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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 6 दिसंबर 2009

काली आंधी के दिन-गंगा जमुनी तेहज़ीब और ६ दिसंबर ----विश्लेषण

आप ही देखिये सबसे नीचे के चित्र में , अखबार केसम्पादकीय को -किसने महज़ एक सम्पादक को हक़ दिया की ६ दिसंबर को देश भर से एकत्र, प्रजातंत्र देश की जनता को काली आंधी कहे , एक अदना व्यक्ति इस तरह स्वयंभू विद्वान् बन कर देश की जनता का अपमान करे औरस्वयं ही अपनी बढ़ाई करे ,गुण गाये | आपरेशन ब्ल्यू स्टार व ६ दिसंबर को एक अनैतिक क्रान्ति , फ्रांस की क्रान्ति से जोड़े | और ये गंगा -जमुना तहजीव क्या चीज़ है ? जो हर स्वयंभू सम्पादक, पत्रकार, छद्म सेक्यूलर , विद्वान् गाता फिरता है |क्या सिर्फ़ हिन्दू-मुस्लिम तहजीव ही गंगा-जमुनी है ,क्या यह तहजीव सिर्फ़ मुस्लिमों के भारत आने पर बनी ? यह तहजीव तो जब से गंगा-जमुना भारत में हें तभी से मौजूद है , यह मनुष्य-मनुष्य की , तहजीबहै , भारतीय तहजीव है ,आपको जीनासिखाती है , मानवता सिखाती है |इसका सम्मिलित तहजीव से क्या सम्बन्ध, हिन्दू-मुस्लिम से क्या सम्बन्ध |६ दिसंबर से क्या सम्बन्ध ?
और इन संपादकों को अपने ही अखबार में छपे अन्य लेख -' योद्दा बनें हर दलित ' जैसे भड़काऊ ,समाज विरोधी लेख या प्रतिदिन के काली आंधी वाले समाचार -ह्त्या, लूट,अपहरण, या क़ानून तोड़ने वाले 'मेरी मर्जी' नहीं दिखाई देते , मंथन या समीक्षा के लिए | वे ये सब भूले रहते हैं , क्यों ,कैसे , किसके लिए , कब तक ? आप ही सोचिये , समझिये , कहिये , बताइये।आख़िर क्यों आवश्यकता पड़ीं इसी समाचार व घटना के मंथन के लिए।



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