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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 29 जून 2011

बच्चे ...लघु कथा---डा श्याम गुप्त.....


                                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                      
      “ बच्चों के लिए मेजिक-शो रख लेते हैं, वे विजी रहेंगे, शैतानी नहीं करेंगे, माँ- बाप के साथ लटके नहीं रहेंगे, खूब एन्जॉय भी करेंगे |” निलेश ने पार्टी-प्रवंधन की चर्चा के 
दौरान कहा |

    
       ‘क्यों? बच्चों को भी माँ-बाप के साथ एन्जॉय करने दो न |’ रमेश जी ने कहा |

    
      ‘नहीं, पापा, बढ़ा डिस्टर्ब होता है |’ सुरभि ने कहा |

   
      ‘क्या डिस्टर्ब होता है ? पार्टी में क्या आप लोग आफीशियल मीटिंग करते हैं ?’ रमेश जी ने प्रश्न किया |

    
      ‘पर अच्छा रहता है, सभी अच्छी तरह एन्जॉय कर पाते हैं’ , निलेश बोला |

         
      
        रमेश जी सोचने लगे, ‘क्या यह वास्तव में एक अच्छा  ट्रेंड है ?’ उन्होंने स्वयं से ही प्रश्न किया | प्रारंभ से ही बच्चों को अलग रखने का भाव...लगता है माँ-बाप बच्चों को बोझ समझते हैं | अपने उठने बैठने की, खाने-पीने की, गप-शाप करने की स्वतन्त्रता में बाधा | क्या बच्चे यह महसूस नहीं करते होंगे ! क्या वे यह जानने को उत्सुक नहीं रहते होंगे कि उनके माता-पिता क्या कर रहे हैं, कैसे उठ-बैठ रहे हैं,..शायद अवश्य |   परन्तु उसी प्रक्रिया को बार बार घटित होते देखकर, वही बच्चा-कंपनी को अलग-थलग रखे जाने वाले ट्रेंड को  सभी को अपनाते देख, वही उनके लिए भी एक सामान्य भाव बन् जाता है और फिर बच्चे भी माता-पिता से स्वतन्त्रता चाहने लगते हैं, उनके साथ नहीं रहना-जाना चाहते |

        
         रमेश जी बोले,’ परन्तु क्या यह आदर्श स्थिति है ...शायद नहीं |’ वे कहने लगे – हमारे बचपन में तो माता-पिता हम सब भाई-बहनों को हर जगह, मेले, शादी-विवाह, पारिवारिक या मित्रों की पार्टी –सभी जगह अपने साथ ही रखते थे | सारे मित्र, परिजन, पडौसी मिलते ही कुशल-क्षेम के साथ बच्चों के बारे में भी पूछते व उनसे वार्तालाप करते थे | शिक्षा व अन्य कलापों के बारे में जानकारी लेते व मंगल कामनाएं एवं आशीर्वाद देते थे |

          
      वे कहते गए ..इस प्रकार बच्चों का अपने परिवार, समाज, संस्कृति के अनुसार उठना-बैठना, अनुशासन, रीति-रिवाज़ आदि के बारे में प्रारंभिक ज्ञान प्राप्त होता रहता था | बड़ों से, छोटों से, साथ वालों से आदरणीयों व अभिभावकों से व सभी से उचित व्यवहार, यथा-योग्य संवाद करने का उचित तरीका व भाव सिखाने की प्राथमिक शालाएं होती थीं ये सब बातें व क्रिया-कलाप | साथ ही साथ परिजनों, प्रियजनों व स्वयं माता-पिता के  प्रति आदरभाव की उत्पत्ति भी होती थी और श्रृद्धा की भी | यद्यपि किशोर होते होते बच्चे स्वयं ही अपनी दुनिया बनाने लगते थे, स्वाभाविक तौर पर, परन्तु तब तक उनमें पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्रीय भाव बन् चुके होते थे जो संस्कार रूप में जीवन भर मार्ग दर्शन करते थे |  एक बात यह भी है कि इसी कारण बच्चों के साथ होने से प्रौढ़ व युवा माता-पिता भी अनर्गल बातें व व्यवहार से बचे रहते थे, और समाज में द्वेष-द्वंद्व कम होने की परम्परा बनती थी |

       ‘परन्तु आजकल तो यही ट्रेंड है’, निलेश ने कहा | ‘बच्चे आजकल अधिक होशियार होते हैं, उनमें   स्व-निर्भरता,  आत्म-विश्वास, शार्पनेस, दुनियादारी तेजी से विकसित होती है | फिर आज इतना समय भी किस के पास है | क्या अपना काम-धंधा छोडकर पहले के लोगों की भांति बस बच्चे खिलाएं तो आज की तेजी से बढती हुई दुनिया में हम पीछे नहीं रह जायेंगे |  लोगों से मिलेंगे-जलेंगे नहीं तो प्रगति कैसे करेंगे | इसके लिए हमें भी तो अपना समय चाहिए | विज्ञान के युग में हर वस्तु उपलब्ध है, हर बात का आल्टरनेटिव है | बच्चों को आत्मनिर्भरता सिखाने के लिए उन्हें स्वतन्त्रता देना भी जरूरी है |’

     हो सकता है, परन्तु आज पाश्चात्य प्रभाव वश, प्रारम्भ से ही बच्चों को पृथक बिस्तर पर सुलाना, अलग कमरा, सब कुछ उनका निजी, अलग.. |  पार्टी, शादी, क्लब, जलसों में भी बच्चा पार्टी अलग |  यह अलगाव निश्चय ही एक उन्मुक्तता, स्वच्छंद-भाव बच्चों में उत्पन्न करता है | प्रारम्भ से ही निजता, परिजनों से अलगाव, और परिणामी अहमन्यता व पारिवारिक-सामाजिक मोह –लगाव की समाप्ति | प्रेम डोर बन् ही नहीं पाती | आज विभिन्न बाल -किशोर- युवा द्वंद्वों , उच्छ्रन्खलता, अनुशासन हीनता का यही कारण है |  अलगाव के भाव-रूप द्वारा पारिवारिक सान्निध्यता, आत्मीयता, मोह का भाव पनप ही नहीं पाता | बच्चा माता-पिता के शरीर व सान्निध्य के स्नेहताप, उनके सान्निध्य की बौद्धिक क्षमता, अनुभव व ज्ञान की तेजस्विता के स्नेहिल भाव को प्राप्त ही नहीं कर पाता | परिणाम स्वरुप बच्चे माता-पिता को सिर्फ आवश्यकता पूर्ति का साधन मात्र समझने लगते  हैं | वे माता-पिता, अभिभावकों की बातें सुनने-मानने की अपेक्षा अपने मित्रों व अन्य लोगों से, टीवी, कमर्सिअल्स, सिनेमा, हीरो-हीरोइनों से, विदेशी संस्कृतिपरक मारधाड –खून खराबा वाले वीडियो गेम्स से सीखता है
जो प्राय: मूलतः अप-संस्कृति के वाहक होते हैं | वे तमाम जानने –न जानने योग्य विषयों, तथ्यों की जानकारी तो देते हैं परन्तु उनकी तार्किक उपयुक्तता व अच्छाई-बुराई के तथ्यों की प्रामाणिकता नहीं  जो बच्चों के मानस में अनिश्चितता व भ्रम की स्थिति उत्पन्न करती है एवं आगे के जीवन में द्वंद्वों का कारण बनती है |

      ‘पर पापा आप यह भी तो सोचिये कि आज धीरे धीरे आराम से काम करने का समय नहीं है अपितु वैज्ञानिक उन्नंति  के युग में तेजी से प्रगति के पथ पर चलने के लिए कुछ समझौते तो करने ही पड़ते हैं|   दुनिया से इंटरेक्शन करने व कार्य-कुशलता विकसित करने के लिए हमें भी तो अपना समय चाहिए , अपनी स्वयं की दुनिया चाहिए| ...सुरभि ने कहा |

      सही है, समझौते तो करने ही पड़ते हैं; रमेश जी बोले, “पर किस का पलडा भारी है यह देखना भी आवश्यक  है | अपनी उन्नति, भौतिक प्रगति का या अपने मनोरंजन या फिर संतति को उचित दिशा निर्देशन द्वारा समाज, संस्कृति, देश ,राष्ट्र व मानवता के सर्वांगीण उत्थान का |”







          

      

        
      

          

                                                                               



 






         




















       

मंगलवार, 28 जून 2011

कृष्ण लीला --९ ...तृणावर्त ....

                                                                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ....
अनृत अकृत अप भावों की आंधी थी आयी ,
.तृणावर्त ,धर रूपभाव,  चहुँ दिशि थी छाई |
चहुँ दिशि  छाई,   भाव राक्षसी  था अपनाया ,
कृष्ण कन्हैया ने  क्या उसको नाच नचाया |
आसमान में  ले  कान्हा को   हुआ  नृत्यरत ,    
नष्ट किया वह असुर, रहा जो अकृत अनृत रत ||


कितने सामाजिक सरोकार युक्त हैं आपके समाचार-पत्र .......

                                                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
  आप स्वयं देखिये...

----------समाचार-पत्रों का----- समाचार लेखा जोखा.......
१- टाइम्स ऑफ इंडिया ---अंग्रेज़ी ( बेंगलूरू ) ---दि-२८ जून ११ .....कुल पृष्ठ = २६ ( ६ पृष्ठ -अतिरिक्त सहित )

---फ़िल्म समाचार.......१+६( अतिरिक्त भाग )
   ( --अर्धनग्न चित्रों सहित )  ... ७ पृष्ठ ... (२६.९ %)
           
-- -स्पोर्ट.समाचार.........३+१/४  पृष्ठ ...      (१२.५ %)                          =.....  कुल  १८+१/२ पृष्ठ (७१ %)
---कामर्सियल एड्स ... ८ + १/४  पृष्ठ ....     (३१.७ %)

------------सामान्य  समाचार ...............................                              =.......कुल  ७+१/२  पृष्ठ   ( २९ % )

२- राजस्थान पत्रिका----हिन्दी ...दि. २५  जून, ११ ...कुल पृष्ठ १४+४  =१८( ४  पृष्ठ का रिज्यूमे सहित  )..

  -----कमर्शियल एड्स + जैन धर्म एड्स,
                            + मदभरी बातें सहित .....२+३/४  पृष्ठ ...(१५.३ %)
-------फिल्म समाचार ...............................१+१/४   पृष्ठ ...(६.९ %)             =....कुल ..९  पृष्ठ  ( ५० %)
-------खेल समाचार ...................................१          पृष्ठ ...(५.५ %)
-------रेजूमे ..शिक्षा  सम्बंधित(अतिरिक्त भाग ).४.. पृष्ठ ..(२२.२ %)
-----------    सामान्य -समाचार + नीति कथाएं सहित ..................................= .... कुल ...९ पृष्ठ  (५० %)

रविवार, 26 जून 2011

ड़ा श्याम गुप्त के दोहे....

