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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

जल्दी शादी और रेप..... डा श्याम गुप्त







       
                       क्या  इन्डियन सायकाट्रिस्ट  सोसायटी  की प्रेसीडेंट  की बात कोई भी मायने नहीं रखती ... क्या वास्तव में यह बात बिलकुल सोचने योग्य नहीं है  जो अन्य सायकाट्रिस्ट लोगों ने एक दम उसे खाप से जोड़ दिया ...एक मनोवैज्ञानिक की बात का कुछ तो अर्थ हो सकता है  |
                       ज़रा ध्यान से  सोच कर देखें तो इस बात में कुछ तो सच्चाई है जो एक अनुभवी चिकित्सक-मनोवैज्ञानिक ने अनुभव किया | निश्चय ही इससे ये घटनाएँ  समाप्त नहीं तो कम अवश्य होंगीं|  अन्य उपाय तो अपने स्थान पर किये ही जाने चाहिए |                     .

7 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

कहती डाक्टर इंदिरा, कारण बड़े सटीक ।

जल्दी शादी है सही, है उपाय यह नीक ।

है उपाय यह नीक, भूख ले जाय रेस्तराँ ।

सोवे टूटी खाट, नींद से व्यक्ति अधमरा ।

पॉकेट में है माल, भूख काया ना सहती ।

खाए जूठा भात, बुद्धि भी कुछ ना कहती ।।

लोकेश सिंह ने कहा…

अनुभवी चिकित्सक ने जो कहा उससे मै सहमत हूँ ,मैंने भी इस बिषय पे सोचा डाक्टर इंदिरा शर्मा जी की बाते तर्कसंगत लगी ,शुभकामनाये

virendra sharma ने कहा…

"आधुनिक विमर्श की कोई चौहद्दी नहीं है .आप परम्परा पर अंगद की लात नहीं मार सकते .छोटे शहर जो कमोबेश परम्परा से बंधे हैं आज भी वहां जीवन अपेक्षया सुरक्षित है .दिल्ली जैसे महा नगरों

की कोई खसूसियत कोई चेहरा नहीं बचा है ,परम्परा गत समाज के लोग नियम बनाके उनका पालन करते हैं .वहां नियम टूटने का मतलब हाईकोर्ट जाना नहीं है .परात्परा है परम्परा .जो परे से भी परे

है ,दूर तक जाती है पीढ़ियों के पार वह परम्परा है .जो अपने इस्तेमाल में व्यापक है सर्वव्यापी है वह परमपरा है .परम्परा गत छोटे शहर न केवल सुरक्षित हैं उनका एक चेहरा भी है .

मनोविज्ञान के पूर्व राष्ट्रीय प्रोफ़ेसर रहे डॉ इन्द्रजीत सिंह मुहार ने कहा -इंदिरा जी कौन से ज़माने की बात कर रहीं हैं .माँ बाप के कौन से नियंत्रण की बात कर रहीं हैं .अच्छी ही रहता है माँ बाप के

चंगुल से निकलना बेटे बहुओं का वरना शादी एक कलह में बदल जाती है .विस्फोटक सामग्री को पास पास रखना ही क्यों है .

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद ..प्रवाह जी ...----समय के प्रवाह में हमें इतना भी नहीं बहते जाना चाहिए कि प्रपात का पता ही न चले...

---धन्यवाद रविकर जी .... क्या खूब, कारण बड़े सटीक ..आप तो भई कुंडली -विशेषज्ञ होगये हैं....

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

सोचने योग्य बात है यह सही में |

Tamasha-E-Zindagi
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shyam gupta ने कहा…

भई वीरेन्द्र जी ये कौन सी भाषा है हम तो पहचान ही नहीं पा रहे ..सर कहीं पैर कहीं ...कुछ कहना है तो स्पष्ट कहा करें गाथा नहीं ...
---इंदिरा जी तो आज के जमाने की बात कह रही हैं...आप कहाँ से भूतपूर्व ले आये....

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद तुषार जी.... बात ..प्रत्येक दृष्टिकोण से सोचने योग्य तो होनी ही चाहिए ...न कि एक दम खाप...खाप जैसी घिसी-पिटी कहाबत ...