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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 3 जून 2009

श्रृष्टि व जीवन की उत्पत्ति --एक अनुत्तरित उत्तर .

जब मानव (अड़म्स ,आदम ,मेन,मनु) ने ,माया ( हब्बा , या ईव या श्रृद्धा ) के कहने पर ज्ञान का फल चखा ,उसे ईडन गार्डन से निकाल दिया गया। जब उसने प्रकृति के विभिन्न रूपों को भय,रोमांच ,कौतूहल व आश्चर्य से देखा और सोचा --कौन ?, कस्मै देवाय ? उसी क्षण ईश्वर का आविर्भाव मानव मन में हुआ, और उसकी खोज के परिप्रेक्ष्य में श्रृष्टिव जीवन की उत्पत्ति का रहस्य जानना प्रत्येक मष्तिस्क का लक्ष्य बन गया । इसी उद्देश्य यात्रा में मानव की क्रमिक उन्नति,दर्शन व विज्ञान के आविर्भाव की गाथा है। आधुनिक विज्ञान हो या पुरा .वैदक विज्ञान ,इस यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजना ही उसका चरम लक्ष्य है। इसका निरूपण ही इस आलेख का उद्देश्य है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार --ब्रह्माण्ड कीउत्पत्ति "बिग-बेंग सिद्धांत " के अनुसार हुई । (स्टीफन वेन बर्ग व अन्य ) प्रारंभ में ब्रह्माण्ड एकात्मकता में स्थित ,शून्य आकार , व अनंत ऊर्जा व ताप संपन्न था। --
१.-बिग-बेंग --असीम ऊर्जा व ताप की अति प्रबलता से एक विष्फोट हुआ ,एवं एक सेकंड के १००वे भाग में ताप १०० बिलियन सेंटी - होगया , असीम ऊर्जा एवं विकिरण के उत्सर्जन से प्रारम्भिक कण बने एवं एक दूसरे से दूर छिटकने लगे। ये कण -हलके कण ,इलेक्ट्रोन, पोसित्रोन, फोटोन,(प्रकाश कण )व आवेश रहित न्यूट्रिनो थे जो बराबर संख्या में व हलके कण थे, व स्वतंत्र ऊर्जा द्वारा लगातार बन रहे थे।
२.एनिहिलेशन --कणों के एक दूसरे से दूर -दूर जाने से ताप तेजी से कम होने लगा , १/१० वे सेकंड में ताप काफी कम होने से एनिहिलेशन प्रक्रिया से भारी कण बनने लगे ,जो अणु-पूर्व कण , मुख्यतः प्रोटोन व एलेक्त्रोन थे ।
३.जटिल केन्द्रक कण --बिग-बेंग के १४ वे सेकंड में काफी तापमान गिर जाने से पुनः काफी मात्रा में ऊर्जा व एलेक्ट्रोन और प्रोटोन बने ,साथ ही एक जटिल केन्द्रक कण , न्युक्लिओन बने। इसी समय १ प्रोटोन +१ न्युत्रोन से हाइड्रोजन कण व २ प्रोटोन +२ न्युत्रोन से हीलियम कण बनने प्रारंभ हुए।
४.तीन मिनट के अंत में -- बिग-बेंग के तीन मिनट के अंत में ,सब ओर--उपस्थित थे -
-----हलके कण ,न्यूट्रिनो -प्रति-न्यूट्रिनो ; बहुत से लघु केन्द्रक कण सहित ,भारी कण प्रोटोन व एलेक्ट्रोन तथा
७३ % हाइड्रोजन कण और २७ % हीलियम कण । इनके आपस में जुड़ने(क्लाम्पिंग ) से गेलेक्शी व तारे आदि बनने का क्रम प्रारंभ हुआ।
५.कुछ घंटों बाद (सृष्टि क्रम स्थिर होगया )--बिग-बेंग के कुछ घंटों बाद , तापमान अत्यधिक कम व शीतलता बढ़ जाने से हाइड्रोजन बनना बंद होगया तथा लाखों वर्षों तक सृष्टि -क्रम रुका रहा।
६.प्रथम परमाणु -युगों पश्चात ,अत्यधिक शीतलता बढ़ जाने पर ,उपस्थित प्रोटोन,धनात्मक आवेश के साथ ,लघु केन्द्रक के साथ संयुक्त होगया एवं एलेक्ट्रोन ,ऋणात्मक आवेश के साथ उसक्का चक्कर लगाने लगा । इस प्रकार प्रथा परमाणु बने। ये हाइड्रोजन व हीलियम तत्वों के थे, तथा विचरण करने लगे। परमाणु कणों के आपसी टक्करों से पुनः ऊर्जा व ताप की उत्पत्ति हुई और हलके,भारी कण व हाइड्रोजन-हीलियम व उनसे गेलेक्शी आदि बनने लगे । परिणामी प्रभाव यह था-
-----न्यूट्रिनो +प्रति न्यूट्रिनो +घनीभूत ऊर्जा =ठोस कण व पदार्थ -तारे ग्रह आदि बने।
-----एलेक्ट्रोन +पोजित्रोन + ऊर्जा = तरल ,कम घनत्व के पदार्थ -जल आदि
------फोटोन +शेष ऊर्जा = हलके ,कम घनत्व के पदार्थ ,नेब्युला ,गेलेक्सी आदि। इस प्रकार विभिन्न रासायनिक संयोगों ,प्रक्रियाओं से क्रमशः अणु ,पदार्थ आदि बनते गए।
पुनः ekatmakataa (singularity) या लय ;-क्योंकि ये कण लगातार दूर दूर होते जारहे हैं ,अतः कालांतर में अत्यधिक शीतलता होजाने पर कणों आपसी आकर्षण समाप्त होने पर वे पुनः अपने आदि कणों में बिखंडित होकर आपस में एकत्र ( कोलेप्स )होकर एकात्मक श्रृष्टि की अवस्था में आजाते हैं पुनः नवीन बिग-बेंग के लिए तैयार और सृष्टि क्रम चलता रहता है।
जीवन- विज्ञान के अनुसार - पृथ्वी पर जीवन नहीं था । क्योंकि मुक्त ऑक्सीजन नहीं थी। --समुद्र की किसी गहराई में मेक्रो -मोलेक्युल ,दीर्घ अणु ,शायद जल की आक्सीजन से जटिल प्रक्रिया द्वारा स्वयं को जनित किया एवं प्रथम एक कोशीय जीवन की संरचना -पुनः विकास वाद से मानव तक की उत्पत्ति हुई। अथवा धूम्रकेतु आदि आकाशीय पिंडों से जल में जीवन आया व बिकसित हुआ।
सिद्धांत में छिद्र (लूप-होल्स )--
१.-प्रथम एकात्मकता पिंड जो विष्फोट हुआ कहाँ से आया।
२.-ऊर्जा से प्रथम कण क्यों व कैसे बने ,
३.-अन्तरिक्ष में जीवन कहाँ से आया ।
--------अगले आलेख में -सृष्टि व जीवन की उत्पत्ति पर वैदिक -विज्ञान की क्या मान्यताएं है , इस पर विवेचना की जायगी। जहाँ उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर भी तार्किक रूप में मिलते हैं।











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