनी चाहिए। माता पिता क्यों अपना दायित्व नहीं निभाना चाहते ? धन कमाने की भूख में ,समयाभाव के कारण ?
वास्तव में सेक्स शिक्षा की नहीं ,संयम ,सदाचार ,ब्रह्मचर्य ,युक्ति-युक्त सोच व व्यवहार की शिक्षा की आवश्यकता है , स्कूलों में ,घरों में ।

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