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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 22 मई 2009

कैनवास पर कविता

हिन्दी संस्थान, लखनऊ में जिन ,तथाकथित प्रसिद्ध चित्रकारों के चित्र हिन्दुस्तान अखवार ने दिए हैं ,निश्चय के साथ कहा जा सकता है किचारों चित्रों-पेंटिंग्स को किसी कवि को दिखाया जाय तो वह इन से सम्बब्धित इन कविताओं को किसी तरह से याद नहीं कर पायेगा। चित्रों व कविताओं -जिन पर वे बनाए गए हैं-में कोई सम्बन्ध नहीं है। सिर्फ़ पेंटर के अपने मष्तिष्क में व्याख्या से क्या होता है, सामान्य जन यदि सम्बन्ध नही कर पाता तो कला व्यर्थ ही है। जिस मानव के लिए ,कविता व कला है -क्या उसका पेंटिंग में होना आवश्यक नहीं है ? मानव रहित चित्र क्या अर्थ हीन कला नहीं है? क्या आज कल का कोई भी चित्रकार ,राजा रवि वर्मा आदि --जो सदैव मानव के साथ ,मानव से सम्बंधित कलाकृतियाँ सृजित करते थे ---की टक्कर का है? आज कौन सी कलाकृति उस टक्कर की है ? मानव के लिए ,मानव रहित कला का कोई प्रयोजन नहीं। कला कविता के जन से दूर व ह्रास का मुख्य कारण ही कवि व कलाकारों का अपने स्वयम्भू तात्पर्य, संयोजन ,उल्टे-सीधे व्याख्यात्मक व कवि-लेखक --पत्रकार-अखवार-व संस्थानों के अंतर्संबंध ,ताकि व्यर्थ की चित्रकारी ,अनुपयुक्तता को ढंका जा सके,,,आदि -आदि है।
कुछ मनोहारी ,तथ्यात्मक ,मानव के नज़दीक कला व कविता हो तो बात बने ,अन्यथा तो---
"" उष्ट्रानाम लग्न -वेलायाम ,गर्धभा स्तुति पाठका ;
परस्पर प्रशन्शन्ति ,अहो रूप महो ध्वनि ॥ ""