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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

बालू में डूबा नगर -----तलाकाडा -कर्णाटक -भारत

अभी हाल में ही एक पोस्ट में जमैका में ४०० वर्ष पहले बालू में डूबे किसी नगर का वर्णन देकर बड़ा आर्श्चय व्यक्त किया गयाथा | वस्तुतः हम हर बात , ख़बर, घटना के लिए विदेशों की तरफ़ देखते हैं , अपना घर कभी नहीं |
----कर्णाटक (भारत -बंगलूर से १५० किलो.दूर-कावेरी नदी के किनारे -जिला मैसूर ) के गंगा -साम्राज्य ( लगभग३००-११०० डी; चोल साम्राज्य से पहले ) में उसकी राजधानी ' तलाकाडा' देखते ही देखते पूरी की पूरी बालू के ढेर में डूबगयी थी( सामान्य भारतीय कथ्यों की भांति -किसी आर्त नारी के श्राप के कारण ), आज कल उसे पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाईकरके पुनः निकाला जारहा है और यह एक अच्छे पर्यटन स्थल का रूप ले रहा है |

4 टिप्‍पणियां:

Aditya Gupta ने कहा…

Very Nice Article...
Thanks for posting it.

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

आपकी बातों से अक्षरश सहमत हूँ....पता नहीं हम भारतीय कब अपनी inferiority complex से बाहर आयेंगे.... जबकि सच्चाई यह है कि हम ज्यादातर मामलों में विदेशियों से कही बेहतर हैं.....लें हीन भावना से ग्रस्त हैं....आपका आलेख ज्ञानवर्धक है.....बहुत ही अच्छी जानकारी मिली है...उम्मीद है पुरातात्वेत्तावों का परिश्रम सफल हो जायेगा और भारत में एक और दर्शनीय स्थल उपलब्ध होगा...
डॉ. साहब आप मेरा हौसला बढ़ाते हैं इसके लिए आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ.....बहुत बहुत धन्यवाद...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद, अदा-

रचना दीक्षित ने कहा…

धन्यवाद बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने हम तो वो हैं की अगर विदेश में कोई भरतीय अच्छा काम करे तो हम उसे अपना बना लेते हैं और यहीं रह कर कुछ करना चाहे तो सुविधा नहीं देंगे और यही नहीं धरती पर जो अच्छा हो वो विदेशी ही करते हैं और अगर हमें छींक भी आ जाए तो विदेशी ताकतों का हाथ होता है
आभार