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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

डॉ श्याम गुप्त की कविता ...प्रेम गली...

वर्ष की अंतिम पोस्ट--- प्रेम-प्रीति , सौहार्द, भाई चारा, सामंजस्य,विनम्रता,आदर,त्याग,परोपकार, सहिष्णुता,विश्वास, श्रृद्धा आदि सभी प्रेम के ही बीज-रूप हैं। यही समाज, राष्ट्र,देश,संस्कृति के स्थायित्व, गति व उत्थान के भी कारक रूप हैं। सृष्टि,जीवन, जगत,सत्य,अहिंसा ,दर्शन, धर्म ,ज्ञान-विज्ञान , अध्यात्म, आत्म-तत्व,अमृतत्व,ईश्वर, ब्रह्म ...जिनसे आनंद की प्राप्ति होती है ...सब उसी प्रेम के रूप हैं। ....प्रेम पुमर्थो महान.....प्रेम ही ईश्वर,भगवान्, अल्लाह , खुदा , ओंकार है ---

प्रेम गली

प्रश्न यह मन में था कौन है प्रभु कहाँ?
मैं लगा खोजने,खोजा सारा जहां

ज्ञान और तर्क के,भाव के कर्म के,
मार्ग खोजे सभी स्वर्ग और नर्क के
मंदिर मस्जिद में ढूंढा मैंने उसे,
पूजा-अर्चन में खोजा मैंने उसे
मैंने खोजा उसे तंत्र में मन्त्र में ,
बीजकों के कठिन ज्यामितीय यंत्र में
गलियों -राहों में मैंने ढूंढा उसे,
चाह में नित नए सुख की ढूंढा उसे
ढूंढा नव ज्ञान में,मान अभिमान में,
सागर आकाश में , सिद्धि सम्मान में

हर जगह उसको ढूंढा यहाँ से वहां,
उसको पाया नहीं, ढूढा सारा जहां

काबा-काशी गए,और सिज़दे किये,
वेद की उन ऋचाओं में ढूढा किये
शास्त्र गीता पुराणों में खोजा किये,
गीत संगीत छंदों में झूमा किये
ढूंढा हमने उसे फूल में शूल में,
पत्र-गुल्मों में, और बृक्ष के मूल में
खोजते हम रहे माया संसार में,
मन-मुकुर और मानव के व्यवहार में
ढूंढा हमने उसे योग में, भोग में,
ब्रह्म में मोक्ष और हर खुशी शोक में

उसको पाया नहीं ढूंढा सारा जहां,
प्रश्न यह मन में था,कौन है प्रभु कहाँ?

प्रेम की जब गली में हम जाने लगे,
प्रीति के स्वर जब मन में समाने लगे
हमको एसा लगा , पास में ही कहीं,
ईश-वीणा के स्वर गुनगुनाने लगे
प्रेम सुरसरि की रसधार में हो मगन,
उन शीतल सी लहरों में हम बह गए
प्रभु के बन्दों की हम पूजा करने लगे,
उसकी हर सृष्टि से प्रेम करने लगे
सारे संसार में प्रेम सरिता बही,
कण कण से प्रेम के पुष्प झरने लगे

प्रश्न सारे ही मन के सरल होगये,
प्रेम के उन क्षणों में ही प्रभु मिल गए

प्रेम ही ईश है, प्रेम संसार है,
वह जीवन है, जीवन की रसधार है
प्रभु बसे प्रेम में,प्रीति और प्यार में,
प्रेम के रूप में मुझको प्रभु मिल गए

प्रश्न यह मन में था,कौन है प्रभु कहाँ,
मैं लगा खोजने, खोजा सारा जहां
प्रेम के भाव में मुझको प्रभु मिल गए,
प्रश्न मन के सभी ही यूं हल होगये

गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

वर्षांत में उपलब्धि दोहे...डा श्याम गुप्त....

