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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

Tears-----poem------byDrshyamGupta

Tears

From the corners of eyes they flow,

In the sorrow & happiness they flow.

From the troubled eyes they flow,

To tell all the lies , they flow।


One is lost in loving memories they flow,

In the warmth of loving arms they flow.

In the lone nights & gay spring wind,

They are tales from fathoms of mind।


Sung the saddest songs , they flow,

Hearing the sweetest melody they flow.

They are heart-throb pain with cheers,

Foe some just salted water,else they are tears।


Every time they are a different tale,

The deepest secrets of heart they unveil.

They flow for else’s cause,

Even flow one gets applause।


They are humble power of pious soul,

May also be a sinful quest.

Since they may be the crocodile tears,

Poised for some vested interest.

रविवार, 27 सितंबर 2009

चाँद पर पानी ---डॉ श्याम गुप्त की ग़ज़ल-----

मर गया जब से मनुज की आँख का पानी |
हर कुए तालाब नद से चुक गया पानी |

उसने पानी को किया बरबाद कुछ ऐसे,
ढूँढता फ़िर रहगया हर राह पर पानी |

उसने पानी का नहीं पानी रखा कोई ,
हर सुबह और शाम अब वह ढूँढता पानी |

पानी-पानी होगया हर शख्स पानी के बिना,
खोजने फ़िर चलदिया वह चाँद पर पानी |

कुछ तसल्ली तो हुई,इक बूँद पानी मिलगया ,
पर न 'पानी मांग जाए' , चाँद का पानी |

श्याम' पानी की व्यथा समझे जो पानीदार हो ,
'पानी-पानी ' होरहा हर आँख का पानी ||

शनिवार, 26 सितंबर 2009

दो नये मुक्त छन्द---अन्तर--

दुष्ट और सर्प

दुर्जन और सर्प में,
है इतना ही अन्तर;
सांप छेडने पर ही डंसता है,
और व्यक्ति बच भी जाता है;
यदि मिल जाये्कोई मन्तर।
दुष्ट नश्तर की तरह डंसता रहता है,
प्रतिपल, जीवन भर;
आपका अन्तर;
काम नहीं करता है,
कोई भी मन्तर ॥

मनुष्य व पशु

मनुष्य व पशु में,
यही है अन्तर;
पशु नहीं कर पाता,
छल-छंद ओ जन्तर-मन्तर।
शैतान ने पशु को ,
माया सन्सार कब दिखाया था,
ग्यान का फ़ल तो ,
सिर्फ़ आदम ने ही खाया था॥


शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

स्त्री-पुरुष संबंधों ,अंतर्संबंधों ,प्रेम,अधिकार व कर्तव्यों की उचित व पुनर्व्याख्या है राधा -कृष्ण -गोपिकाओं की गाथा ----

यदि राधा व गोपिकाएं श्री कृष्ण से असीम प्रेम करतीं हैं , सर्वस्व अर्पण की भावना रखती हैं ,तो श्री कृष्ण भी उनका श्रृंगार करते हैं, अंजन लगाते हैं, मयूर नृत्य करते हैं, स्त्री का सांवरी रूप धरते हैं, मुरली -गान से मनोरंजन करते हैं ,उनकी सखियों का भी मान रखते हैं ,यहाँ तक कि राधाजी के पैर भी छूते हैं; पुरूष में 'अहं 'होता है ,स्त्री में 'मान 'परन्तु, प्रेम ,पति-पत्नी,स्त्री-पुरूष संबंधों में अहं नहीं होता , स्त्री का मान मुख्यतया प्रेम की गहराई से उत्पन्न होता है| यदि पुरूष स्त्री को बराबरी का दर्जा दे ,अहं छोड़कर उसके मान की रक्षा करे ; स्त्री के स्व का ,स्वजनों का ,इच्छा का सम्मान करे तो सामाजिक,पारिवारिक द्वंद्व नहीं रहते |
उस काल में भौतिक प्रगति, जनसंख्या वृद्धि के कारण आर्थिक-सामाजिक -वाणिज्यिक कारणों से पुरुषों की अति व्यस्तता स्त्री-पुरूष संबंधों में दरार व द्वंद्व बढ़ने लगे थे , त्रेता में शमित आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ने से स्त्रियों की सुरक्षा हेतु उनकी स्वतन्त्रता पर अंकुश भी बढ़ने लगा था , पुरूष श्रेष्ठता व स्त्री आधीनता को महिमा मंडित किया जाने लगा था| श्री कृष्ण के रूप में स्त्रियोंको उनकी की स्वतन्त्रता , बराबरी , श्रेष्ठता का प्रतीक मिला, वे सर्व-सुलभ , सहज, उनका मान रखने वाले , सम्पूर्ण तुष्टि देने वाले थे ,जो वस्तुतः स्त्रियों की सहज आशा व चाह होती है ; राधा श्रीकृष्ण की चिर संगिनी, प्रेमिका , कार्य-संपादिका व इस नारी-उत्थान व समाजोत्थान में पूर्ण सहायिका थी।
श्री कृष्ण -राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगीं, कठोर कर्म कांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्री कृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता , सम्मान ,अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल के पश्चात जो सामाजिक ,सांस्कृतिक ,बौद्धिक शून्यता समाज में आई ,उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण -राधा का उद्देश्य था .

साहित्यकार पुरस्कार योजना---


अखिल भारत वैचारिक-क्रान्ति मन्च द्वारा आर्थिक रूप से दुर्बल साहित्यकारों--कवि, शायर, सम्पादक,पत्रकार, लेखक --के लिये एक पुरस्कार योज़ना का अवलोकन ,हिंदी साप्ताहिक- अगीतायन ,लखनऊ,७ सितम्बर अन्क की इस विग्यप्ति में करें ।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

अन्तर --दो मुक्त छंद ------

--लेखनी और तलवार
तलवार और लेखनी में अन्तर है-
तलवार पहले काटती है ,
फ़िर खून बहाती है।
लेखनी ,पहले स्वयं काटी जाती है,
स्याही बहाती है,
फ़िर व्यक्ति को काटकर -
उसका खून सुखाती है॥

-- नाग और कलम
नाग और कलम ,दोनों ही दुमुंहे हैं-
कलम जेब में रखी जाती है ,
नाग भी आस्तीन में रहते हैं;
नाग,फुफकारता है ,
काटता है,
फ़िर विष छोड़ता है ;
कलम, स्याही सोखती है,
फ़िर छोड़ती है ,दौड़ती है,
फ़िर ,काटती है॥

सुपर पावर ---हम और हमारा भारत ----


आख़िर हम सुपर पावर ही क्यों बनें ?,क्या हम दूसरे देशों की नक़ल करके उन के मापदंड के अनुसार उनके सिर पर बैठने की क्यों सोचे ? हम ऐसे एक अलग स्वतंत्र विचार व भाव बाले अच्छे देश जहाँ न भेद-भाव हो न आपसी झगडे,न गन्दगी से बजबजाती नालियां ,उफनते सीवर,टूटी सड़कें ,नग्नता पसारते मीडिया ,फ़िल्म ,अभिनेता -अभिनेत्रियाँ व लोग,न दहेज़ के लिए जलाई जाने वाली बेटियाँ , न धर्म ,राजनीति,धंधे ,विकास के नाम पर धोखा देने वाले लोग व नेता, न लुटते बेंक,लूटती कंपनियाँ ,न भ्रष्ट शासक,प्रशासक व अधिकारी-कर्मचारी ,न गुंडे-मवाली व संघटित अपराधी -- प्रसादजी की आवाज़ में -"अरुण यह मधुमय देश हमारा " या जैसा सृष्टि महाकाव्य में कहा गया है-
"सर्व श्रेष्ठ क्यों कोई भी हो ?
श्रेष्ठ क्यों हो भला सभी जन"

पढ़ें राम चन्द्र गुहा का सारगर्भित आलेख " सुपर पावर ही क्यों बनें हम "

हमारा अंग्रेजी प्रेम--


<--चित्र १ चित्र २--->



अब देखिये बात या कार्य-क्रम शोक जताने,बच्चों को नैतिक शिक्षा की हो जिसमें एक बड़े जिम्मेदार स्कूल( वैसे इस स्कूल में सब कुछ अंग्रेजी में ही होता है) के संस्थापक हों ;या शोषण के ख़िलाफ़ अभिभावकों के मंच की हो जिसमें न्यायाधीश , पुलिश महानिदेशक व हिन्दी के विद्वान् साहित्य-भूषण सम्मानित गण हों ; कार्य-क्रम के पट (बैनर ) आदि अंग्रेजी में होंगे । जब मूल भावना ही अंग्रेजियत की होगी तो बच्चों व नागरिकों पर भारतीय प्रभाव कैसे पड़े ?
हम कब सोचेंगे,कब बदलेगा यह सब? हम कबतक हिन्दी में सोचने ,समझने, लिखने लायक होंगे?


चित्र १ -अभिभावक गोष्ठी में डॉ रामावतार सविता 'साहित्य-भूषण ' व अन्य।
चित्र २-सिटी मांट,स्कूल के संस्थापक श्री गांधी -नेतिक- शिक्षा देते हुए।

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

सफलता का मूल-मंत्र ---शुचिता |


छल ,कपट झूठ ,धोखा आदि से व्यक्ति कुछ कुछ समय को,सामयिक लाभ भले ही प्राप्त करले,परन्तु वास्तविक सफलता तो सत्य ,सरल-ह्रदय मनसा,वाचा,कर्मणा शुद्धता से ही मिलती है जो स्थाई प्रसन्नता -दायक, शान्ति-दायक ,आत्म-तुष्टिकारक होती है| डाक्टर रवींद्र नागर का आलेख इसी मूलमंत्र -शुचिता-की सटीक,रुचिपूर्ण सरल व्याख्या प्रस्तुत करताहै .पढें --->

बुधवार, 9 सितंबर 2009

रा धा --कौन, कहांसे, कब,

राधा ---व्युत्पत्ति व उदभव

राधा-चरित्र का वर्णन श्रीमद भागवत पुराण में स्पष्ट नहीं मिलता; वेद,उपनिषद में भी राधा का उल्लेख नहीं है।राधा राधा क्र्ष्ण का सांगोपांग वर्णनगीत-गोविन्दसे मिलता है। वस्तुतः राधा का क्या अर्थ है ,राधा शब्द कीव्युत्पत्ति कहां से, कैसे हुई ?’
सर्व प्रथम
रिग्वेद के भाग /मंडल१- में-राधस शब्द का प्रयोग हुआ है,जिसकोबैभवके अर्थ में प्रयोग कियागया है। रिग्वेद-/--- में-’ सुराधा’ शब्द श्रेष्ठ धनों से युक्त के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। सभी देवों से उनकीसंरक्षक शक्ति का उपयोग कर धनों की प्रार्थना , प्राक्रतिक साधनों का उचित उपयोग की प्रार्थना की गई है। रिग्वेद-/५२/४०९४ में राधो’ आराधना’ शब्द शोधकार्यों के लिये भी प्रयोग किये गये हैं,यथा--
"यमुनामयादि श्रुतमुद्राधो गव्यं म्रजे निराधो अश्व्यं म्रजे॥" अर्थात यमुना के किनारे गाय,घोडों आदि धनों कावर्धन(व्रद्धि उत्पादन) आराधना सहित करें।
वस्तुतः रिग्वेदिक यजुर्वेद अथर्व वेदिक साहित्य में
राधा’ शब्द की व्युत्पत्ति, रा =रयि(संसार, ऐश्वर्य,श्री,वैभव) +धा( धारक,धारण करने वालीशक्ति) ,से हुई है; अतः जब उपनिषद व संहिताओं के ग्यान मार्गीकाल में स्रष्टि के कर्ता का ब्रह्म पुरुष,परमात्मा, रूप वर्णन हुआ तो समस्त संसार की धारक चित-शक्ति,ह्लादिनी शक्ति,परमेश्वरी(राधा) का आविर्भाव हुआ ;भविष्य पुराण में--जब वेद को स्वयं साक्षात नारायण कहा तो उनकीमूल क्रतित्व-काल,कर्म,धर्म काम के अधिष्ठाताहुए--काल रूप क्रष्ण उनकी सहोदरी(भगिनी-साथ-साथउदभूत) राधा परमेश्वरी; कर्म रूप ब्रह्मा नियति(सहोदरी); धर्म रूप-महादेव श्रद्धा(सहोदरी) एवम कामरूप-अनिरुद्ध उषा ----इस प्रकार राधा परमात्व तत्व क्रष्ण की चिर सहचरी , चिच्छित-शक्ति(ब्रह्म संहिता) है।
वही
परवर्ती साहित्य में श्री क्रष्ण का लीला-रमण, लोकिक रूप के आविर्भाव के साथ उनकी साथी,प्रेमिका,पत्नीहुई, ब्रज बासिनी रूप में जन-नेत्री।
भागवत पुराण में-एक अराधिता नाम की गोपी का उल्लेख है, किसी एक प्रिय गोपी को भग्वान श्री क्रष्णमहारास के मध्य में लोप होते समय साथ ले गये थे ,जिसेमान होने पर छोडकर अन्तर्ध्यान हुए थे; संभवतः यहवही गोपी रही होगी जिसे गीत-गोविन्द के रचयिता , ्विद्यापति, सूर दास आदि परवर्ती कवियों, भक्तों ने श्रंगारभूति श्री क्रष्ण(पुरुष) की रसेश्वरी (प्रक्रति) रूप में कल्पित प्रतिष्ठित किया।
वस्तुतः गीत गोविन्द भक्ति काल के समय
स्त्रियों के सामाज़िक( से १० वीं शताब्दी) अधिकारों में कटौती होचुकी थी, उनकी स्वतंत्रता ,स्वेच्छा, कामेच्छा अदि पर अंकुश था। अत राधा का चरित्र महिला उत्थान उन्मुक्ति के लिये रचित हुआ। पुरुष-प्रधान समाज में क्रष्ण उनके अपने हैं,जो उनकी उंगली पर नाचते है, स्त्रियों केप्रति जवाब देह हैं,नारी उन्मुक्ति ,उत्थान के देवता हैं। इस प्रकार ब्रन्दावन अधीक्षिका, रसेश्वरी श्री राधाजी का ब्रजमे, जन-जन में, घर-घर में ,मन-मन में, विश्व में, जगत में प्राधान्य हुआ। वे मातु-शक्ति हैं, भगवान श्री क्रष्ण केसाथ सदा-सर्वदा संलग्न,उपस्थित,अभिन्न--परमात्म-अद्यात्म-शक्ति; अतः वे लौकिक-पत्नी नहीं होसकतीं, उन्हेंबिछुडना ही होता है,गोलोक के नियमन के लिये

