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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

स्त्री-विमर्श गाथा-भाग-७ ( अंतिम भाग )...नव जागरण काल ......ड़ा श्याम गुप्त....

                                                        ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



              यूं तो सहज रूप में ही १५ वीं सदी से ही समय समय पर नव जागरण ,स्त्री जागरण, समाज सुधार के  बीज अंकुरित होते रहे थे |  ११ वीं सदी में  गुरु गोरखनाथ के पश्चात देश भर में संत साहित्यकार गुरु नानक , तुलसीदास, कबीर, सूरदास, रैदास, तुकाराम, एकनाथ, तिरुवल्लर, कुवेम्पू ,केलासम अपने अपने विचारों से अपने अपने ढंग से नव-जागरण का ध्वज उठाये हुए थे | राजनीति के स्तर पर भी  शिवाजी, राणा प्रताप अदि देश भक्तों की लंबी परम्परा चलती रही | 
                 मूलतः १९ वीं सदी में विश्व स्तर की कुछ महान एतिहासिक  घटनाओं के फलस्वरूप नव जागरण का कार्य तेजी से बढ़ा | ये थीं विश्व पटल पर अमेरिका का उदय व  विश्व भर में शासन तंत्र के बदलाव की नयी हवाएं .....राज-तंत्र का समाप्ति की ओर जाना  व गणतंत्र   की स्थापना   ( जिसका एक प्रयोग पहले ही भारत में वैशाली राज्य में हो चुका था ..यद्यपि वह कुछ अपरिहार्य कारणों से असफल रहा ) |  सारे विश्व में ही राज्यतंत्र की निरंकुशता से ऊबे जन मानस ने लोकतंत्र की  खुली हवा में सांस लेना प्रारम्भ  किया |  तुलसी की रामचरित मानस, सूरदास के कृष्ण-भक्ति साहित्य, कबीर के निर्गुण-भक्ति ज्ञान के साहित्य मूल रूप से समाज व नारी जागरण के वाहक बने; आगे  साहित्य जगत  में भारतेंदु हरिश्चंद्र , जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,सुभद्राकुमारी चौहान, सुमित्रा नन्द पन्त,  मैथिली  शरण गुप्त, दिनकर, निराला, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, मुंशी प्रेम चन्द्र, शरतचन्द्र, रवीन्द्रनाथ टेगोर, सुब्रह्मनियम भारती .....समाज सेवी व राजनैतिक क्षेत्र  में  राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, आर्य समाज व  महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी आदि के प्रयासों से भारतीय समाज से विभिन्न कुप्रथाओं का अंत हुआ एवं नारी-शिक्षा द्वारा नारी के नव जागरण का युग प्रारम्भ  हुआ |                  
                                                                                                       


              
   
                       अंग्रेज़ी दासता से स्वतंत्रता पश्चात  समाज की विभिन्न भाव उन्नति के साथ नारी-शिक्षा, नारी-स्वास्थ्य, अत्याचार-उत्प्रीडन् से मुक्ति, बाल-शिक्षा, विभिन्न कुप्रथाओं की समाप्ति द्वारा   आज नारी व भारतीय नारी के पुनः अपनी आत्म-विस्मृति, दैन्यता, अज्ञानता से बाहर
आकर खुली हवा में सांस ले रही है  एवं समाज व पुरुष की अनधिकृत बेडियाँ तोडने में रत है |                                                       
                         परन्तु यह राह भी खतरों से खाली नहीं  है , इसके लिए उन्हें आरक्षण आदि की वैसाखियों व  पुरुषों का अनावश्यक सहारा  नहीं लेना चाहिए अपितु अपने बल पर सब कुछ अर्जित करना ही श्रेयस्कर रहेगा |  पुरुषों की बराबरी के नाम पर अपने स्त्रियोचित गुण व कर्तव्यों का बलिदान व नारी विवेक की सीमाओं का  उल्लंघन  उचित नहीं |  शारीरिक आकर्षण के बल पर  सफलता की आकांक्षा व बाज़ार और पुरुषों के समझौते वाली भूमिका  में लिप्त  नहीं होना  चाहिए |  भोगवादी व्यवस्था , अतिभौतिकवादी चलन एवं अंधाधुंध पाश्चात्य अनुकरण, आकर्षणों, प्रलोभनों  के साथ स्वार्थी पुरुषों व पुरुषवादी संगठनों, छद्म-नारीवादी संगठनों  की बाज़ारवादी व्यवस्था से परे रह कर ही  नारी- श्रृद्धा- मूलक समाज, स्त्री-नियंता समाज   नारी-पुरुष समन्वयात्मक समाज की स्थापना की रीढ़ बन् सकती है |