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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 28 मई 2012

सिर्फ युवाओं को ही दोष क्यों ....सन्दर्भ आईपीएल ... डा श्याम गुप्त...

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ऑफ द फील्ड ---अभय खुरासिया का आलेख -राजस्थान पत्रिका ....संदर्भ -आईपीएल ..
                श्री अभय खुरासिया का उपरोक्त आलेख निश्चय ही आखें खोलने वाला है , हमें निश्चय ही गहनता से सोचना होगा, जैसा वे कहते हैं .." जिम्मेदारी युवा पर ही क्यों डालदी जाती है | सांस्कृतिक शून्यता का जिम्मेदार कौन? हमारे वरिष्ठ व जिम्मेदार तब कहाँ थे जब एम् टीवी, एफ टीवी,व तमाम दूषित तस्वीरों, विचारों का आगाज़ हो रहा  था | हमारे बच्चे हिंसा, मादकता , सनसनी  को देख कर बड़े होरहे हैं| जैसे बीज बो रहे हैं वैसे ही अंकुर फूटेंगे |"  ......
               महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ..जहां तक मुझे अभय का चित्र व युवाओं की वकालत करने से  लगता है कि वे एक युवा हैं ... अर्थात यह युवाओं का वक्तव्य है .... अपनी वरिष्ठ पीढ़ी पर उचित मार्गदर्शन न् करने हेतु ..... और यह एक कटु-सत्य भी है | .तो बात यहाँ  और भी गंभीर होजाती है, तथा  समाज व मानवता  के लिए एक चेतावनी...खतरे की घंटी ....
                 इस प्रकार वे अपनी युवा -आकांक्षा व पहले वाली पीढ़ी पर आक्षेप के साथ मूलतः आई पी एल को बंद करने के विचारों पर असहमत प्रकट करते हैं |
           
                 परन्तु साथ ही साथ यद्यपि शायद अनुभव-ज्ञान की कमी के कारण उनके विभिन्न कथ्य स्वयं ही विपरीतार्थक हैं, कंट्रोवर्शियल ........यथा-----

       -वे एक तरफ कहते हैं ..."समस्या का समाधान ताला लगाने में नहीं है वरन  ताला खोल सूक्ष्म शल्य क्रिया में है|"
        ---- परन्तु फिर ताले का आविष्कार ही क्यों हुआ ?
 इसके विपरीत भाव में वे कहते हैं कि .." जब सामाजिक मापदंड ही भौतिकता है तो युवा भटकेगा ही "
.........अर्थात सामाजिक तालों की, मापदंडों की  आवश्यकता है "|

       - वे एक तरफ कहते हैं .." खिलाड़ी धन के तट पर बना रहे, पर साथ ही मूल्यों के सेतु को भी मज़बूत करता चले "......वहीं दूसरी ओर कहते हैं कि..."मोह-माया से परे  सोचना एक अवस्था के बाद ही आता है |"
            ----निश्चय ही वह अवस्था आते आते सब नष्ट होजायागा | सब कुछ गलत-सलत करलेने के बाद यदि कुछ  सोचा तो क्या लाभ |

                       वस्तुतः यदि अनुभव व ज्ञान से सोचा जाय तो युवा लेखक भूल जाते हैं कि --मानव मन एक वायवीय तत्त्व है एवं विषयों में शीघ्र गिरता है ...जैसा कि वे स्वयं स्वीकार करते हैं ..."हमारा नैसर्गिक स्वभाव है कि हमें नकारात्मक बातें ज्यादा आकर्षित करती हैं".....अतः सर्जरी की नौबत ही क्यों आये , पहले से ही रोकथाम के उपाय होने चाहिए | "प्रीवेंशन इज बैटर देन क्योर "... जैसा कि वे पहली पीढ़ी पर दोषारोपण के साथ स्वयं ही स्वीकार करते हैं ......" .....हमारे वरिष्ठ व जिम्मेदार तब कहाँ थे जब एम् टीवी, एफ टीवी,व तमाम दूषित तस्वीरों, विचारों का आगाज़ हो रहा  था | हमारे बच्चे हिंसा, मादकता , सनसनी को देख कर बड़े होरहे हैं| जैसे बीज बो रहे हैं वैसे ही अंकुर फूटेंगे |"  ....... अतः निश्चय ही मानव मन को दूषित करने वाले साधनों को ही बंद कर देना चाहिए ...मूलतः वे जो किसी भी प्रकार से सामाजिक लाभ में सहायक नहीं हैं ...और अतिरिक्त आर्थिक लाभ सदैव असामाजिक होता है | अति-भौतिकता, मोह-माया उत्पन्न करता है, उसकी और खींचता है  |
             अतः  आई पी एल  जैसे ( व अन्य उल-जुलूल  डांस, गायन, देह-प्रदर्शन , अदि कला  व प्रगतिशीलता के नाम पर होने वाले व्यर्थ के ) आयोजनों को निश्चय ही बंद कर देना  चाहिए | साथ ही साथ आज की प्रौढ़ व अनुभवी पीढ़ी को अपनी गलतियों , गलत योजनाओं , गलत आचरणों पर सोचना चाहिये  व उचित समाधानार्थक उपाय करने चाहिए | अन्यथा भविष्य की पीढ़ी अपनी बर्वादी हेतु उन्हें कभी माफ नहीं करेगी |
                 