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मंगलवार, 8 सितंबर 2009

कुर्सी का मुख पश्चिम में करदो ----व्यवस्था बदलने का अंधविश्वास

बहुत पुरानी बात है की एक दिन मेरे छोटे भाई ने ,जो कक्षा ६ का विद्यार्थी था, आकर बताया कि मास्टर जी ने कहा है ये कापियां अब नहीं चलेंगी , रजिस्टर लाओ| मैंने कहा अब इन कापियों का क्या होगा, चलो मास्टरजी से पूछें|में स्वयं इंटर -विज्ञान का क्षात्र था. स्कूल में मेरा तर्क था कि मेरे पिता के मेहनत की कमाई की ये कापियां यूँही जायेंगी , आख़िर देश के धन की भी तो बर्बादी है| मास्टर जी न माने तो मैंने पूछा-सर ,क्या रजिस्टर से पढाई अच्छी होगी,क्या बच्चे अच्छी तरह याद करेंगे,क्या आप की गुणवत्ता बढ़ जायगी ?मास्ट र जी का कहना था कि अच्छी-अच्छी कापियां किताब देखकर अच्छा लगता है ; फ़िर अंगरेजी में बोले-तुम विज्ञान के विद्यार्थी होकर ऐसी वेवकूफी की बात करते हो, योरोप आदि के स्कूलों ने कितनी तरक्की की है ,हम हैं कि वहीं हैं। राष्ट्र-भक्ति का बहाना है,भाषण देने को तो -'नेता बन जाओ ' यहां सिर न मारो।( अर्थ निकलता है कि उन दिनों नेताओं कोराष्ट्र-भक्त माना जाता था, अतःसिर्फ़ नेता राजनीति नहीं अपितु शिक्षा जगत में पाश्चात्य -नक़ल देश की दुर्दशा का कारण है ),उन्ही के पढ़े -पढाये हुए क्षात्र आज के नेता व अन्य स्थानों पर हैं। उन दिनों भारतीय नगरों में अंगरेजी तर्ज़ पर पब्लिक स्कूल खुलते ही जारहे थे और हम उनकी नक़ल में व्यस्त थे। आज शिक्षा का मानवीय स्तर तो आप देख ही रहे हैं।
हमारे दफ्तरों में जब कोई बड़ा अफसर नया आता है तोएक अंधविश्वास की तरह , दफ्तर का काया-कल्प कराता है; ये कुर्सी का मुख पश्चिम में करो, दीवारों पर गुलाबी रंग हो तमाम अंधविश्वास व काम न करने के बहाने ।दफ्तर की कार्य-व्यवस्था तो आप जानते ही हैं -वही रफ़्तार बेढंगी' ।
आज हमारे 'सिब्बल सर' भी यही चरितार्थ कररहे हैं। 'कुर्सी का मुख पश्चिम में करदो' सब ठीक होजायागा। शिक्षा व अध्ययन की गुणवत्ता बढ़ाने का फार्मूला ,वही पुराना,-भौतिक बस्तुएं व व्यवस्था बदलने का'। एक बोर्ड ख़त्म करके दूसरी व्यवस्था की कहीं से नक़ल लाकर रखदो । लो .जनता का ध्यान भी बाँट गया,नया काम भी होगया । उधार व नक़ल की व्यवस्था लादने का आसान काम ; कौन सिर खपाए -बच्चों की,शिक्षा की,शिक्षकों की,सांस्कृतिक,राजनेतिक ,भारतीयकरण की गुणवत्ता सुधारने में ,व्यक्ति-मात्र में अच्छा इंसान बनने की शिक्षा देने में,पाठ्यक्रमों में मानवीय -गुणों का समावेश कराने में।
कुर्सी ,कापी ,किताब ,बोर्ड,व्यवस्थाएं --जड़ पदार्थ हैं,उनमें स्वयं की गुणवत्ता नही होती ; वे तो" जेहि वर्तन में राखिये ढले उसी के रंग" ,गुणवत्ता तो जीवित मनुष्य का गुण है । जब तक मनुष्य को स्वयं में सुधार व अन्य के लिए आदर्श प्रस्तुत कराने की दशा व दिशा के ज्ञान की शिक्षा नहीं दीजायगी,शिक्षा व समाज में गुणवत्ता नहीं आसकती। व्यवस्था बदलने का अर्थ है समस्या से मुख फेरना। ६२ साल से यही होरहा है।

