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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 16 अगस्त 2010

आजादी के साथ साथ ...पछुआ बयार ..डा श्याम गुप्त की कविता ( ब्रज भाषा ) ....

सखि चलि रही पछुआ बयार ,
पुरवैया कैसें चलै |
सब छीनी बसंत बहार,
पुरवैया अब न झलै |.........सखि ..... ||

साडी लहंगा फ़रिया ओढनी,
कतहुं न दीखि परै।
जीन्स टाप पतलून शर्ट मे ,
बिटिया बहू फ़िरै ।

केक पेस्ट्री टोस्ट चाय, औ-
आमलेट कौ कलेऊ ।
दरिया सतुआ हलुआ की नहिं,
कोऊ पूछ करै ।

लस्सी ठंडाई खस केसर-
शर्वत काको भाय ।
दूध नाम ते लरिका रोवें,
आइसक्रीम ललचाय ।

कोल्ड ड्रिन्क ठन्डी- बीयर कौ
नित प्रति दौर चलै ॥..... ...सखि....॥

ऊन्चे मौल में जांय सनीमा
नित बाज़ार करें।
नित होटल नित डांस पार्टी,
नित नव रूप धरें ।

भजन कीर्तन कथा रमायन,
अब कैसिट ते सुनिहें।
काव्य कला साहित्य शास्त्र,औ-
गीता कोऊ न गुनिहै

नेता अफ़सर देश के हित में,
अमरीका चलि जावैं ।
खेत गावं खलिहान की बातें ,
सीखि वहीं ते आवैं ।

हिन्दी सीखन कों यूरप कौ,
दौरम दौर चलै ।.....सखि.......॥

सांचु न्याय ब्रत नेम धरम, अब-
काहू को न सुहाय ।
कारे धन की खूब कमाई,
पीछें सब जग धाय ।

बडौ खराब जमानौ आयौ ,
सब चीखें चिल्लावैं ।
भ्रष्टाचारी चोर अधर्मी,
इक दूज़े को बतावैं ।

अपने घर की ओर न झांकें,
सोई करम करैं ।
अपनी धरती, संस्कार , सब-
हम आपुहि बिसरैं ।

जब तक हम आपुहि न सुधरिहैं,
पुरवैया क्यों चलै ।
सखि चलि रही पछुआ बयार,
महंगाई कैसे घटै।
सब छीनी बसंत बयार,
पुरवैया कैसे चलै ।.......सखि......॥