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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

कल का आज, टाई वाला समाज...--

ऊपर चित्र देखिये व सोचिये --

१। क्यों न हो यह--उसे भी टाई खरीदने को एक्सट्रा पैसे चाहिए?
२.अपना काम कारने में क्या बुराई है, काम कोई या बुरा नहीं होता |
३. प्रारम्भ से चलेंगे तभी तो आगे बढ़ेंगे , जूते पालिस करके भी राष्ट्रपति बनते हैं , उचित ख्वाब दिखाइये , ऊंचे नहीं
४.आज कर्म करेंगे तभी तो कल बनेगा |

वैज्ञानिक सोच नहीं , मानवीय सोच होनी चाहिए----

विज्ञान कहाँ नहीं है ? पल-पल जीवन मैं विज्ञान की ही आवश्यकता होती है , जीवन के भौतिक रूप के लिए | अतः वैज्ञानिक सोच का कोई अर्थ नहीं , वह एकांगी सोच की दिशा बताते है | वस्तुतः जब तक मानवीय सोच विक्सित नहीं होगी तब तक मानव ,व्यवहार व कृतित्व में स्पष्टता व शुचिता नहीं आयेगी जो मानव को उच्च धरातल पर उठाने के लिए अत्यावश्यक है।
-----ऊपर समाचार चित्र में एक वैज्ञानिकउन्नति पूर्ण देश की सोच ,अधुना सेलेब्रिटी ( सो कोल्ल्ड -हम तो नहीं समझते ) खिलाड़ी , पोर्न स्टार ( अब पोर्न में भी स्टार होने लगे -क्या आधुनिक वैज्ञानिक सोच है!)के कारनामों को पढ़िए,देखिये सोचिये , -कर्म करने वाले , छापने वाले संपादकों की सोच को । नाली के कीड़े नाली में ही रहेंगे |
----आख़िर क्यों हम एसे मूर्खता पूर्ण समाचारों को यहाँ छापें? छपने दें ? एसे अनावश्यक लोगों ( यह बात सभी खिलाड़ियों ,एक्टरों ,नेताओं ,खेल, सिनेमा आदि पर लागू होती है) को अनावश्यक महत्त्व देने, कम उम्र में कुछ उपलब्धियां पालेने से( जिन्होंने अभी मानवीयता का पाठ , उम्र का अनुभव आदि जाना ही नहीं ) यही होता है, अहं व अति-सुखाभिलाषा , लालच ,मोह, विषयासक्ति की उत्पत्ति।हम एकांगी व अविचारी सोच के कारण ज़रा सी उपलब्धि पर इन्हें आसमां पर उठा लेते हैं जबकि दूसरे दिन ही वे फुस्स होजाते हैं। वे हमारे आदर्श पुरूष भाव कहाँ गए, क्यों ? जो हम इन नाली के कीड़ों को देख व छाप रहे हैं