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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

आज का छिद्रान्वेषण ...हम हिन्दुस्तानी .....ड़ा श्याम गुप्त .....

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
                      हम हिन्दुस्तानी






                             १.
मेरा जूता इंग्लिस्तानी, ये पतलून अमरीकानी,                                                
सर पे बाल,शैम्पू वाले, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी |

निकल पड़े हैं प्रगति के पथ पर,हाथ में लिए तिरंगा,
कोई  न  भारतवासी अब  रह पाए  भूखा  नंगा |
होगी दुनिया को हैरानी, हम दीवाने हिन्दुस्तानी ||




                               





                             
                  हम हिन्दुस्तानी
                           २.
          पता नहीं  इस समाचार में साँपों और पढ़ी गयी कविता का क्या अर्थ है .... यदि पुरुष के लिए कथन है तो वे सांप तो हैं ही चाहे जहरीले हों या सीधे ....
 ----और प्रेम में झूठा खाना जरूरी नहीं होता 
       झूठन खाना तो हरगिज़ नहीं |....... 
------ पर झूठा खाने के लिए प्रेम करना तो आवश्यक है ...
जब प्रीति चुम्बन, बिना मुख झूठा किये नहीं होता,
 तो झूठा खाने में क्या बुराई है |
.------- झूठा तो महिलायें स्वयं ही या तो खाना बेकार न जाय ..या प्रेम वश खाती-पीती  हैं ..... क्या आजकल की पीढ़ी ..प्रतिदिन एक ही  स्ट्रा से, एक ही गिलास से या आधा-आधा नहीं पी रहे हैं हर टीवी, सिनेमा और वास्तव में भी माल में, होटलों में .....स्वेच्छा से, स्मार्टनेस से,  प्रेम से?.....पति-पत्नी बनने से पहले ही ....
                                            तथा....
" प्रेम  डराता है  हमें डराता है कि जिसे हम चाहते हैं वह खो न जाए चला न जाए बदल न जाए ..."  
----तो वह प्रेम किस बात का ...वह तो आकांक्षा है....सिर्फ  चाह है...प्रेम नहीं .."जब प्यार किया तो डरना क्या "

 ------एसी व्यर्थ की, निरर्थक समाज को विच्छेदित करने वाली, अतार्किक, असाहित्यिक  कविताओं से हम समाज को क्या दिशा देना चाहते हैं .... अब हम क्या कहें साहित्यिक-सामाजिक दायित्व की बात  ...जबकि वरिष्ठ समाज सेवी लोग भी वहाँ उपस्थित हैं ...|  और कितना गिराएंगे हम समाज को, साहित्यिक स्तर को , व्यक्ति को ........|

2 टिप्‍पणियां:

shyam gupta ने कहा…

सत्य बचन --धन्यवाद धीरेन्द्र जी....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही रोचक..