                                                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हे माँ! ज्ञान प्रदायनी, ते छवि निज उर धार |
दोहे रचूँ सुमिरि मन, महिमा अपरम्पार ||

देवी  माँ के भजन से ,सब जन हुए विभोर |
जैसे चन्दा देखकर,   हर्षित  होंय चकोर  |

माँ तेरे ही चित्र पर ,नित प्रति पुष्प चढ़ायं ,
मिश्री सी वाणी मिले, मन हरसे सुख पाँय |

तंत्र मन्त्र जानूं नहीं  ,ना मैं वंदन ध्यान ,
माँ तेरा ही अनुसरण, मेरा सकल जहान |

मुक्ति नहीं  हम चाहते,ना धन सम्पति मान ,
माँ का ही सुमिरन करें, जब तक घट में प्राण |

श्याम कौन कर पायगा,माता का गुण गान,
ब्रह्मा  विष्णु  महेश भी,  बनते पुत्र समान |

पापी तो  समझे यही,  रहा न कोई देख,
सकल देवता देखते, अंतर-पुरुष विशेष ||


गुरुवार, 23 जून 2011

कृष्ण लीला -८--राक्षस नाश....

                                                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 विविध रूप बहु भाव युत ,  असुर किये संहार ,
यह लीला करि श्याम ने,   समझाया  यह सार |
समझाया यह  सार,  नगर  गृह  वर्ग  ग्राम में ,
अनाचार पल्लवित, प्रकृति शासन जन मन में |
मिटे  अनैतिकता,  अक्रियता,   फ़ैली  बहु विधि ,
जनजनमन हरषाय,विकास नित होय विविध-विधि ||

मंगलवार, 21 जून 2011

अपनी अपनी सोच सभी की......कविता ...ड़ा श्याम गुप्त...

                                                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ ...
 ( सभी की अपनी अपनी सोच होती है ,पर वह सोच गुणात्मक भाव होनी चाहिए......प्रस्तुत है एक रचना इसी भाव पर....सवैया छंद में ).....

पीने वाला यही चाहता  गली गली  मधुशाला हो |
हर नुक्कड़ हर मोड़ जो मिले मदिरा पीने वाला हो |
अपनी अपनी  सोच सभी की मन गोरा या काला हो |
सभी चाहते उनकी दुनिया में हर ओर उजाला हो ||

भक्त चाहता मंदिर-मस्जिद हो, हर ओर शिवाला हो |
पंडित  और  मौलवी चाहें , हर   हाथों  में  माला हो  |
ज्ञानी चाहे ज्ञान का मंदिर, हर विद्यालय आला हो |
घर घर ज्ञान दीप जल जाएँ औ  चहुँ ओर उजाला हो ||

गोरी चाहे सेज पिया की,   प्रियतम भोला भाला हो |
प्रेमी चाहे प्रीति का बंधन, कभी न मिटने वाला हो |
मनमंदिर हो प्रीति का दर्पण हरपल प्रेम कीं हाला हो |
प्रेमप्याला  भर भर छकलूँ, मन नित प्रीतिउजाला हो ||

नेता  चाहे  सिंहासन  जो, कभी  न हिलने वाला हो |
सात पीड़ियाँ  तक तर जाएँ,   पद वो  वैभव वाला हो |
धनी चाहता शान्ति मिले मन,निर्धन महल निराला हो |
द्वेषी  चाहे  जग हो अन्धेरा,  मेरे  घर में  उजाला हो ||

प्रजा चाहती शासक न्यायी,जन हित करने वाला हो |
सैनिक  मातृभूमि की रक्षा में मर मिटने वाला हो |
भूखा चाहे उसको प्रतिदिन बस दो जून निवाला हो |
चोर चाहता सदा अमावस,रात न कभी उजाला हो |

कविता गीत हो या अगीत हो मन का भाव निराला हो |
छंद , सवैया,  कुण्डलिया  या  चौपाई  की माला हो  |
सखी, त्रिभंगी  और  गीतिका, तारक हो  उल्लाला हो |
भाव ताल लय रस मन मोहे, अंतर-दीप  उजाला हो ||

श्रोता चाहे,  कवि  निराली कविता   कहने वाला हो |
कवि चाहता  काव्य-सुधारस  मन सरसाने वाला हो |
सुन्दर सरल सुबोध सुहानी, सरस शब्द की माला हो |
आनंद दीप जलें मन हरषे, जन जन ज्ञान उजाला हो ||

कर्म हो ऐसा,  अहंकार,  मद, लोभ  मिटाने वाला हो |
धर्म वही  जो राष्ट्र, देश, जन हित  दर्शाने  वाला  हो |
ज्ञान वही जो ज्योति की ज्योति का मर्म बताने वाला हो |
आत्मतत्व को जगमग करदे,मन नित दीप उजाला हो ||

सभी चाहते  उनकी दुनिया में  हर ओर उजाला हो |
अपनी अपनी सोच सभी की मन गोरा या काला हो |
श्याम' चाहता , माँ वाणी के वंदन में  मतवाला हो |
सत्य-धर्म औ कर्म-दीप से घर घर ज्ञान उजाला  हो ||

रविवार, 19 जून 2011

कितने जीवन मिल जाते हैं......पितृ दिवस पर.... डा श्याम गुप्त की कविता....

                                                                        ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ ....
( पितृ दिवस पर------पिता की सुहानी छत्र छाया जीवन भर उम्र के, जीवन के  प्रत्येक मोड़ पर,  हमारा मार्ग दर्शन करती है....प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखती है.....प्रस्तुत है ...एक रचना...जो गीत के एक नवीन -रचना -कृति में ...जिसे मैं .....'कारण कार्य व प्रभाव गीत'  कहता हूँ ....इसमें कथ्य विशेष का विभिन्न भावों से... कारण ,उस पर कार्य व उसका प्रभाव वर्णित किया जाता है ....)

पिता की छत्र-छाया वो ,
हमारे  सिर  पै होती है  |

         उंगली पकड़ हाथ में चलना ,
             खेलना-खाना, सुनी कहानी |
                 बचपन के सपनों की गलियाँ ,
                       कितने जीवन मिल जाते हैं ||


वो  अनुशासन की जंजीरें ,
सुहाने  खट्टे-मीठे दिन |

             ऊबकर तानाशाही से,
                रूठजाना औ हठ करना |
                      लाड प्यार श्रृद्धा के पल छिन,
                             कितने जीवन मिल जाते हैं ||


सिर पर वरद-हस्त होता है ,
नव- जीवन की राह सुझाने |

            मग की कंटकीर्ण उलझन में,
                अनुभव ज्ञान का संबल मिलता|
                        गौरव आदर भक्ति-भाव युत,
                               कितने जीवन मिल जाते हैं ||


स्मृतियाँ बीते पल-छिन की,
मानस में बिम्वित होती हैं |

                  कथा उदाहरण कथ्यों -तथ्यों ,
                          और जीवन के आदर्शों की |
                               चलचित्रों की मणिमाला में ,
                                     कितने जीवन मिल जाते हैं ||

शनिवार, 18 जून 2011

अफसर...लघु कथा ......डा श्याम गुप्त....

                                                                          ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                              मैं रेस्ट हाउस के बरांडे में कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ,  सामने आम के पेड़ के नीचे बच्चे पत्थर मार- मार कर आम तोड़ रहे हैं |  कुछ पेड़ पर चढ़े हुए हैं,  बाहर बर्षा की हल्की-हल्की बूँदें (फुहारें) गिर रहीं हैं ... सामने पहाडी पर कुछ बादल रेंगते हुए जारहे हैं |    कुछ साधनारत योगी की भांति जमे हुए हैं..... निरंतर बहती हुई पर्वतीय नदी की धारा 'चरैवेति -चरेवैति '   का सन्देश देती हुई प्रतीत होती है,  बच्चों के शोर में मैं मानो अतीत में खोजाता हूँ ....गाँव में व्यतीत छुट्टियां,  गाँव के संगी साथी .... बर्षा के जल से भरे हुए गाँव के तालाव पर कीचड में घूमते हुए..... मेढ़कों को पकड़ते हुए , घुटनों -घुटनों जल में दौड़ते हुए ..... मूसलाधार बर्षा के पानी में ठिठुर-ठिठुर कर नहाते हुए ;  एक-एक करके सभी चित्र मेरी आँखों के सामने तैरने लगते हैं |  सामने अभी-अभी पेड़ से टूटकर एक पका आम गिरा है, बच्चों की अभी उस पर निगाह नहीं गयी है.... बड़ी तीब्र इच्छा होती है उठाकर चूसने की अचानक ही लगता है जैसे मैं बहुत हल्का होगया हूँ और बहुत छोटा..... दौड़कर आम उठा लेता हूँ ..वाह! क्या मिठास है ! ....मैं पत्थर फेंक-फेंक कर आम गिराने लगता हूँ... कच्चे-पक्के , मीठे-खट्टे .....अब पेड़ पर चढ कर आम तोड़ने लगता हूँ .....पानी कुछ तेज बरसने लगा है,   मैं कच्ची पगडंडियों पर नंगे पाँव दौड़ा चला जारहा हूँ ,  कीचड भरे रास्ते पर....... पानी और तेज बरसने लगता है..... बरसाती नदी अब अजगर के भांति फेन उगलती हुई फुफकारने लगी है....... पानी अब मूसलाधार बरसने लगा है .....सारी घाटी बादलों की गडगडाहट से भर जाती है... और मैं बच्चों के झुण्ड में इधर-उधर दौड़ते हुए गारहा हूँ ---

   ""बरसो राम धडाके से , बुढ़िया मरे पडाके से ""

               " साहब जी ! मोटर ट्राली तैयार है ",  अचानक ही बूटा राम की आवाज़ से मेरी तंद्रा टूट जाती है, .....सामने पेड़ से गिरा आम अब भी वहीं पडा हुआ है..... बच्चे वैसे ही खेल रहे हैं |  मैं उठकर चलदेता हूँ वरांडे से वाहर ,हल्की-हल्की फुहारों में.... सामने से दौलत राम व बूटा राम छाता लेकर दौड़ते हुए आते हैं , ' साहब जी ऐसे तो आप भीग जाएँगे '  और मैं गंभीरता ओढ़ कर बच्चों को, पेड़ को .आम को व मौसम को हसरत भरी निगाह से देखता हुआ टूर पर चल देता हूँ |

शुक्रवार, 17 जून 2011

प्रथम पूज्य देवाधिदेव गणेश... .....डा श्याम गुप्त....

                                                                                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

अनवर जमाल साहब ने अपनी पोस्ट में लिखा...-----

"" सच्चा गणेश कौन है ? Real Ganesh --- गण + ईश = गणेश
जो गणों का स्वामी है वही गणेश है। यह ईश्वर का एक नाम है। यह संस्कृत का नाम है। क़ुरआन की सबसे आखि़री सूरा (114, 3) में भी अल्लाह को ‘इलाहिन्नास‘ कहा गया है।  इलाह = ईश, नास = गण ,   'इलाहिन्नास'= गणेश.. .....
.हिंदू दार्शनिकों ने इस प्रॉब्लम को हल करने के लिए कल्पना और चित्र आदि का सहारा लिया तो गणेश का रूप कुछ से कुछ बन गया और ....... इस तरह की कल्पनाओं ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है और हिंदू और मुसलमानों में दूरी डाल दी है।---.""  -----------

            यह तो अच्छी बात है गणेश का नाम कुरआन में है क्योंकि वह वेदों से बहुत बाद की है .......पर  वास्तव में अनवर साहब गणेश का अर्थ व उनके रूप के भावार्थ  नहीं समझे ... ....ये भारतीय  तत्वज्ञान है कि ब्रह्म या ईश्वर एक होते हुए भी वह विभिन्न रूप से जाना, माना, पहचाना, पूजा, अर्चा जाता है...जाकी रही भावना जैसी ......हिन्दू धर्म-तत्व कोइ एक किताब नहीं कि सभी उसीका पालन करें  आँख बंद करके ......अपितु प्रत्येक देव  व उसका नाम , काम, रूप, भाव स्वयं में एक किताब है .....मानव को उस पर अपनी इच्छा, श्रृद्धा, भाव, कर्मानुसार आँखें खोलकर ...सोच समझकर चलना होता है..........बहुत लिबरल है ये धर्म-व्यवस्था....जीने की व्यवस्था.......

                      .ये तो कक्षा ५ का विद्यार्थी भी जानता है कि  तत्पुरुष समास के अनुसार... गण+ ईश = गणेश ---अब गण कौन है .....जन  गण मन ...अर्थात  राष्ट्र, राज्य आदि---- अर्थात ..गणाध्यक्ष ....अब गणाध्यक्ष कैसा होना चाहिए ...इसी भाव से है गणेश जी का रूप ...उनका एक नाम 'गणपति' भी है | वे देवाधिदेव हैं ....... यदि बहुब्रीहि समास के अनुसार कहें तो.... गणेश ..= गण है ईश जिसका ...अर्थात जो गण अर्थात राष्ट्र...जन गण मन को ही अपना सब कुछ मानता हो.....तो ऐसे व्यक्ति को देव ही कहेंगे औरसी के अनुसार गणेश जी का रूप है  वे देवाधिदेव हैं ऐसे कल्याणकारी  देव को सर्व-प्रथम क्यों न पूजा जाय....|---मुझे लगता है मेरा एक ---बाल गीत  ही गणेश के बारे में समझाने के लिए काफी होगा.....

        गणपति गणेश....

लम्बी सूंड कान पन्खे से, छोटी छोटी आँखें  हैं |
हाथी जैसा सर है जिनका,एकदंत कहलाते हैं ||

मोटा पेट हाथ में मोदक,चूहे की है बनी सवारी |
ओउम कमल औ शंख हाथ में,माथे पर त्रिशूल धारी ||

ये गणेश हैं गणनायक हैं,सर्वप्रथम पूजे जाते |
क्यों हैं एसा वेष बनाए,आओ बच्चो बतलाते ||

तुच्छ जीव है मूषक लेकिन, पहुँच हर जगह है उसकी |
पास रखें ऐसे लोगों को,एसी कुशल नीति जिसकी ||

सूक्ष्म निरीक्षण वाली आँखें, सबकी सुनने वाले कान |
सच को तुरत सूंघ ले एसी, रखते नाक गणेश सुजान ||

बड़े  भेद  और  राज  की बातें, बड़े पेट में  भरी रहें |
शंख घोष है,कमल सी मृदुता,कोमल मन में सजी रहें ||

सबका हो कल्याण,  ॐ से सजे  हस्त से  वर देते |
मोदक का है अर्थ,सभी को प्रिय कहते,प्रिय कर देते ||

अमित भाव-गुण युत ये बच्चो!, रूप अनेकों  सजते |
कभी नृत्यरत,कभी खेलरत,कभी ग्रन्थ भी लिखते||  

 ऐसे  सारे गुण हों  बच्चो! वे ही नायक कहलाते |
हैं  गणेश  देवों के नायक, सर्वप्रथम पूजे जाते ||
                                      --सभी चित्र ..साभार..                                    

गुरुवार, 16 जून 2011

मोडने समय की धारा ....डॉ श्याम गुप्त का गीत....

                                                                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

ह्रदय के खोल अवगुन्ठन,
छोड़ अंतस के गठबंधन |
तोड़ कर  मौन की कारा,
मोड़ने समय की धारा |

        चलें फिर नवल राहों पर,
        बसायें प्रीति के बंधन  ||

आज हर और छाई है,
धुंध कुंठा हताशा की |
हर तरफ छागया है इक,
निराशा का कुहासा ही |

तमस आतंक का फैला,
छागये अनाचारी घन |
आस्थाएं हुईं धूमिल,
नहीं सुरभित रहा सावन |

        अगर अब भी न जागे तो,
        बने विष-बिंदु चन्दन वन ||

मीत तुम आज फिर कोई,
सुहाना गीत इक गाओ |
आस्थाओं के, आशा के,
नीति-संगीत स्वर गाओ |

राष्ट्र गौरव के वे सुमधुर,
सुहाने सुखद सुरभित स्वर
जगे सोई धरा  संस्कृति ,
जगें  सोये हुए तन मन |

        अनय के नाग को नथने,
       हो फण फण पर पुनः नर्तन ||

बुधवार, 15 जून 2011

बाबा रामदेव के सत्याग्रह व अनशन के फलितार्थ.....डा श्याम गुप्त ....

                                                                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                              परमार्थ की , देश- समाज की, जन जन की  सदेक्षा हित  किया हुआ कोइ भी कर्म चाहे व सफल हो या असफल या दमन किया गया हो ..कभी व्यर्थ नहीं जाता.....बाबा राम देव के सत्याग्रह व अनशन के फलितार्थ इस प्रकार हैं.....
१-सरकार की मंशा कि वह भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति कितनी  सजग है  इसका ज्ञान जग-जाहिर होजाना 
२-वर्त्तमान सरकार व उसके कर्ता-धर्ताओं का मूल चरित्र प्रकाश में आजाना....
३- लोकतंत्र की जड़ें सरकार व जनता में देश में कितनी गहरी व वास्तविक हैं इसका ज्ञान...
४-कांग्रेस पार्टी आलाकमान  का चरित्र स्पष्ट होना.....एक पत्रकार की ह्त्या पर तुरंत टिप्पणी ..पर ...विश्व के गंभीरतम मुद्दे भ्रष्टाचार पर देश की जन-जन की प्रतिक्रया पर कोइ प्रतिक्रया नहीं ....
५-देश की जनता  का जन जागरण  ..जो अपार जन समूह के समर्थन से व्यक्त हुआ...
६-अन्ना व बावा रामदेव को एक मंच पर लाना व  अन्ना हजारे व उनके सहयोगियों का  सचेत होजाना  कि उनके साथ भी कुछ भी होसकता है अतः सचेत होकर अपने कलापों की प्रोग्रामिंग करें |
७-बावा को सबक कि ...राजनीति में सिर्फ  साधु स्वभाव से ...आसानी से....कार्य नहीं होता ..अपितु ....'.शठे शाठ्यं समाचरेत' .... आगे वे अपनी कार्य नीति उसी प्रकार बनाएँ ....
८-गृह मंत्री को भ्रष्टाचार पर शीघ्र ही घोषणा करने को मजबूर होना पड़ा  ....जो काम अभी तक नहीं होपाया था....
९- हो सकता है बावा रामदेव या विरोधी राजनेताओं को फंसाने, नीचा दिखाने  आदि के क्रम में विपक्षियों व सरकार द्वारा विभिन्न भ्रष्टाचार निरोधी  अभियान चलाये  जायं  जो अंततः देश के हित में ही होंगे....
१०--दूरगामी फलितार्थ यह है कि जन जन..सभी ...योग.. योगी ( साथ में  विदेश की नक़ल योगा भी ) ..साधू, सन्यासी, संन्यास ....आदिके अर्थ व उन पर विचार-विमर्श, जानकारी व ज्ञान के प्रति उत्कंठित व उत्साहित होंगे...... व  देश, देशवासी , समाज, संस्कृति व विश्व ..लाभान्वित होंगे ....

श्याम लीला..७ ..पुष्प-केलि...

                                                                       ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

पुष्पों  की   वर्षा  करें ,  राधा  पर   घन-श्याम,
छवि कदम्ब के बृक्ष की,सुलसित ललित ललाम |
सुलसित ललित ललाम,  गोप   गोपी   हरषायें,
ललिता  कुसुमा  राधाजी, मन  अति सुख  पायें |
विह्वल भाव वश, देव दनुज किन्नर नर नागर ,
करें     पुष्प  वर्षा      राधा  पर    नटवर  नागर ||

राधा  जी  के  अंग  को  परसें  पुष्प लजायं ,
भाव विह्वल हो नमन कर सादर पग बिछ जायं |
सादर पग बिछ जायं,लखि चरण शोभा न्यारी ,
धन्य धन्य हैं पुष्प, श्याम लीला   बलिहारी  |
तरु कदंब हरषायं,   देखि गुन   कान्हा जी  के ,
क्रीडा करते श्याम, श्याम’ संग राधा जी के  ॥

शुक्रवार, 10 जून 2011

डा श्याम गुप्त के दोहे...

                                                                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
पानी  सींचें प्रेम का ,चाहें प्रिय फल-फूल |
कटुता बोये क्या मिले, तीखे शूल बबूल ||

सींचे  बिन मुरझा गयी, सदाचार की बेल |
श्याम  कहाँ फूलें फलें ,संस्कार के फूल ||


दायें  हाथ से दान कर, बायां सके न जान |
सबसे  बढकर दान है, गुप्त दान यह मान ||


आत्म शान्ति से जो मिले,अति सुख अति सम्मान |
सो  सुख लक्ष्मी दे नहीं , मिले न अमृत पान ||


कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य  कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||


सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग  ||


श्याम किसे मिलते नहीं, व्याधि, दुःख और दोष |
जग सुख दुःख का नाम है,किसको है परितोष ||






 

सोमवार, 6 जून 2011

सरकार, कान्ग्रेस , बावा रामदेव पर लाठी चार्ज व भ्रष्टाचार....

                                                          ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...                                            
                                    सरकार के मन्त्री गण लगातार कह रहे हैं कि बाबा के पीछे आर एस एस, भा ज पा हैं , बाबा तो मुखौटा है इसके पीछे साम्प्रदायिक पार्टियों का एजेन्डा है----
 -----किसने कन्ग्रेसियों को यह अधिकार दिया कि देश की एक राष्ट्रीय पार्टी को साम्प्रदायिक कहा जाय.....क्या हिन्दुत्व व भगवा रन्ग ही साम्प्रदायिकता का प्रतीक है...तो सारा भारत साम्प्रदायिक है.....सभी मन्दिर-मठ- धार्मिक स्थलों पर यही झन्डा होता है.....यह सारे हिन्दुस्तान का ही नहीं......दर्शन, धर्म, शान्ति, आनन्द का रंग है.....विश्व की शान्ति का रंग है...
----यदि एक अच्छे कार्य के लिये देश की राष्ट्रीय पार्टी किसी के समर्थन में है तथा  विभिन्न धर्म के लोग भी साथ हैं ...( ईसाई नही थे, कोई पादरी नहीं था -जो दुर्भाग्य की बात है )  तो इसे देश व समाज का सौभाग्य कहा जायगा........क्या इससे कन्ग्रेस व मौजूदा सरकार को कोई परेशानी है...
----- तो क्या सिर्फ़ इसीलिये बच्चों स्त्रियों को मारा-पीटा गया कि वे भगवा रंगधारी के समर्थन में क्यों दिल्ली आये...
                            कौन देगा इसका उत्तर....?????

रविवार, 5 जून 2011

श्याम लीला -६... होली..... डा श्याम गुप्त...

                                                                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
होली सब क्यों खेलते, अपने अपने धाम ,
साथ साथ खेलें अगर,  होली सारा गाँव  |
होली सारा गाँव,ख़त्म हो तना-तनी सब,
गली डगर चौपाल, हर जगह होली हो अब |
निकले राधा -श्याम, ग्वाल, गोपी मिल टोली ,
गली गली और गाँव गाँव में खेलें  होली ||

होली की इस धूम में मचें विविधि हुड़दंग ,
केसर और अबीर संग,उडें चहुँ तरफ रंग |
उड़ें चहुँ तरफ रंग, मगन सब ही नर नारी ,
बढे  एकता-भाव,  वर्ग समरसता  भारी |
बिनु खेले नहिं रहें, बनें  सब ही हमजोली ,
जन जन प्रीति बढ़ाय, सभी मिलि खेलें होली ||


शुक्रवार, 3 जून 2011

एक नियम है इस जीवन का.....कविता..डा श्याम गुप्त ....

....                                                                            .. कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

एक नियम है इस जीवन का,
जीवन का कुछ नियम नहीं है ।
एक नियम जो सदा-सर्वदा,
स्थिर  है,  परिवर्तन  ही  है ॥

पल पल, प्रतिपल  परिवर्तन का,
नर्तन  होता  है  जीवन  में  |
जीवन की  हर डोर  बंधी है,
प्रतिपल नियमित परिवर्तन में ||

जो कुछ  कारण-कार्य  भाव है,
सृष्टि, सृजन ,लय, स्थिति जग में |
नियम व अनुशासन,शासन सब,
प्रकृति-नटी  का  नर्तन  ही है ||

विविधि भाँति की रचनाएँ सब,
पात-पात  औ  प्राणी-प्राणी  |
जल थल वायु उभयचर रचना ,
प्रकृति-नटी का ही कर्तन है ||

परिवर्धन,अभिवर्धन हो या ,
संवर्धन हो या फिर वर्धन |
सब में गति है, चेतनता है,
मूल भाव परिवर्तन ही है |

चेतन ब्रह्म, अचेतन अग-जग ,
काल हो अथवा ज्ञान महान |
जड़-जंगम या जीव सनातन,
जल द्यौ वायु सूर्य गतिमान ||

जीवन  मृत्यु  भाव  अंतर्मन,
हास्य, लास्य के विविधि विधान |
विधिना के विविधान विविधि-विधि,
सब परिवर्तन की मुस्कान  ||

जो कुछ होता, होना होता ,
होना  था  या  हुआ नहीं है |
सबका नियमन,नियति,नियामक .
एक नियम परिवर्तन ही है ||