धन साधन की रेल में भीड़ खचाखच जाय
धक्का-मुक्की धन करे, ज्ञान नहीं पाय

हम स्वतंत्र अडवांस हैं,मन में गर्व असीम
किन्तु ढूँढते रहगये, दरवाजे का नीम

श्रम आधारित व्यवस्था,जो आश्रम कहलाय
सुख साधन अभिचार के, अड्डे दिए बनाय

राजनीति में नीति का ,कैसा अनुपम खेळ
ऊपर से दल विरोधी, अन्दर अन्दर मेल

आरक्षण की आड़ में, खुद का रक्षण होय
नालायक सुत पौत्र सब, इस विधि लायक होय

सक्षम नारी भी बनें, विज्ञापन बाज़ार
मज़बूरी है कौन सी, बिकैं खुले बाज़ार

क्यों घबराये हो रही, भ्रष्टाचार की जांच
भ्रष्टाचारी बंधु सब, तुझे आये आंच

ज्ञान हेतु अब ना पढ़ें, पढ़ें चाकरी हेतु
लक्ष्य नौकरी होगया,लक्ष्मी बनी है सेतु

चाहे पद-पूजन करो,या साष्टांग प्रणाम
काम तभी बन पायगा, चढे चढ़ावा दाम

मेल परस्पर घटि गयो, वाणिज मन हरसाय
मेल-मिलाप करायं हम, पानी-दूध मिलाय१०

पनघट ताल कुआं मिटे, मिटी नीम की छाँह
इस विकास की लहर में उजाड़ा सारा गाँव११

दानवता से लढ़ रहे, सज्जन अजहुँ तमाम
श्याम' आज भी चल रहा, देवासुर संग्राम१२

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

रिश्ता सारमेय सुत का...डा श्याम गुप्त की कहानी..

























---चित्र साभार...

रिश्ता सारमेय सुत का...

