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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 26 जून 2012

पृथ्वी का संरचनात्मक विकास श्रृंखला ...भाग-पांच - मानव का विकास...खंड अ ....

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
                                     

         मानव के विकास क्रम को निम्न दो खण्डों वर्णन किया जा सकता है--      (अ) मानव का संरचनात्मक विकास     (ब) मानव का सामाजिक-विकास  
  
             यह आदि-सृष्टि कैसे हुई, ब्रह्मांड कैसे बना एवं हमारी अपनी पृथ्वी कैसे बनी व यहां तक का सफ़र कैसे हुआ, ये आदि-प्रश्न सदैव से मानव मन व बुद्धि को निरन्तर मन्थित करते रहे हैं । इस मन्थन के फ़लस्वरूप ही मानव  धर्म, अध्यात्म व विग्यान रूप से सामाजिक उन्नति में सतत प्रगति के मार्ग पर कदम बढाता रहा आधुनिक विग्यान के अनुसार हमारे पृथ्वी ग्रह की विकास-यात्रा क्या रही इस आलेख का मूल विषय है । इस आलेख के द्वारा हम आपको  पृथ्वी की उत्पत्ति, बचपन  से आज तक की क्रमिक एतिहासिक यात्रा पर ले चलते हैं।...प्रस्तुत है  इस श्रृंखला का  भाग पांच ...मानव का विकास ...जिसे दो खण्डों में वर्णित किया जायगा.......
     खंड अ. मानव का संरचनात्मक विकास  तथा खंड ब. मानव का सामाजिक विकास |

      ( सृष्टि व ब्रह्मान्ड रचना पर वैदिक, भारतीय दर्शन, अन्य दर्शनों व आधुनिक-विज्ञान के समन्वित मतों के प्रकाश में इस यात्रा हेतु -- मेरा आलेख ..मेरे ब्लोग …श्याम-स्मृति  the world of my thoughts..., विजानाति-विजानाति-विज्ञान ,  All India bloggers association के ब्लोग ….  एवं  e- magazine…kalkion Hindi तथा  पुस्तकीय रूप में मेरे महाकाव्य  "सृष्टि -ईशत इच्छा या बिगबैंग - एक अनुत्तरित उत्तर" पर पढा जा सकता है| ) -----
 
                         

                (अ) मानव का संरचनात्मक विकास    
               जल में जीवन व प्रथम कोशिका उत्पत्ति से मत्स्य, स्थलीय प्राणी व वानर बनने के क्रम में --- छुद्र ग्रहों के पृथ्वी पर प्रहार- बम्बार्डमेंट, महाद्वीपों के निर्माण व विनाश, वातावरण के क्रमिक रासायनिक व भौतिक बदलाव...  ज्वालामुखीय घटनाओं, किसी उल्का-पिण्ड के प्रभाव, मीथेन हाइड्रेट के गैसीकरण, समुद्र के जलस्तर में परिवर्तनों,  ऑक्सीजन में कमी की बड़ी घटनाओं या इन घटनाओं के किसी संयोजन आदि -- के कारण पृथ्वी पर जीवन का लगातार बार-बार निर्माण व विनाश का क्रम चलता रहा। प्रकृति  ने भी हर बार नवीन प्रयोग किेये, प्रत्येक बार नवीन जीव-सृष्टि  उत्पन्न होती रही जो वातावरण व जीवन-संघर्ष के अधिकाधिक उपयुक्त थी। अनुपयुक्त जीव-सृष्टि नष्ट हो जाती थी व शेष.. जीवन को आगे विकसित करके अपनी आगे की पीढी को अधिकाधिक उपयुक्तता प्रदान करती थी...शारीरिक संरचना व जीवन प्रक्रियाओं में भी उसी प्रकार परिवर्तन व उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) आते गये।  समर्थ प्रजातियों में से कुछ जीव म्यूटेशन या विपर्यय-प्रज़नन द्वारा नवीन प्रजातियों की उत्पत्ति भी करते गये। जो प्रथम मानव की उत्पत्ति तक चलता रहा। साथ ही साथ जीवन के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा। 
        एक बार पुनः जल ( महासागर ) में ----  यद्यपि --पैलियोशीन काल में, स्तनधारी जीवों में तेजी से विविधता उत्पन्न हुई, उनके आकार में वृद्धि हुई और वे प्रभावी कशेरुकी जीव बन गए| परन्तु इन प्रारंभिक जीवों का अंतिम आम पूर्वज शायद इसके 2 मिलियन वर्षों (लगभग 63 Ma में) बाद समाप्त हो गया| कुछ ज़मीनी-स्तनधारी महासागरों में लौटकर  गए, जिनसे अंततः डाल्फिनों व ब्लयू-व्हेल आदि महासागरीय जीवन का विकास हुआ |                                                      ऊपर---चित्र----जलीय जीव से मत्स्य एवं बानर व मानव की उत्पत्ति का क्रम ....        चित्र-.. जलीय-जीव से मानव-आकृति तक के क्रमिक उत्पत्ति-विकास क्रम का चित्रान्कन

