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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 28 दिसंबर 2009

स्त्री -पुरुष सम्बंध पर विवेचना---डा श्याम गुप्त

आज कल स्त्री -पुरुष सम्बन्धों , स्त्री पर अत्याचारों,बन्धन,प्रताडना, पुरुष प्रधान समाज़, स्त्री स्वतन्त्रता , मुक्ति,बराबरी, आदि विषयों पर कुछ अधिक ही बात की जा रही है, आलेख, ब्लोग,पत्रिकायें, समाचार पत्र आदि में जहां नारी लेखिकाएं जोर शोर से अपनी बात रख रहीं है वहीं तथाकथित प्रगतिशील पुरुष भी पूरी तरह से हां में हां मिलाने में पीछे नहीं हैं कि कहीं हमें पिछडा न कह दिया जाय( चाहे घर में कुछ भी होरहा हो )।भागम-भाग, दौड-होड की बज़ाय, क्रिपया नीचे लिखे बिन्दुओं पर भी सोचें-विचारें----
१, क्या मित्रता में ( पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री या स्त्री-पुरुष कोई भी ) वास्तव में दोनों पक्षों में बरावरी रहती है ---नहीं--आप ध्यान से देखें एक प्रायः गरीब एक अमीर, एक एरोगेन्ट एक डोसाइल, एक नासमझ एक समझदार,एक कम समर्पित एक अधिक पूर्ण समर्पित --होते हैं तभी गहरी दोस्ती चल पाती है । बस बराबरी होने पर नहीं।वे समय समय पर अपनी भूमिका बदलते भी रहते हैं, आवश्यकतानुसाअर व एक दूसरे के मूड के अनुसार। ।
२, यही बात स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पति-पत्नी मित्रता पर क्यों नहीं लागू होती?----किसी एक को तो अपेक्षाक्रत झुक कर व्यवहार करना होगा, या विभिन्न देश,काल, परिस्थियों, वस्तु स्थितियों पर किसी एक को झुकना ही होगा।यथायोग्य व्यवहार करना होगा । जब मानव गुफ़ा-जन्गल से सामाज़िक प्राणी बना तो परिवार ,सन्तान आदि की सुव्यवस्था हेतु नारी ने स्वयम ही समाज़ का कम सक्रिय भाग होना स्वीकार किया( शारीरिक-सामयिक क्षमता के कारण) और पुरुष ने उसका समान अधिकार का भागी होना,व यथा-योग्य, सम्मान, सुरक्षा का दायित्व स्वीकार किया|---


---वस्तुतः आवश्यकता है , मित्रता की, सन्तुलन की , एक दूसरे को समझने की,यथा योग्य, यथा स्थिति सोच की,स्त्री-पुरुष दोनों को अच्छा, सत्यनिष्ठ, न्यायनिष्ठ इन्सान बनने की। एक दूसरे का आदर, सम्मान,करने की, विचारो की समन्वय-समानता की ताकि उनके मन-विचार एक हो सकें । रिग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""---अर्थात हे मनुष्यो ( स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी , राजा-प्रज़ा आदि ) आप मन,बुद्धि,ह्रदय से समान रहें , समान व्यवहार करें,परस्पर सहमति से रहें ताकि देश, समाज़, घर,परिवार सुखी, सम्रद्ध, शान्त जीवन जी सके ॥
कवि ने कहा है---
”’ जो हम हें तो तुम हो सारा जहां है,
जो तुम हो तो हम हैं सारा जहां है ।"" -----