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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

रस, काम, उद्दीपन एवं बलात्कार ... डा श्याम गुप्त ...

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                       

अंग-प्रदर्शन


शराब-पार्टी

                               जीवन का मूल उद्देश्य आनंद प्राप्ति है|  रस आनंदानुभूति के श्रोत हैं |  प्रत्येक रस एक स्थायी भाव से ह्रदय में रहता है, उसकी उत्पत्ति विभाव ---आलंबन-उद्दीपन  से होती है तब उसका अनुभव मन में होकर समस्त शरीर में संचारित होता है एवं क्रिया-प्रतिक्रया  रूप में परिणत होता है |
                     रसराज श्रृंगार-रस उभय-पक्षीय प्रभावकारी होने से एक विशिष्ट रस है|  श्रृंगार का स्थायी भाव प्रेम है जो उद्दीपन के तदुपरांत रति व काम में परिवर्तित होता है | प्रत्येक वस्तु-भाव के त्रिगुण-भाव के अनुसार यह भी सत, रज और तम....भावों में विक्सित होता है| सत अवस्था में यह सिर्फ प्रेम-भाव होता है  प्रेम में संयोग व वियोग दोनों होते हैं, दोनों अवस्थाओं में उच्च आदर्श के तत्व निहित रहते है | रज व्यवहारिक सांसारिक अवस्था है इसमें रति-भाव( संयोग से सम्भोग तक-मानसिक से शारीरिक तक  ) प्रधान होजाता है व तम-अवस्था में सिर्फ काम-भाव रहता है किसी भी भांति सम्भोग,  जो आलंबन-आश्रय ( मूलतः पुरुष ) के विकृत असंस्कारित मानस के  तामसिक भाव के कारण उद्दीपन के प्रभाववश ... बलात्कार  तक में परिणत होने की संभावना रहती  है उद्दीपन -प्रभाव तात्कालिक भी होता है और पूर्व प्रभाव वश भी |
क्यों
क्यों
                      किसी भी रस की उत्पत्ति व संचार, प्रभाव और क्रियात्मक विकास ..विभाव अर्थात आलंबन व उद्दीपन के बिना नहीं होती |   श्रृंगार के तामसिक भाव, काम के, वलात्कार जैसे अति-तामसिक कृत्य के संचरण हेतु  आलंबन –आश्रय, पुरुष ( या स्त्री)-- आलंबन-विषय (कारण ) कुसंगति, -कुविचार, तुच्छ-मानसिकता, घर-परिवार-समाज-राष्ट्र में मानसिकता, विचारशीलता, संस्कार व चरित्र, आदरभाव, सुसंस्कार युक्त उदाहरण, व्यवहार व कार्य की कमी या अनुपस्थिति तथा अनाचरण, दुराचरण, कुसंस्कार युक्त भावों, विचारों व कृत्यों की उपस्थिति |   उद्दीपन–सुन्दर स्त्री (या पुरुष ), श्रृंगार, भड़कीले वस्त्र, कम कपड़ों में अनावरण देह, एकांत, अकेला होना, अवसर, परिस्थिति, स्थिति, स्थान, नशे में होना, कुसंग.... | आलंबन व उद्दीपन जैसे होंगे वैसे ही अनुभाव-प्रभाव व संचारी-क्रियात्मक-परिणामी भाव होंगे| यह समाज में प्रचलित संस्कृति, अनुशासन व आदर्श के अनुरूप होगा | भारतीय कृतित्व व कर्म--व्यवहार के मूल मन्त्र 'सत्यम, शिवम् सुन्दरम ' के अनुसार प्रत्येक कार्य को करने से पहले इस कसौटी पर कसा जाना चाहिए | क्या यह कार्य वस्तुतः करने योग्य है, क्या कार्य कल्याणकारी है अंत में ही उसका सौन्दर्य भाव --उसमें निहित स्व आनंद ,रसानुभूति आदि देखनी चाहिए | प्रेम, काम व रति भाव में भी यदि यही सोचा जाय तो व्यक्ति कभी बलात्कार की और प्रवृत्त नहीं होगा |
           