         इस प्रकार  सेनोज़ोइक युग (नव--काल) में .. लगभग 6 मिलियन  के  आस-पास पाया जाने वाला स्तनधारी छोटा अफ्रीकी वानर के वंशजों में आधुनिक मानव व उनके निकटतम संबंधी, बोनोबो तथा चिम्पान्ज़ी दोनों शामिल थे---कुछ कारणों से एक शाखा के वानरों ने सीधे खड़े होकर चल सकने की क्षमता विकसित कर ली |  उनके मस्तिष्क के आकार में तीव्रता से वृद्धि हुई और 2 मिलियन तक, होमो -वंश  के पहले प्राणी का जन्म हुआ। इसी समय के आस-पास, आम चिम्पांज़ी के पूर्वजों और बोनोबो के पूर्वजों के रूप में  दूसरी शाखा निकली और जीवन के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा। 

                          चित्र-मानव के पूर्वज की विभिन्न शाखाये….

आधुनिक मानव (होमो सेपियन्स ) की उत्पत्ति--- लगभग 200,000 वर्ष पूर्व या और अधिक पूर्व अफ्रीका में हुई |  
आध्यात्मिकता के संकेत देने वाले पहले मानव - नियेंडरथल  वे अपने मृतकों को दफनाया करते थे, अक्सर भोजन या उपकरणों के साथ | परन्तु इसका  कोई वंशज शेष नहीं बचा |
अधिक परिष्कृत विश्वासों के साथ मानव -   क्रो-मैग्नन गुफा-चित्रों, पत्थर की कुछ आकृतियां बनाने वाले व जादुई या धार्मिक महत्व वाले मानव की उत्पत्ति लगभग 32,000 वर्ष के उपरान्त ही लगभग हुई होगी क्योंकि गुफ़ा चित्र ३२००० वर्ष तक नहीं मिलते। क्रो-मैग्ननों ने अपने पीछे पत्थर की कुछ आकृतियां जैसे विलेन्डॉर्फ का वीनस, भी छोड़ी हैं|                  
        11,000  वर्ष पूर्व की अवधि तक आते-आते, होमो सेपियन्स  विश्व भर में फ़ैल गए  व दक्षिणी-अमरीका  के दक्षिणी छोर तक पहुंच गये, जो कि अंतिम निर्जन महाद्वीप था | औज़ार व हथियार आदि उपकरणों का प्रयोग और संवाद में सुधार जारी रहा और पारस्परिक संबंध अधिक जटिल होते गए |
            यद्यपि अभी तक मानव का प्रथम अवतरण अफ़्रीका में माना जाता रहा है …. परन्तु  आधुनिकतम खोजों से  मानव का उद्भव व विकास एशिया  से ही सिद्ध होता है। प्रोसीदिंग्स ऑफ नॅशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज  के अनुसार -- म्यामार में अन्थ्रोपोइड्स... [ मानव के पूर्वज ..बानर, (मंकी ) , लंगूर (एप्स) व पूर्व-मानव ]... के दांतों के जीवाश्म (फौसिल) प्राप्त हुए हैं जो अफ्रीका व एशिया के ‘मिसिंग लिंक्स ‘ हैं| वे एशिया में उत्पन्न हुए व अफ्रीका में स्थानांतरित होकर गए|
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       चित्र---- मानव- इतिहास का पुनर्लेखन   टाइम्स ऑफ इंडिया ..साभार              
