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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

कला प्रदर्शनी --हिन्दुस्तान ०७-०२-०९.

कम्पोजीशन -टू , मूड-थ्री , सेंड - स्टोन ; वही कलाकृति हिन्दुस्तान मैं सोच विचार अंग्रेजी मैं , अंग्रेजी गुलामी व हीन -भावना से हम कब मुक्त होंगे ? कब कलाकार आदि भारतीय बनेंगे ? व्यर्थ के अपरिपक्व चित्रों द्वारा कला का अपमान करते व सहते रहेंगे। एक मात्र पेंटिग 'स्तव्ध 'ही यथार्थ चित्रकारी है सीता विस्वकर्मा जी बधाई की पात्र हैं । दर्पण पर लगी धूल को बार -बार हटाना पड़ता है। तभी नए युगबोध व सामयिक अर्थ प्राप्त होते हैं ,व प्रगति की भूमिका बनते हैं। हम कब सुधरेंगे ,कब अपने स्वयं के विचार बनायेंगे ?, गुलामी से मुक्त होंगे?

पब ,प्रेम और सेना --हिन्दुस्तान --०७-०२-२००९

लेखक ने लिखा है कि लड़कियों पर अत्याचार करने वाले ---- ये तथाकथित प्रगतिवादी नहीं सोच पाते कि -पब में जाने वाली ,शराव पीने वालीं ,नग्न नृत्य करने वालीं लड़कियां नहीं -शूर्पन्खायें होतीं हैं, ताडका - होतीं हैं। दंड देना अत्यावश्यक है। बुराई को नव कालिका स्तर पर ही समाप्त करदेना ही अच्छे राज्य ,समाज व शाशन का कर्तव्य है , अन्यथा जड़ों के जम जाने पर स्वीकारने की मजबूरी लगने लगती है। ताडका का बध, शूर्पनखा का दंड का यही अर्थ है। वास्तविक ज्ञानी ,विचारक , चिन्तक व समाज सुधारक सोचें ,मनन करेंव समाज व मानवता को सही दिशा का युगवोधप्रदान करें
वसंतोत्सव , होली आदि का अर्थ - यह नहीं है किसड़कों पर हाथ मैं हाथ दाल कर घूमें व पब मैं शरावपियें । अति -स्वच्छंदता एवं खेलों पर अत्यधिक महत्व देने के कारण ही रोमन तथा मध्यकालीन प्राच्य भारतीय संस्कृति का विनाश सम्भव हुआ । क्या हम फ़िर वहीं जाना चाहते हैं ।