बुधवार, 1 जून 2011

भ्रष्टाचार का महाकारण -- डा श्याम गुप्त

                                                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                         शूद्र ( सामान्य जन,प्रजा ) व वैश्य ( व्यापारी वर्ग आदि ) मूलतः कर्म करने वाले वर्ग होते हैं , क्षत्रिय ( राजा व शासक गण) उन पर नियमन के लिए होते हैं , ब्राह्मण  ( विद्वत्जन, विज्ञजन , साहित्यकार , विद्वान, पंडित , विशेषज्ञ वर्ग ) अपने साहित्य, उपदेश, ज्ञान, ग्रंथों , शास्त्रज्ञान आदि द्वारा परामर्श के रूप में राजा व अन्य दोनों पर नियमन के लिए होते हैं |   यद्यपि आधारभूत आदर्श व्यवस्था में किसी भी व्यक्ति को अनाचरण, भ्रष्ट आचरण का अधिकार नहीं है परन्तु व्यवहारिक रूप में मूलत:सामान्य  जन-मानस में स्वलाभ हित भ्रष्ट-आचरण में लिप्त होने की प्रवृत्ति होती है  जो व्यापारी वर्ग व तदाधारित राज्य व शासन कर्मियों में  भ्रष्टाचार लिप्त होने की प्रवृत्ति उत्पन्न करती है | परन्तु विज्ञजनों का ही यह कर्तव्य होता है कि वे अपने शुद्ध आचरण , निडर रूप परामर्श से समाज को भटकाव से बचाएं | परन्तु जब यही वर्ग स्वयं  भय, लालच या अज्ञान वश  असत्याचरण , असत्य संभाषण , उदासीनता, अचिन्त्य-भाव  को ग्रहण कर लेते हैं तो भ्रष्टाचार , भ्रष्ट आचरण व अनैतिक आचरण अनियंत्रित होकर  अपने चरम पर पहुँच जाता है |
              अतःआज  भ्रष्टाचार,व् भ्रष्ट आचरण का एक महा कारण है विद्वत जनों का अपने कर्तव्य के प्रति अचिन्त्यनीय व  उदासीन होजाना | आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में विद्वान् लोग, शीर्षस्थ लोग, साहित्यकार, अनुभवी विज्ञजन सभी अपने स्वलाभ हित असत्याचरण व असत्य-भाषण में संलग्न हैं |  सभी स्वार्थ रत, स्वार्थ-हित हांजी..हांजी वाली स्थिति अपनाए हुए हैं | कोइ भी स्वहानि भय के सामान्य जन, शासन-प्रशासनिक अधिकारियों, राजनेताओं, मंत्रियों से , उनके कार्य- क्रिया-कलाप, गुणावगुण , अपराध, भ्रष्टाचार के बारे में सत्य नहीं कहना चाहता| कोइ बुरा नहीं बनाना चाहता ------सब मीठा-मीठा बोलकर अपना हित साधन करना चाहते है, सामान्य जन व राज्य में यह प्रवृत्ति व्यवहारिक रूप से होती है.... परन्तु ब्राह्मण वर्ग में नहीं -----
 " सचिव,वैद्य, गुरु तीन जब प्रिय बोलहिं भय आस ,
    राज्य , धर्म  और  देह कर,  होइ  शीघ्र  ही नाश |"    ----यही स्थित बनती जारही है | समाज  के प्रत्येक विद्वत-वर्ग में यही उदासीनता है ..हमें क्या , हम क्यों करें, कोइ मानता ही नहीं , व्यवस्था ही ऐसी है--जबकि व्यवस्था स्वयं मनुष्य बनाता है नकि मनुष्य को व्यबस्था बनाती है....हाँ यह एक चक्रीय व्यवस्था हो सकती है परन्तु उसका कारण भी मनुष्य स्वयं ही होता है  ....शिक्षा , चिकित्सा, विज्ञान, राजनीति,न्याय, पत्रकारिता ,अभियांत्रिकी, सांस्कृतिक-क्षेत्र ...सभी में विद्वत्जन सत्य बोलकर बुरा नहीं बनना चाहते अतः जनता को राज्य को शासन को उचित व् सत्य परामर्श प्राप्त न होने से सब उसी ढर्रे पर चलने को मज़बूरपर हैं |  प्रेक्टिस कम होने के डर से चिकित्सक, वकील, कमाई न होने के भय से इंजीनियर व  स्थानान्तरण - कनिष्ठ पद मिलने के भय से सचिव स्तर के लोग , काम व नाम न मिलने के भय से कला क्षेत्र के गुरु ...गलत लोगों का , गलत तथ्यों का, गलत नियमों का , भोंडे-अतार्किक, अश्लील कृतियों व भ्रष्ट लोगों का साथ देते देखे जा सकते हैं | सिनेमा व दूरदर्शन के कृत्यों  को तो सभी जानते हैं
               साहित्य , जो अनुभव व ज्ञान का , इतिहास होता है | विद्व्वत्जनों में शीर्ष स्थान पर  होता है, समाज के प्रत्येक क्षेत्र का नियामक होता है ...वहां भी यही स्थिति है |  मूर्खतापूर्ण, भ्रमात्मक साहित्य, एकांगी व  समाज-साहित्य   को  विषयों के टुकड़ों में बांटता  साहित्य, भोंडे हास्य साहित्य, प्रतिदिन के समाचार दर्शाती काव्य-कृतियाँ जिनमें किसी  समाधान का ज़िक्र नहीं , पैसे चुकाकर खरीदे जाते सम्मान, बड़े बड़े पुरस्कार,  पीत-पत्रकारिता,  सुरा-सुन्दरी के हित साहित्यिक भ्रष्टाचार |  ब्लॉग पर मुफ्त लेखन की सुविधा से तो तमाम चिट्ठों की बाढ़ आगई है , हर एरा-गेरा ..पत्रकार.. लेखक बन गया है...हर कोइ अपने दर्शन -अदर्शन को  विना किसी शास्त्रीय उदाहरण , साहित्यिक उदाहरण झाडं रहा है और अन्य लेखक गण , विज्ञ जन...विना सोचे समझे वाह वाह की .. असत्य .. टिप्पणियाँ झाड रहे हैं |  कोइ कमल को रात में खिलाने लगता है तो कोइ दुःख को ही दुःख का कारण बताने लगता है...और विज्ञ जन ऐसे आलेखों ..कविताओं पर  आलोचना की बजाय बिना सोचे समझे वाह  वाह की टिप्पणियाँ भेजते रहते हैं ...कौन बुरा बने...कौन पचड़े में पड़े....सबसे मीठा -मीठा बोलो , कटु सत्य क्यों बोलो .....,   सिर्फ घटनाओं व् समाचार पत्रों के समाचार ही  आप कई कई ब्लोगों पर देख-पढ़ सकते हैं जो अनावश्यक हैं |  कोइ एक महिला ब्लोगर  कोइ घिसा-पिटा  विषय पर चार पंक्तियाँ लिख देती है तो १०१ कमेंट्स ...यह .....असत्याचरण है--विज्ञ जनों का भ्रष्ट-आचरण है ---जबकि सब को जानना चाहिए क़ि---
सत्यं ब्रूयात , प्रियं ब्रूयात , मा ब्रूयात सत्यमप्रियं |
असत्यं च नान्रतं ब्रूयात , एत  धर्म   सनातनम  ||-----  यह चरम पतन की स्थिति है  और आचरण के भ्रष्ट होने का सबसे बड़ा कारण............