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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 13 मई 2009

श्याम मधुशाला

शराव पीने से बड़ी मस्ती सी छाती है ,
सारी दुनिया रंगीन नज़र आती है ।
बड़े फख्र से कहते हैं वो ,जो पीता ही नहीं ,
जीना क्या जाने ,जिंदगी वो जीता ही नहीं ।।

पर जब घूँट से पेट में जाकर ,
सुरा रक्त में लहराती ।
तन के रोम-रोम पर जब ,
भरपूर असर है दिखलाती ।

होजाता है मस्त स्वयं में ,
तब मदिरा पीने वाला ।
चढ़ता है उस पर खुमार ,
जब गले में ढलती है हाला।

हमने ऐसे लोग भी देखे ,
कभी न देखी मधुशाला।
सुख से स्वस्थ जिंदगी जीते ,
कहाँ जिए पीने वाला।

क्या जीना पीने वाले का,
जग का है देखा भाला।
जीते जाएँ मर मर कर,
पीते जाएँ भर भर हाला।

घूँट में कडुवाहट भरती है,
सीने में उठती ज्वाला ।
पीने वाला क्यों पीता है,
समझ न सकी स्वयं हाला ।

पहली बार जो पीता है ,तो,
लगती है कडुवी हाला ।
संगी साथी जो हें शराबी ,
कहते स्वाद है मतवाला ।

देशी, ठर्रा और विदेशी ,
रम,व्हिस्कीजिन का प्याला।
सुंदर -सुंदर सजी बोतलें ,
ललचाये पीने वाला।

स्वाद की क्षमता घट जाती है ,
मुख में स्वाद नहीं रहता ।
कडुवा हो या तेज कसैला ,
पता नहीं चलने वाला।

बस आदत सी पड़ जाती है ,
नहीं मिले उलझन होती।
बार बार ,फ़िर फ़िर पीने को ,
मचले फ़िर पीने वाला।

पीते पीते पेट में अल्सर ,
फेल जिगर को कर डाला।
अंग अंग में रच बस जाए,
बदन खोखला कर डाला।

निर्णय क्षमता खो जाती है,
हाथ पाँव कम्पन करते।
भला ड्राइविंग कैसे होगी,
नस नस में बहती हाला।

दुर्घटना कर बेठे पीकर,
कैसे घर जाए पाला।
पत्नी सदा रही चिल्लाती ,
क्यों घर ले आए हाला।

बच्चे भी जो पीना सीखें ,
सोचो क्या होनेवाला, ।
गली गली में सब पहचानें ,
ये जाता पीने वाला।

जाम पे जाम शराबी पीता ,
साकी डालता जा हाला।
घर के कपड़े बर्तन गिरवी ,
रख आया हिम्मत वाला।

नौकर सेवक मालिक मुंशी ,
नर-नारी हों हम प्याला,
रिश्ते नाते टूट जायं सब,
मर्यादा को धो डाला।

पार्टी में तो बड़ी शान से ,
नांचें पी पी कर हाला ।
पति-पत्नी घर आकर लड़ते,
झगडा करवाती हाला।

झूम झूम कर चला शरावी ,
भरी गले तक है हाला ।
डगमग डगमग चला सड़क पर ,
दिखे न गड्डा या नाला ।

गिरा लड़खडाकर नाली में ,
कीचड ने मुंह भर डाला।
मेरा घर है कहाँ ,पूछता,
बोल न पाये मतवाला।

जेब में पैसे भरे टनाटन ,
तब देता साकी प्याला ।
पास नहीं अब फूटी कौडी ,
कैसे अब पाये हाला।

संगी साथी नहीं पूछते ,
क़र्ज़ नहीं देता लाला।
हाथ पाँव भी साथ न देते ,
हाला ने क्या कर डाला।

लस्सी दूध का सेवन करते ,
खास केसर खुशबू वाला।
भज़न कीर्तन में जो रमते ,
राम नाम की जपते माला।

पुरखे कहते कभी न करना ,
कोई नशा न चखना हाला।
बन मतवाला प्रभु चरणों का,
राम नाम का पीलो प्याला।

मन्दिर-मस्जिद सच्चाई पर,
चलने की हैं राह बताते।
और लड़ खडा कर नाली की ,
राह दिखाती मधुशाला।

मन ही मन हैं सोच रहे अब,
श्याम क्या हमने कर डाला।
क्यों हमने चखलीयह हाला ,
क्यों जा बैठे मधुशाला॥