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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

नीरवता की धड़कन ---डा श्याम गुप्ता की कविता -----

जग की भीड़-भाड़ से होकर,
दूर अगर तू शान्ति चाहता |
जग की भीड़-भाड़ से होकर ,
त्रस्त अगर विश्रांति चाहता |

आजाओ इस निर्जन वन में ,
नदी किनारे खुले गगन में |
नीरवता के मौन -मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |

चुप-चुप इस निश्शब्द सघन में,
तन-मन की विश्रांति मिलेगी ||

चुप-चुप चन्दा चले ताल में,
नीरवमय आलोक बहाए |
चुप चुप चपल चांदनी चम-चम,
नदिया के जल को चमकाए |

पादप गण निस्तब्ध खड़े हैं ,
नीरवता हो स्वयं सोरही |
रह रह पवन बहे चुप सर सर,
नीरवता हो साँस ले रही |

किसी रात्रिचर के चलने से,
पत्ता जब चुप चाप खड़कता |
'मुझ में भी जीवन है ',कहने,
नीरवता का ह्रदय धड़कता |

सारस और वकों के जोड़े ,
एक टांग पर खडे सोरहे |
जैसे ध्यान धरे योगीजन ,
आत्म ज्ञान में लीन होरहे |

इस नीरव निश्शब्द विजन में,
अपने अन्तर में खोजायें |
आत्म लीन जब चित हो जाए,
मन के मौन मुखर होजायें |

अनहद का संगीत बजे जब,
कानों में बन कर शहनाई |
परम शान्ति का अनुभव होगा ,
जैसे मिले मोक्ष सुखदाई |

नीरवता के मौन मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप चुप इस निस्तब्ध विजन में ,
तन मन की विश्रांति मिलेगी ||