कालू कुत्ते ने झबरीली कुतिया का गेट खटखटाया और बोला,-
'भौं .s.s.भौं ऊँ भुक -अरे कोई है। '
झबरीली ने गेट की सलाखों के नीचे से झांका और गुर्राई, 'भूं ऊँ ऊँ भौं, कौन है ?'
भूं s भुक , मैं कालू ।
ओ s sभूं अक , क्या है, क्यों आये हो?
रिश्ता लाया हूँ , कालू बोला,मेरी बेटी शरवती की आपके झबरू बेटे के साथ जोड़ी अच्छी रहेगी। क्या ख्याल है। झबरू भी शरबती के आगे पीछे घूमता रहता है।
झबरीली इन्जीनियेर शर्मा साहब की कोठी में रहने वाली बड़े बड़े बालों वाली सफ़ेद अच्छी नस्ल की कुतिया थी। इठला कर गुर्राई,'भूं .s.s.भौं s sऔं भूट, तो इससे क्या , कालू कहीं का । चल हट, मेरा बेटा कोठी में पला-बढ़ा , साहबों की सोहबत में है, तू फटेहाल झौंपडी में रहने वाला कुत्ता! तेरी क्या मजाल । बड़ा आया। तेरे पास क्या है देने को? क्या दहेज़ देगा? कल ही नीलू कुतिया अपनी मिंकी बेटी का रिश्ता लाई थी। शगुन पर ही चांदी का पट्टा देने की बात कर रही थी।
भौं s s अंग.. भट, दो हड्डियां है मेरे पास, दावत के लिए, झोंपड़ी के पीछे दबा कर रखी हैं । पर ये दहेज़ क्या होता है? कालू असमंजस में पड़कर बोला।
भूं .s.s..s भू...अक:॥, अरे तभी तो। तुम गली के छोटे लोग हो, बड़े घरों की बातें कहाँ जानते हो। चल हट, बड़ा आया।
बातें सुनकर इधर-उधर के कुछ कुत्ते भी एकत्र होगये थे । अरे, ये आदमियों के चोंचले हैं । पड़ोस के सिल्की कुत्ते ने भों भों करके बताया। आदमी लोग बेटों की शादी में खूब माल काटते हैं सोना, चांदी,कार, नकद रुपया-पैसा के साथ ही बेटे की शादी करते हैं। जो भी अधिक से अधिक दे सके..... ।
हाँ हाँ , 'उस दिन जब में कोठी न. सोलह के साहब के यहाँ दावत में फैंकी हुई मिठाई, पूड़ी, सब्जी के मज़े लेरहा था तो मैंने भी सुना कि साहब को खूब माल व इम्पोर्टेड कार मिली है। कोई पच्चीस लाख की शादी थी । ' ब्राउनी कुत्ता बोला।
' पर जो देते हैं वे इतना सारा माल लाते कहाँ से होंगे। ' कालू ने पूछा।
'कुछ . दो का चक्कर है मैंने कुछ लोगों को यह भी कहते सुना था।' ब्राउनी बोला।
;यार ! ये आदमी भी अजीब , वेवकूफ जानवर है, मिठाई, पूड़ी आदि खाना, आखिर ये लोग फैंकते ही क्यों हैं? क्या मिलता इन्हें इसमें । '
'चलो हमारे लिए तो मज़े ही रहते हैं। '
' हाँ सो तो है। पर हमारे साथ कुछ दुबले-पतले किस्म के इंसान भी तो टूट पड़ रहे थे उस खाने पर। क्या उन लोगों के पास इतना खाना नहीं होता।' ब्राउनी बोला।
'पता नहीं, ये इंसान भी विचित्र प्राणी है। कोई खूब खाना फैंकता है, कोई फैंके हुए को उठाता है। इसमें भी उसका कुछ मतलब ही होगा। क्योंकि मैंने सुना है कि आदमी बड़ा चतुर जानवर होता है, कोई काम बिना मतलब के नहीं करता।' सिल्की ने बताया।
' हो सकता है कोठी वाले आदमी लोग भी किसी के पालतू होते होंगे, जैसे झबरीली कुतिया और ये दुबले-पतले इंसान हमारी तरह गली झौंपडी वाले जानवर।' पप्पी पिल्ले ने अपना दिमाग लड़ाया ।
'हो..हो..हो॥, सब हंसते हुए भोंके, ये आदमी की लाइफ भी हम कुत्तों जैसी ही है ' पर इनके गले में पट्टा तो नहीं दिखाई देता। ' ब्राउनी हंसते हुए बोला। 'शायद इनको पालने वाला जानवर इनसे भी अधिक चतुर होता होगा'
'भुक..भुक...भुक .s.s.और हम कुत्ते दहेज़ भी तो नहीं माँगते,बेटियों को नहीं जलाते। इसमें तो आदमियों से अच्छे ही हैं। अब सोलह न. वाले साहब को शादी में इतना मिला फिर भी साल भर बाद ही बहू को जलाने की कोशिश में जेल में हैं। ' ब्राउनी ने बताया।
' वो तो भला हो भूरा का,' लंगडाकर धीरे धीरे आता हुआ चितकबरा कुत्ता बोला,'जो रात में भौंक भौंक कर सारा मोहल्ला जगा दिया, और बहू-बिटिया बच गयी। पड़ोस की पढी-लिखी सुमन दीदी, जो समाज-सेवा का काम करती है ; और वो जाने क्या होता है, नारी जागरण, के भाषण देती रहती है; अचानक जाग गयी और कुत्ता क्यों जाने लगातार भोंक रहा है, यह देखने दौड़ी चली आई। वरना ये लोग तो महीनों से हरकत कर रहे थे कोई आदमी बीच में पड़ने नहीं आया। '
