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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 27 मई 2010

प्राचीन निष्क्रिय तारे कहाँ जाते हैं ...ग्लोबल वार्मिंग !!


चित्र में देखिये नासा के वैज्ञानिकों ने चित्र लिया है कि हमारी आकाशगंगा के एक अत्यंत गर्म ग्रह को( शायद अक्रिय होने पर ? ) उसका स्वयं का सूरज ही ख़त्म कर रहा है। क्या अत्यधिक ग्लोबल वार्मिंग हमारी पृथ्वी की भी यही दशाकरेगी।
इसी सन्दर्भ का एक ऋग्वेदीय श्लोक ( १०/८८/९७७४-१३ ) देखिये.....
"वैश्वानरं कवयो याज्ञियासो sग्नि देवा अजन्यन्नजुर्यम । नक्षत्रं प्रत्नम मिनच्चरिष्णु यक्षस्याध्याक्षम तविषम बृहन्तम""
---क्रान्तिदर्शी यज्ञार्थी देवों ने अजर वैश्वानर को प्रकट किया। जिस समय अग्नि देव विस्तृत व महिमामय होते हैं ,उस समय वे अंतरिक्ष में प्राचीन काल से विहार करने वाले नक्षत्रों को देवताओं के सामने ही निष्प्रभावी बना देते हैं । अर्थात अति प्राचीन व निष्क्रिय नक्षत्र व ग्रह मूल ऊर्जा द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं ।