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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उन के भी अपराध......

                                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           तटस्थता भी अन्य अन्य मूल भाव गुणों की भांति नकारात्मक व गुणात्मक  होती है |  दो मूल क्रियाएं , वृत्तियों, न्याय, मनुष्यों, आचरण आदि में जब निर्णय की आवश्यकता होती है तब तटस्थता अनिवार्य गुणात्मक भाव होती है, जो न्याय व निष्पक्षता का भाव होती है  | वहीं सामाजिक, व्यक्तिगत , राजनैतिक व आचरण गत  अच्छाई -बुराई, में तटस्थता एक दुर्गुण ही होती है |  "कोऊ नृप होय हमें का हानी ..." वाली प्रवृत्ति होती है , मंथरा प्रवृत्ति...दासी प्रवृत्ति.....| 
      " सचिव वैद्य गुरु तीन जब, प्रिय बोलहिं भय आस |
         राज्य,धर्म तन तीनि कर, होई बेगिही नाश ||"
आज हर क्षेत्र में यही वृत्ति घर कर गयी है और यही समस्त समष्टि व व्यष्टि में व्याप्त अनाचरण का मूल कारण है | 
       इतिहास में पितामह भीष्म  का नाम बड़े श्रृद्धा व आदर से लिया जाता है | परन्तु  आज समय उन पर भी उंगली उठारहा है व उठाता रहेगा | उनकी तटस्थता महाभारत की विभीषिका का कारण बनी | यद्यपि हम नहीं जान सकते की उस समय क्या तत्कालीन  वस्तु-स्थिति रही होगी  पर यही सोचा जायगा की यदि वे भी कृष्ण की भांति समय रहते न्याय व सत्य का पक्ष लेते तो शायद परिणति कुछ और हो सकती थी |
         आज हमारे प्रधानमंत्री तक को विभिन्न घोटालों का पता नहीं था, तमाम मंत्रीगण, नेता, राजनीतिग्य आँख मूँद कर बैठे रहे , तटस्थ भाव से ( या स-अर्थ भाव, स्वहित भाव ) सब होते देखते रहे व देखते रहते हैं | वे अपने दायित्व से मुकर नहीं सकते |
          शासन के पश्चात प्रशासन होता है | हमारे प्रशासक ...अधिकारी ,सरकारी कर्मचारी,   आदि क्यों उचित परामर्श, सत्य का साथ नहीं दे सके क्यों नेताओं मंत्रियों के सत्यासत्य आचरण ,आदेशों का पालन करते रहे , और  पुलिस-सेवा, सीबी आई आदि गुप्तचर सेवायें क्या कर रहीं थीं जो आज घुटाले अनावरण होने पर लम्बे लम्बे  छपे आदि के कृतित्व में रत है जिनकी स्वयं की जिम्मेदारी इन्हें यथा समय रोकना होता है फाइलों को लम्बे समय तक रोके रहने के आदी बाबू लोग क्यों नहीं सही व नियमानुसार ड्राफ्टिंग करके अपना दायित्व निभाते, क्यों अफसरों के गलत आदेशों पर टीका-टिप्पणी नहीं कर पाए |   
           व्यापारी वर्ग जो समाज की आर्थिक रीढ़ होते हैं वे भी अपने स्वार्थ वश ..हमें क्या करना हमें तो चार पैसे कमाने हैं जी ...की तटस्थ व स्वार्थपरक मानसिकता से ग्रस्त हैं , वे भी इस अनाचरण में सम्मिलित तो हैं ही, जो दृश्य रूप में नहीं हैं वे भी  दायित्व से नहीं बच सकते |
            हम सब नागरिक, देश वासी, सामान्यजन अपने अपने स्वार्थ में रत उचित समय पर आवाज उठाने में असमर्थ रहे वह भी वही तटस्थता भाव के करण - की मैं क्यों पचड़े में पडूँ, मैं तो समझता हूँ पर दूसरे नहीं करते ..क्या करें...| क्या हम दोषी नहीं हैं |
           और समाज का चौथा खम्बा मीडिया ????  जो बड़े जोर शोर से अपनी कथा कहता रहता है तथा अब और भी जोर शोर से वह क्यों न सिर्फ तटस्थ रहा अपितु उसमें सम्मिलित भी हुआ ..क्या कहा जाय |
" हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां वही होगा जो होरहा है .."......जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध .....