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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

डा श्याम गुप्त का एक पद ...ब्रजभाषा ...

संतन देखि जिया हरसावै |
सत संगति में तन मन हरसै, अमित तोस उपजावै |
संतन की महिमा का कहिये मन के कलुस नसावै
संतन की बानी रस बरसै , अंतर मन सरसावै
संतन संग मन भक्ति,ज्ञान करम नीति गुन पावै
संत कृपा सुख मिलै जेहि नर, सोई सतगुरु पावै
कहा श्याम' मानुस तन पाए, जेहि सतसंग भावै

4 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति....आभार

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

संत कृपा सुख मिलै जेहि नर, सोई सतगुरु पावै ।
कहा श्याम' मानुस तन पाए, जेहि सतसंग न भावै ॥

बहुत ही उपयोगी कथन .....संत की महिमा का .....!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

श्याम गुप्ता जी
नमस्कार !
अच्छी छांदसिक रचनाओं के लिए आभार और बधाई !
संतन देखि जिया हरसावै
प्रस्तुत रचना में संतजन के प्रति आपकी आस्था , श्रद्धा , भक्ति एवं विश्वास का भरपूर दिग्दर्शन हो रहा है ।
ईश्वर करे इस पर आंच न आए … क्योंकि संत - रूप की आड़ में बहुत सारे अवसरवादी भी आसीन पाए जाते हैं ।
एक छंद - साधक के रूप में मैं आपका हृदय से स्वागत करता हूं …


शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद, स्वर्ण्कार जी --अवसर्वादी को तो संत कहा ही नहीं जा सकता।--स्वर्ण में तोल कर संत खोजें।