                      सौन्दर्य सदा से ही मानव मन को अकर्षित करता रहा है | यूं बलात्कार या शील-हरण कोइ नयी बात नहीं है|  बलात्कार पुरा व प्राचीन युग में भी हुए हैं, परन्तु समाज में स्थित आदर्शों, अनुशासन व संस्कृति के कारण आज की भांति अत्यधिक्, हर गली मोहल्ले में प्रायोजित नहीं अपितु गिने-चुने | जिन्हें आलोचित तो किया गया परन्तु समाज द्वारा बलात्कार नहीं कहा गया|  भारतीय इतिहास में पहला उदाहरण विष्णु जी द्वारा तुलसी से छल द्वारा उसका पतिब्रत-भंग ताकि जालंधर नामक दैत्य का संहार किया जा सके | वह सकारण था समाज के व्यापक हितार्थ | यदि स्त्री छल को नहीं समझ पाती तो उसकी आंशिक सहमति ही मानी जायगी | उस युग में स्त्रियाँ स्वतंत्र थीं किसी के भी साथ स्वेच्छा से सम्बन्ध बनाने हेतु एवं बंधन इतने कठोर नहीं थे आज भी भारतीय  काम-शास्त्र में व्याख्यायित विवरण के अनुसार विशिष्ट तात्पर्य हेतु अन्य विशिष्ट स्त्रियों-पुरुषों  से संपर्क बनाना विशिष्ट परिस्थितियों में मान्य है | अतः विष्णु का दोष कोई दोष नहीं माना गया | देवराज इंद्र द्वारा अहल्या से छल द्वारा उसका शील-हरण में भी अहल्या को श्राप दिया गया कि वह छल को क्यों नहीं पहचान पाई अर्थात उसकी भी आंशिक सहमति थी | अतः इंद्र को व्यक्तिगत श्राप का दंड तो दिया गया परन्तु सामाजिक-कानूनन दंड नहीं|  चन्द्रमा द्वारा बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण भी बलात्कार नहीं था बाद में दोनों पक्षों में सहमति होगई  | रावण द्वारा भी वेदवती से दुराचार के प्रयत्न की  कथा सुनने को मिलती हैं | इसीलिये उसे आसुरी –भाव का व्यक्ति कहा गया परन्तु रावण होते हुए भी उसने आदर्श रखा एवं दूसरे की असहाय पत्नी सीता के साथ बलात्कार का प्रमाण नहीं मिलता |
                 इसी प्रकार महिलाओं द्वारा किये गए ऐसे  कृत्यों में सरस्वती  द्वारा देवताओं  से अपने बदले गन्धर्वों से अमृत प्राप्ति एवं तदुपरांत पुनः देवों के साथ लौट आनामेनका द्वारा विश्वामित्र का तप भंगउषा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण आदि |   
                पाश्चात्य जगत में तो सदा से ही उच्छ्रन्खल-संस्कृति रही है | मध्यकालीन इतिहास में विजयी सेनापतियों द्वारा खुले आम सभी की उपथिति में विजित रानियों, स्त्रियों से सम्भोग/ बलात्कार किये जाने की घटनाएँ आम सुनी जाती हैं|  भारत में मध्यकाल में जो बुराइयां सुनी जाती हैं वे मुस्लिम आक्रान्ताओं व अंग्रेजों की पाश्चात्य संस्कृति के फ़ैलने/ अपनाने से आयी और उसका प्रभाव आज भी है |

खेल -क्रिकेट या अंग प्रदर्शन  ? --सब पैसे के लिए ..

