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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ज्यों गाडर की ठाट--

ऐसी गति संसार की ,ज्यों गाडर की ठाट ,
एक पडी जेहि गाडमैं ,सबै जाहिंतेहि बाट। ---कबीर दास ने क्या खूब कहा है। मुझे क्यों याद आरहा है? आज सुबह ही सुबह ,लालू की रेल के तमाशे देखने को मिलगये। इन मैनेजमेंट के स्कूल वालों को तो पैसे बटोरने हैं ,अतः लालू जैसे को भी मैनेजमेंट -गुरु ,कुछ भी बना सकते हैं। मैं ६० वर्षों से रेलवे को देखरहा हूँ ,पिछले ३७ बर्षों से अत्यन्त निकट से, परन्तु जैसी मिस -मैनेजमेंट कुछ वर्षों से रेलवे मैं है वैसा कभी नहीं था। आज ही गरीव-रथ ट्रेन आने पर ,न तो डिब्बों पर सीरिअल नंबर ही थे, जिन पर थे ग़लत -सलत पड़े थे , जी -६ पर जी ९ आदि -अन्दर सीटों के नंबर भी ग़लत थे । रेलवे स्टाफ को स्वयं कुछ नही पता था ,यात्री बार -बार एक कोच से दूसरे मैं अपना डिब्बा व सीट खोजते फ़िर रहे थे। जब एक ऐ सी ,स्वयं लालू की ट्रेन का मैनेजमेंट नहीं हो सकता तो ------। बस सब भेडचाल मैं एक दूसरे को गुरू कहे जारहे हैं.--यथा--
" उष्ट्रानाम लग्न वेलायाम ,गर्धभा स्तुति पाठका :
परस्पर प्रशन्शन्ति ,अहो रूपमहो ध्वनि ॥ " ----सिर्फ़ तमाम गाडियां चलाने से क्या होता है ,रख- रखाव तो बाबा- आदम के जमाने से भी ख़राब है।

जीत के लिए ५१% वोट -

बहुत सही लिखा है डॉ असगर अली ने -चुनावों मैं यदि जीत के लिए ५१% वोट मिलाने पर ही ,कैंडीडेट की पात्रता मानी जानी चाहिए ,उसके पश्चात ही आगे जीत के लिए वोटों की गणना करना चाहिए। चुनाव व नेताओं से सम्बंधित अधिकाँश समस्याएँ हल हो सकतीं हैं।