  मानव का जन्म भारतीय भूखंड पर होने के प्रमाण--वस्तुतः प्रत्येक भूखंड...(भूगर्भीय प्लेट )..पर अपने समयानुसार ..मानव उद्भूत हुआ परन्तु ... उचित जीवन विकास योग्य वातावरण के अभाव में नष्ट होता रहा...जैसा चित्र ३ में वर्णित लुप्त मानव शाखाओं से पता चलता है |  
        भारतीय-टेक्टोनिक प्लेट सदा से ही प्रत्येक हलचल में पृथक अस्तित्व में रही है....१३०० मि. सुपर कोंटीनेंट रोडेनिया के समय भी ....पेंजिया के समय भी एवं गोंडवाना लेंड.. के विघटन पर विभिन्न महाद्वीप बनने के समय से भारतीय-भूखंड बनने तक भी ... अतः इस भूखंड पर जीवन सबसे अधिक काल तक रहा |
         विभिन्न मानव प्रजातियों का लुप्त होना भी....सुपर कोन्टीनेन्ट..पेन्ज़िया (२५० मिलियन वर्ष) के लारेशिया गोन्डवाना में टूटने पर व गोंडवाना लेंड के स्थलीय महाद्वीपों के पुनः-पुनः जुडने- बिखरने के कारण होता रहा, जिसका मुख्य भाग, भारतीय भूभाग था । पुनः जब बाल्टिक साइबेरिया जुडकर यूरेशिया बना तथा आस्ट्रेलिया गोन्डवाना से अलग हुआ, चाइना भाग युरेशिया के एक ओर तथा भारतीय भूभाग युरेशिया के मध्य में स्थिर हुआ और पृथ्वी का सबसे स्थिर भूभाग बना ( ….जो बाद में पृथ्वी  का सबसे उपजाऊ समृद्ध क्षेत्र बना और मानव की प्रथम जन्म भूमि प्रथम पालना…..)
      हिमालय की उत्पत्ति.... ४०-५० मिलियन वर्ष पहले टीथिस सागर के स्थान पर प्रारम्भ हुई ..गोंडवाना लेन्ड के विखंडन व  भारतीय प्लेट के उत्तरीय प्लेट से टकराने से ५--६ मि. में टेथिस –समुद्र लुप्त होने लगा व ३ मि.में उसके स्थान पर तिब्बत के पठार ने ले लिया तथा हिमालय शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति हुई | भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के उत्तरी भाग के डूबने पर  शेष गोंडवाना लेंड के भाग से द. भारतीय भूखंड बना | भारत में आज भी गोंडवाना लेंड मौजूद है|
 लगभग ५ से २ मि. तक हिमालय श्रेणी विक्सित होती रही व आज भी विकासमान है|
--- अतः उत्तरीय हिम-प्रदेशीय हवाओं से सुरक्षित क्षेत्र होने से पृथ्वी के अन्य स्थानों की अपेक्षा जीवन के सर्वाधिक उपयुक्त होने के कारण ...प्राणी का तेजी से विकास हुआ, और लघु बानर से मानव का जन्म स्थल भारत बना....एवं लगभग २ मि. में  होमो वंश के पहले प्राणी ...आधुनिक मानव का जन्म  यहीं हुआ| यही समय ५-६ मि. मानव के उद्भव का भी निश्चित हुआ है...|