            

रविवार, 27 मई 2012

पृथ्वी का संरचनात्मक इतिहास--- क्रमिक श्रृंखला -भाग-१- - सौर-मंडल की उत्पत्ति—डा श्याम गुप्त ...

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

             यह आदि-सृष्टि  कैसे हुई, ब्रह्मांड कैसे बना एवं हमारी अपनी पृथ्वी  कैसे बनी व यहां तक का सफ़र कैसे हुआ, ये आदि-प्रश्न सदैव से मानव मन व बुद्धि को निरन्तर मन्थित करते रहे हैं । इस मन्थन के फ़लस्वरूप ही मानव  धर्म, अध्यात्म व विग्यान रूप से सामाजिक उन्नति में सतत प्रगति के मार्ग पर कदम बढाता रहा आधुनिक विग्यान के अनुसार हमारे पृथ्वी ग्रह की विकास-यात्रा क्या रही इस आलेख का मूल विषय है । इस आलेख के द्वारा हम आपको  पृथ्वी की उत्पत्ति, बचपन  से आज तक की क्रमिक एतिहासिक यात्रा पर ले चलते हैं।...प्रस्तुत है  इस श्रृंखला का प्रथम भाग ....

      ( सृष्टि व ब्रह्मान्ड रचना पर वैदिक, भारतीय दर्शन, अन्य दर्शनों व आधुनिक विज्ञान  के समन्वित मतों के प्रकाश में इस यात्रा हेतु -- मेरा आलेख ..मेरे ब्लोग …श्याम-स्मृति  the world of my thoughts..., विजानाति-विजानाति-विज्ञान ,  All India bloggers association के ब्लोग ….  एवं  e- magazine…kalkion Hindi तथा  पुस्तकीय रूप में मेरे महाकाव्य  "सृष्टि -ईशत इच्छा या बिगबैंग - एक अनुत्तरित उत्तर" पर पढा जा सकता है| ) -----
सौर नीहारिका

 
                      भाग-१- - सौर-मंडल की उत्पत्ति—
       सौर मंडल (जिसमें पृथ्वी भी शामिल है) का निर्माण, पृथ्वी के इतिहास का पहला युग की शुरुआत लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व एक सौर-नीहारिका  से द्वारा पृथ्वी के निर्माण के साथ हुई | इस को हेडियन युग कहा जाता है | इस दौरान, पृथ्वी की सतह पर लगातार उल्कापात होता रहा, और बड़ी मात्रा में ऊष्मा के प्रवाह के कारण ज्वालामुखियों का विस्फोट होता रहा |
आकाश गंगा

             पृथ्वी का निर्माणसौर नीहारिका जो अंतरतारकीय धूल तथा गैस की बनी हुई थी, के एक घूमते हुए बादल से हुआ, जो कि आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगा रहा था. यह बिग-बैंग पिंड  हाइड्रोजन  हीलियम तथा अधिनव तारों द्वारा उत्सर्जित भारी तत्वों से मिलकर बना था.   किसी निकटस्थ महा-तारक  की आक्रामक-आकर्षण लहर के कारण सौर निहारिका एक सूक्ष्म-ग्रहीय चकरी के आकार में रूपांतरित हो गया,. इसका अधिकांश भार इसके केंद्र में एकत्रित हो गया और गर्म होने लगा, आवेग तथा टकराव के कारण सूक्ष्म-ग्रहों का निर्माण प्रारंभ हुआ, जो कि नीहारिका के केंद्र के चारों ओर घूमने लगे. केंद्र में अत्यधिक गतिज ऊर्जा का निर्माण के परिणामस्वरूप चकरी का केंद्र गर्म होने लगा. और  हीलियम में हाइड्रोजन के नाभिकीय गलन की शुरुआत हुई और अंततः, सूर्य का निर्माण हुआ, समय के साथ-साथ बड़े खण्ड एक-दूसरे से टकराये और बड़े पदार्थों का निर्माण हुआ, जो सूक्ष्म-ग्रह बन गये. इसमें केंद्र से लगभग 150 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक विशेष ग्रह भी शामिल था - पृथ्वी इस ग्रह की रचना लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व हुई |  इसी प्रक्रिया से सौर-मण्डल के अन्य ग्रहों का उदय हुआ | यही प्रक्रिया पुनः पुनः ब्रह्माण्ड में नए नए तारों से चकरियों का निर्माण करती है, जिनमें से कुछ तारों से ग्रहों का निर्माण होता है |
ग्रहों का निर्माण
पृथ्वी के केंद्र तथा पहले वातावरण की उत्पत्ति---उत्पत्ति बाद पुरातन-पृथ्वी का विकास होता रहा, पुरातन-ग्रह पर पदार्थों के संचयन के दौरान, गैसीय सिलिका के एक बादल ने पृथ्वी को घेर लिया ये अधिकांश  हाइड्रोजन  हीलियम से बने थे, यह प्रारंभिक वातावरण था|  बाद में पृथ्वी का आंतरिक भाग पर्याप्त रूप से इतना  गर्म हो गया कि द्रव धातु, जिनका घनत्व अब उच्चतर हो चुका था, पृथ्वी के  केंद्र में एकत्रित होने लगे. परिणामस्वरूप पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण हुआ |  द्रव-धातु बाद में इसकी सतह पर ठोस चट्टानों के रूप में घनीभूत हो गया और गुरुत्वाकर्षण ने वातावरण को रोककर रखा, जिसमें पानी भी शामिल था. प्रारंभिक सतह के निर्माण के शीघ्र बाद, किसी अधिक प्राचीन-ग्रह की टक्कर, जिसे विशाल संघात कहा जाता है , का  पृथ्वी पर प्रभाव पड़ा, जिसने इसके आवरण व सतह के एक भाग को अंतरिक्ष में उछाल दिया और चंद्रमा का जन्म हुआ.  युवा पृथ्वी के लिये इस संघात के कुछ परिणाम बहुत महत्वपूर्ण थे. इससे ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा निकली,  जिससे पृथ्वी व चंद्रमा दोनों ही पूरी तरह पिघल गए | इस संघात के कारण पृथ्वी के अक्ष में भी परिवर्तन हो गया व इसमें 23.5° का अक्षीय झुकाव उत्पन्न हुआ, तथा पृथ्वी की घूमने की गति भी तीब्र होगई जो कि पृथ्वी पर मौसम के बदलाव के लिये ज़िम्मेदार है|
महासागरों और द्वितीय वातावरण की उत्पत्ति---  चूंकि विशाल संघात के तुरंत बाद पृथ्वी वातावरण-विहीन हो गई थी, अतः यह शीघ्र ठंडी हुई | बेसाल्ट की एक ठोस सतह निर्मित हुई | यह आर्कियन युग (लगभग ३.८ बिलियन वर्ष पूर्व )का प्रारम्भ में हुआ | इस ऊपरी परत से भाप निकली और ज्वालामुखियों द्वारा और अधिक गैसों का उत्सर्जन किया गया, जिससे दूसरे वातावरण का निर्माण हुआ| उल्का के टकरावों के कारण अतिरिक्त पानी आयात हुआ, टकराने वाले धूमकेतुओं में बर्फ थी, जिनसे जल प्राप्त हुआ. इन पदार्थों की टक्कर से बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल आदि ग्रहों पर जल, कार्बन डाइआक्साइड, मीथेन, अमोनिया, नाइट्रोजन व अन्य वाष्पशील पदार्थों में वृद्धि हुई.
     ग्रह के ठंडे होते जाने पर, बादलों का निर्माण हुआ. वर्षा से महासागर बने. इस नए वातावरण में जल-वाष्प, कार्बन डाइआक्साइड, नाइट्रोजन तथा अन्य गैसें आदि ग्रीन-हाउस गैसों की बड़ी मात्राओं ने सतह पर मौजूद जल को जमने से रोका.  मुक्त आक्सीजन सतह पर हाइड्रोजन या खनिजों के साथ बंधी हुई रही |
प्रारंभिक महाद्वीप--- प्रारंभिक-परत का निर्माण तब हुआ था, जब पृथ्वी की सतह पहली बार सख़्त हुई, वर्तमान महासागरीय परत की तरह ही यह परत भी बेसाल्ट से मिलकर बनी| पृथ्वी के आतंरिक–पिघले हुए पदार्थ के भाग मेंटल  पर ये सख्त... प्लेटें—टेक्टोनिक प्लेट्स... प्राय:गति करती रहतीं थी |(तरल पदार्थ संवहन -Mantle convection)-केंद्र से पृथ्वी की सतह तक उष्मा के प्रवाह का परिणाम है जिससे ठोस टेक्टोनिक प्लेट्स तैरती हुई गति करती रहती थीं )  ये प्लेट्स रूपांतरित(मेटामोर्फिक-रोक्स) व तलछटीय (सेडीमेन्ट्री-रोक्स) कणों से बनी थीं अतः उस समय नदियों व सागरों का अस्तित्व था | 

पृथ्वी के वायुमंडल, सतह व महासागरों का निर्माण


















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