' कृष्णा ..कृष्णा..एसा नीच कुकर्म, कमीना कुत्ता कहीं का। '
' भों.s..s.भौं .sss.. क्यों कुत्तों को गाली दे रहा है।' सिल्की गुर्राया।
'भूं.n.n..भूं..n.अक..सारी' , कालू सकपका कर बोला, 'मेरा मतलब था आदमी कहीं का'
'अजीव है ये आदमी भी' , कालू सोचते हुए बोला, 'अपने भाई बंधुओं से ही दुश्मनी निकलता है,अपनी ही बहू-बेटियों को बिकने, जलने, मरने देता है। और कहावत बना रखी है,'क्यों कुत्तों की तरह लड़ते हो'; 'क्या इनका राजा या मुखिया नहीं होता,वो कुछ नहीं कहता?'
राजा..s..s..s.चितकबरा सोचते हुए बोला,' आदमी लोग स्वयं अपने राजा होते हैं,आज कल इनके यहाँ वो न जाने क्या है...मन्त्र या तंत्र व्यवस्था ; बड़ी अजीब सी चीज है। ये लोग स्वयं को वोट जैसी कुछ चीज देते हैं और खुद ही राजा बन जाते हैं। कोई भी राजा बन जाता है। न कोई पराक्रम ,न विद्वता मंडली की या गुरु मंडली की कोई सलाह ली जाती है। न राजा का बेटा ही राजा होता है। भीड़ जिस तरफ होती है वही राजा बन जाता हैऔर कई बार तो साल में चार चार बार राजा बदल जाता हैकौन किसे मना करे, कौन किसे दंड दे। '
' ये तो अंधेर नगरी वाली बात हुई। पर हम क्यों उनकी हरकतों को अपना रहे हैं?' सिल्की बोला।
' अरे भाई! एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। अपनी जाति या समाज के पतन के लिए स्वयं हमारे काम ही तो जिम्मेदार होते हैं। ' अब देखलो साहबों के यहाँ रहने के कारण ही वो झबरीली को घमंड व दहेज़ जैसी बीमारी लग गयी है। मनुष्य तो कुत्तों को अपने स्वार्थ के लिए पालता है,गुलामी कराने को और उनकी गंदी आदतें
कुत्तों में आ जाती हैं। अगर इसे शीघ्र ही नहीं रोका गया तो देखा-देखी अन्य कुत्तों में भी यह बीमारी फ़ैल सकती है। ' भूरा बोला,' आदमी शायद सभी जानवरों से बुरा है। '
' झबरीली तो बुरी तरह से बिगड़ गयी है। बस आदमियों के पीछे पीछे घूमती रहती है। उन्हीं की तरह बात करने की कोशिश करती है। अपने को आदमी ही समझने लगी है। बिस्कुट का नाश्ता,दूध-रोटी का लंच-डिनर, आदमी के खाने की अच्छी अच्छी चीज़ों के स्वाद में लालच ने इसे पागल कर दिया है। साहब ने कोट भी बनवा दिया है,साहब बनी घूमती है और गुलामी का पट्टा व ज़ंजीर गले में बांधे अपनी शान समझती है। अच्छा खाना, पहनना, सोने के लालच में अपना कुत्तापन भी भूल गयी है। और बिगडैल आदमी की तरह बनती जारही है। कुत्तों से तो बात ही नहीं करती, नकचढी कहीं की। ' ब्राउनी कुत्ता बोला।
' राम...राम ..एसा दुष्कृत्य और नीचता की बात कर रही है ये झबरीली। कमीनी आदमी कहीं की। ' कालू कुत्ता जोर से गुर्राया। ' इससे अच्छे तो हम कुत्ते ही हैं,आदमी तो कुत्तों से भी गया बीता है। कान पकडे जो अब झबरीली की तरफ पूंछ भी करूँ तो। कराले अपने बेटे की शादी आदमियों में ही। '
' अरे जब कोई इसकी और मुंह उठाके देखेगा ही नहीं तो अपने आप झख मारकर कुत्तों की और दौड़ेगी। आदमी तो इसके काम आयेगा नहीं,जब वह अपने आदमियों का ही नहीं होता , अपने लोगों को ही सताता है,उन्हें जलने मरने देता है तो कुत्तों का क्या होगा। अगर सभी कुत्ते एकजुट होजाएं और इसका बायकाट करदें अपने आप ही सातवें आसमान पर चढ़ा दिमाग उतर जायगा। ' मरियल सा झबरीला कुत्ता बोला, ' मैंने इसे बहुत समझाया था पर इसने मुझे ही दौड़ाकर कोठी से बाहर निकलवा दिया। '
अच्छा भी कुत्तो! जय सारमेय , कालू बोला,' आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद, जो मुझे पाप में पड़ने से बचा लिया। आप सब यहाँ बायकाट कराकर कुत्ता समाज सुधार संघर्ष में रत रहें , मैं अन्य कालोनियों में भी इसका बायकाट कराऊंगा। तभी एसे कुत्ते लोग ठीक होंगे। '