               आज हमारे समाज में --दृश्य-श्रव्य माध्यम...टीवी , सिनेमा, के साथ साथ इंटरनेट, पत्र-पत्रिकाएं, मंच, सामाजिक-मंच, हीरो-हीरोइन द्वारा अधनंगे पोज में एड व फिल्म करना, उन्हें सेलेब्रिटी मान कर हर जगह महत्त्व देना ताकि वे युवक-युवतियों के रोल माडल बन सकें और खूब धन कमाया जा सके , अत्यधिक मनोरंजन के माध्यमों-खेलों का विज्ञापन, गेजेट्स पर अत्यधिक आधारित जीवनचर्या  आदि सभी जगह अकर्म, उच्छ्रन्खलता, अश्लीलता परोसी जा रही है जिससे बाल-युवा व किशोर पीढी में अनुशासनहीनता, विचारहीनता, असाहित्यिकता, चरित्रहीनता को  प्रश्रय मिल रहा है | अति-भौतिकता की दौड़ में, अधिक कमाने की इच्छा व आशा; पाश्चात्य नक़ल व चलन के कारण बच्चों- युवाओं- युवतियों  में सांस्कृतिक व वैचारिक अकाल होता जा रहा है | जो युवाओं को प्रेम, आदर्श की वजाय सेक्स, मौज-मस्ती की तरफ लिए जा रहे हैं | यही आलंबन विषय (कारण) है जिससे  युवा व पुरुष बलात्कार कैसे कर्म के लिए आलंबन-आश्रय बनते जा रहे हैं |               
डॉग-शो  या अंग प्रदर्शन
क्यों मुंह छिपाना पड़े , पहनावा व रेव-पार्टी
फर्क क्यों
पूल-पार्टी..किसलिए
         बचपन से ही लड़कियों-बच्चियों को चोलीनुमा टॉप व कच्छानुमा अधोवस्त्र पहनाये जा रहे हैं.. क्यों.?.यदि लड़के पेंट, हाफपेंट , शर्ट , कोट व युवा मर्द फुल-शर्ट व पेंट पहन सकते हैं तो लड़कियाँ-युवतियां कच्छा-चोलीनुमा, अंग-प्रदर्शक  वस्त्र क्यों पहनें, क्या कोई उचित कारण बताया जा सकता है ...सिर्फ फैशन हेतु ..?  स्त्रियों का घर से बाहर जाकर पराई चाकरी करना क्या वास्तव मेंआवश्यक है, फिर देर रात से घर लौटना| लड़कियों का बॉय-फ्रेंड्स के साथ अकेले रहना, घूमना-फिरना, हर प्रकार के बातें करना, देर रात तक पार्टीबाजी, डांस-पार्टियां, रेव पार्टियां  आदि क्या आवश्यक हैं ? यही सब बलात्कार जैसे कृत्य हेतु उद्दीपन का कार्य करते हैं |
               

                         यदि हम इन दो तथ्यों का समाज में नियमन कर सकें तो बलात्कार जैसे कर्म बहुत कुछ कम किये जा सकते है |
     

श्याम स्मृति तरंग.....डा श्याम गुप्त....

                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...'


१ .राम-सीता –नर-नारी...

 राम, राम है; सीता, सीता ,
कृष्ण, कृष्ण है; राधा, राधा|
सबका अपना स्वयं-भाव है ,
सभी पूर्ण हैं कोई न आधा ||

ब्रह्म पूर्ण है,प्रकृति पूर्ण है ,
पूर्ण से घटकर यथा पूर्ण है |
पूर्ण, पूर्ण में जुड़े पूर्ण है ,
सदा पूर्ण वह कभी न आधा ||

वही है सीता, वही है राधा ,
विविधि रूप प्रकृति मर्यादा |
नर – नारी के कर्म हों  एसे,
बनें राम-सीता, कनु-राधा |


२ .जग-जीवन सत्व...

नदिया सागर लय हुई खोकर निज अस्तित्व |
नदिया से सागर हुई, जग-जीवन का सत्व  ||

 कबिरा तो कबिरा भया, रोक सका ना कोय |
जल में घट, घट नीर में, जीव ब्रह्म लय होय ||