सोमवार, 7 सितंबर 2009

विराट कवि-समागम समारोह सम्पन्न ---

डा. श्याम गुप्त अपनेअगीत काव्य-उपन्यास ’शूर्पणखा" के बारे में व्याख्या करते हुए। साथ में संचालक महोदय एवम डा. रंगनाथ मिश्र ’सत्य’ ,व पार्थो सेन ।
<--(२)


-


(१)
-गत अगस्त २००९ को .भा.वैचारिक क्रान्ति मंच व्
.भा.अगीत परिषद् ,लखनऊ के तत्वावधान में ,स्वामी राम तीर्थ प्रतिष्ठान ,लखनऊ में उक्त समारोह सम्पन्न हुआ पढ़ें एक रिपोर्ट ---------> ---->(३)----------> नीचे--विडिओ देखने के लिये त्रिकोण पर क्लिक करें--

श्री मती सुषमा गुप्त गज़ल पढते हुए ।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

विघ्न विनाशक गणेश स्वयं किसे भजते हैं ---

समस्त संसार के प्रथम पूज्य ,विघ्न विनाशक गणेश स्वयं किसको भजते हैं? यों तो लौकिक रूप में वे अपने माता -पिता, शिव-पार्वती की पूजा करते हैं; वे गणनायक,पूजन योग्य उपासकों द्वारा भी पूजित हैं। वे सगुण -ब्रह्म पञ्च देवों में एक हैं, तथा भगवद-शक्त्याविष्ट आधिकारिक देव हैं। परन्तु उनकी सारी महिमा भी आदि-पुरूष ,पर-ब्रह्म की कृपा पर ही आधारित है। ब्रह्म-संहिता में सृष्टि आरम्भ के लिए ब्रह्माजी प्रार्थना करते हैं,--
" यत्पादपल्लवम युगं विनिधाय कुम्भ्द्वान्द्वे प्रणामसमये गणाधिराज |
विघ्नान विहंतुमल्मस्य जगत्त्र्यस्य गोविन्द्मादिपुरुष तमहं भजामि॥ "

-----तीनों लोकों के समस्त विघ्नों का विनाश करने हेतुशक्ति प्राप्त करने के लिए , जिनके चरण कमलों को श्री गणेश अपने मस्तक के दोनों कुम्भों पर धारण करते हैं , उन आदि-पुरूष गोविन्द का में भजन करता हूँ॥