   अन्य प्रमाण ----भारतीय पौराणिक-कथायें.....
१- अवतार कथायेंमत्स्यावतार  से  वामन अवतार  तक.व आगे ......मत्स्य से छोटा -वानर  के  उद्भव    पुनः उन्नत -मानव  के उद्भव  व विकास की  कथा  से  मेल खाती है।
२-जम्बू-द्वीप का वर्णन – वस्तुतः जीवमय सम्पूर्ण विश्वखंड को गोन्डवना लेन्ड या  भारत या जम्बू द्वीप कहा गया है जो... = भारत+अफ़्रीका+साउथ पोल+आस्ट्रेलिया+ चाइनायुक्त भूमि थी| राजा सगर के रथ के पहियों से सात सागर व सात महाद्वीप बनने की कथा ...अर्थात समस्त जम्बू-द्वीप के बनने का वर्णन...
३-सुमेरु ..आज मानव निवास की सबसे ऊंची चोटी हिमालय की बंदर-पूंछ चोटी है....जिसे सुमेरु भी कहा जाता है.. अर्थात बन्दर की पूंछ लुप्त होकर मानव बनने का स्थान |  सुमेरु विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता का स्थान कहा जाता है|
४- हिमालय की पुत्री पार्वती व शिव ... से आगे मानव जाति के कल्याण की कथाएं ..अर्थात मानव का विकास व वृद्धि ..
५- मनाली ...प्रथम मानव मनु की तपस्या स्थली मनाली हिमाचल प्रदेश में स्थित है |
      मानव का विश्व भर में प्रयाण ... निरंतर विकास के उपरांत मानव जनसंख्या विकास के अगले चरण में ...मानव भारतीय भूभाग से उत्तर-पश्चिम की ओर से ..अफ़्रीका, योरोप, एशिया,
चाइना, और ग्रेट-बेरियर रीफ़ पार करके उत्तरी अमेरिका पहुंचा,…वहां से दक्षिण -अमेरिका-( जो इस समय तक लारेशिया के विघटन से लारेन्शियाउत्तरी अमेरिका गोन्डवाना के विघटन .अमेरिकी भूभाग के बनने पर आपस में जुड चुके थे-)-- तत्पश्चात.. विभिन्न महाद्वीपों के विचलन वातावरण के परिवर्तन..बार बार हिमयुगआदि के कारणमानव…..पूरे भूभाग पर एक स्थान से दूसरे स्थान पुनः पुनः परिवर्तन गति करता रहा। अतः विभिन्न स्थानों पर अवशेष-फ़ौसिल्स आदि  मिलने परआधुनिक वैग्यानिकों द्वारा उसी स्थान के नाम से ..उसे पुकारा जाने लगा।
      आर्य जाति.. प्रथम सुसंस्कृत मानव समूह...सिंधु क्षेत्र में जन्म व विकास होने के उपरांत... पूर्व में गंगा क्षेत्र की तरफ बढे... हिन्दुस्तान ....ब्रह्मावर्त..की स्थापना एवं सुदूर पूर्व में फैले ,.....  दक्षिण की ओर ..विन्ध्य पार करके दक्षिण भारत में स्थापित हुए | जो अगस्त्य मुनि की कथा से तादाम्य करता है| इस प्रकार सम्पूर्ण भारत में स्थापित हुए|
      
     मानव के वैज्ञानिक - विकास का क्रम....
       अग्नि की खोज व प्रयोग - आग का प्रयोग संभवतः प्रारंभिक मानव -पैलियोलिथिक होमिनिड ..होमो हैबिलिस –द्वारा किया जाता था | अग्नि को नियंत्रित कर पाने की क्षमता शायद होमो इरेक्टस में शुरु हुई, 790,000 वर्ष पूर्व |
        भारतीय वैदिक व पौराणिक देव अग्निदेव एवं अंगिरा ऋषि-कुल को अग्नि के प्रथम आविष्कारक कहा जा सकता है | यज्ञ की परम्परा भी अग्नि के आविष्कार व सर्व-प्रथम प्रयोग प्रमाण हैं|   
      भाषा की उत्पत्ति व सामूहिकता का उद्भव - - जैसे-जैसे मस्तिष्क का आकार बढ़ा, इसके परिणामस्वरूप उनकी सीखने की क्षमता में वृद्धि हुई, भावनाएं, विशिष्ट-कौशल, विशेषज्ञता, अनुभव-विशिष्टता  के कारण मनुष्य को एक दूसरे पर निर्भरता की एक लंबी अवधि की आवश्यकता पड़ने लगी अतः सामूहिकता, सहजीवन व सामाजिकता का विकास हुआ| सामाजिक कौशल अधिक जटिल बन गए तो आपस में समन्वय व समझ हेतु ... इशारों के पश्चात  भाषा विक्सित व परिष्कृत हुई,  विविध विधियां, प्रक्रियाएं व उपकरण विक्सित व विस्तरित हुए| जिसने आगे और अधिक सहयोग तथा बौद्धिक विकास में योगदान दिया|                                            चित्र-५ –मानव का विकास  

                             ------सभी चित्र गूगल साभार

     -----क्रमश: खंड -ब . मानव का सामाजिक विकास .....अगले अंक में