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

शाबास सचिन---युवाओं को आव्हान ...डा श्याम गुप्त...


शाबास सचिन--- यद्यपि क्रिकेट के बदशाह सचिन तेन्दुलकर की ५०वीं सेन्चुरी पर फ़िर उन्हें”भारत-रत्न’ प्रदान करने की आवाजें उठने लगी हैं, परन्तु हम इस बात पर उन्हें इस सम्मान के अधिकारी नहीं समझते, यह उनका अपना केरियर व प्रोफ़ेशन है अतः क्रिकेट जगत के सभी सम्मान पाने का उन्हें हक है। भारत रत्न का नही जो देश भक्ति के लिये दिया जाता है, सारे समाज व देश के संदर्भ में,---------हां, क्रिकेट के बाद्शाह सचिन रमेश तेन्दुलकर द्वारा शराव व तम्बाकू का ( २० करोड वार्षिक...) विग्यापन को ठुकराने का फ़ैसला का स्वागत योग्य तो है ही ,एतिहासिक एवं सामाजिक क्षेत्र में साहसिक व मील का पत्थर कहा जाना चाहिये....यद्यपि कहा जासकता है कि इतना अधिक धन जमा होने के पश्चात यह फ़ैसला लेना बहुत आसान है... परन्तु फ़िर भी धन लालसा, लोलुपता, घुटालों के युग में इसे स्तुत्य ही माना जाना चाहिये...जो देश के नेताओं, अधिकारियों अन्य खिलाडियों, कार्पोरेट जगत के लिये एक नवीन द्रष्टि होनी चाहिये..... ---पिछले दिनों सचिन को "भारत रत्न " देने के लिये उनके लाखो क्रिकेट प्रशन्सकों ने काफ़ी दबाव व शोर मचाया था, तब भी हमने लिखा था कि सचिन ने कौन सा देशभक्ति का कार्य किया है , पैसे लेकर खेलना देश भक्ति नहीं अपना धन्धा है....
---यदि सचिन के साथी, समर्थक व देश-विदेश के युवा वास्तव में सचिन को ’भारत रत्न’ सम्मान दिलाना चाहते हैं तो वे उनका अनुसरण करके एक मिशाल रखें । यदि सचिन की इस कदम से युवा व अन्य प्रसिद्ध लोग उद्बोधित होकर शराव, तम्बाकू आदि के विरोध में खडे होने लगें तो यह समाज के लिये एक पुनीत आव्हान होगा.....और तब निश्चय ही सचिन तेन्दुलकर ...भारत रत्न...के अधिकारी हो सकते हैं ....
-----तो हम आव्हान करते हैं युवाओ को जागने के लिये ----अपने प्रिय खिलाडी को ..सम्माम्नित करने के लिये.........


सोमवार, 20 दिसंबर 2010

आई फिर से शीत सुहानी ---डा श्याम गुप्त की घनाक्षरी ....

शीत - ऋतु----
१. (श्याम घनाक्षरी --३० वर्ण , १६-१४, अंत दो गुरु -यगण)
थर थर थर थर , कांपें सब नारी नर,
आई फिर शीत ऋतु , सखि वो सुजानी |
सिहरि सिहरि उड़े ,जियरा पखेरू सखि ,
उर मांहि उमंगाये , पीर वो पुरानी |
बाल वृद्ध नारी नर, धूप बैठे तापि रहे ,
धूप भी है कुछ , खोई सोई अलसानी |
शीत की लहर तीर भांति तन बेधि रही,
मन उठै प्रीति की ,वो लहर अजानी ||


२.( श्याम घनाक्षरी -३० वर्ण ,१६-१४, अंत दो गुरु - मगण)
बहु भांति पुष्प खिलें, कुञ्ज क्यारी उपवन,
रंग- विरंगी ओढे, धरती रजाई है |
केसर अबीर रोली,कुंकुंम ,मेहंदी रंग,
घोल के कटोरों में, भूमि हरषाई है |
फैलि रहीं लता चहुँ और मनमानी किये,
द्रुम चढीं शर्मायं ,मन मुसुकाई हैं |
तिल मूंग बादाम के लड्डू घर घर बनें ,
गज़क मंगोड़ों की बहार सी छाई है ||


३.( मनहरण घनाक्षरी -३१ वर्ण ,१६-१५,अंत लघु-गुरु -रगण )
ठंडी ठंडी भूमि नंगे पाँव लगे हिमशिला ,
जल छुए लगे छुआ बिजली का तार है |
कठिन नहाना नल लगे जैसे सांप कोई,
काँप रहा तन चढ़ा जूडी का बुखार है |
शीत में तुषार से है मंद रवि प्रभा हुई,
पत्तियों पै बहे ओस जैसे अश्रु धार है |
घर बाग़ वन जला आग बैठे लोग जैसे,
ऋषि मुनि करें यज्ञ विविधि प्रकार हैं ||
-----डा श्याम गुप्त , के--३४८, आशियाना , लखनऊ-२२६०१२ .