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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 30 मार्च 2010

हनुमान जयंती पर विशेष ------

मनहरण कवित्त-३१ वर्ण,१६-१५ ,अन्त गुरु )

१.

दुर्गम जगत के हों कारज सुगम सभी ,

बस हनुमत गुण- गान नित करिये ।

सिन्धु पारि करि,सिय सुधि लाये लन्क जारि,

ऐसे बजरन्ग बली का ही,ध्यान धरिए

करें परमार्थ सत कारज निकाम भाव ,

ऐसे उपकारी पुरुशोत्तम को भजिये

रोग दोष,दुख शोक,सब का ही दूर करें,

श्याम के हे राम दूत !अवगुन हरिये ॥

२.

(जल हरण घनाक्षरी-,३२ वर्ण,१६-१६ ,अन्त-दो लघु)

विना हनुमत क्रिपा ,मिलें नहीं राम जी,

राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।

रिद्धि–सिद्धि दाता,नव-निधि के प्रदाता प्रभु,

मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी वर ।

राम ओ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,

दौनों पक्ष के ही दिये सन्कट उबार कर।

सन्कट हरण हरें, सन्कट सकल जग,

श्याम अरदास करें,कर दोऊ जोरि कर ॥


हनुमत—क्रपा

(आवाहन )

( कुन्डली –छन्द )

१.

पवन तनय सन्कट- हरण,मारुति सुत अभिराम,

अन्जनि पुत्र सदा रहें, स्थित हर घर –ग्राम

स्थित हर घर- ग्राम, दिया वर सीता मां ने ,

होंय असम्भव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।

राम दूत ,बल धाम ,श्याम, जो मन से ध्यावे,

हों प्रसन्न हनुमान, क्रपा रघुपति की पावे ॥

२.

निश्च्यात्मक बुद्धि, मन प्रेम प्रीति सम्मान,

विनय करें तिनके सकल,कष्ट हरें हनुमान ।

कष्ट हरें हनुमान, पवन सुत अति बलशाली,

जिनके सम्मुख टिकै न कोई दुष्ट कुचाली ।

रामानुज के सखा ,दूत,प्रिय भक्त ,राम के ,

बिगडे काम बनायं,पवन-सुत,सभी श्यामके ॥