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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

रविवार, 30 जून 2013

साँपों , जंगल, मिट्टी-पत्थरों ,वरसाती नदियों की उमड़ती धाराओं व मजदूरों के बीच हनीमून ...डा श्याम गुप्त

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


               जून का माह देश के लिए तो अति महत्व पूर्ण  है ही .... २५ जून  १९७५ ... को  ३८ वर्ष पहले देश में एक महत्वपूर्ण दुर्घटना हुई थी....२५ जून, १९७५ को ....भारत में आपात काल का लगना | ठीक उसी  दिन एक और दुर्घटना हुई थी ....  अपने  व्यक्तिगत जीवन में .....हमारा  विवाह संस्कार....उसी  २५ जून १९७५  की रात्रि-बेला  में ही हुआ था, हमारी अबाध स्वतन्त्रता का हनन |
              प्रातःकाल विविध संस्कार समाप्त होने के पश्चात ज्ञात हुआ कि देश में आपातकाल लगा दिया गया है एवं तमाम विरोधी दलों के नेताओं को जेल में बंद किया गया है और सारी छुट्टियां आदि केंसिल हो गयी हैं| बढाई नहीं जायेंगी किसी भी हालत में |
                देश से तो इमरजेंसी हट गयी ...जाने कितना पानी बह गया देश की नदियों में तब से अब तक ...परन्तु हम पर आज भी इमरजेंसी लगी हुई है और हम खुश हैं जैसे पालतू तोता पिंजरे में सुख चैन से रहने का आदी होकर चहचहाता रहता है | यह रोटी ही तो महत्वपूर्ण है जीवन में जिसके हेतु व्यक्ति फंसा रहता है जीवन संसार रूपी पिंजरे में , हंसता गाता है , कर्म ,धर्म , ज्ञान रूपी साज पर नचाता-नाचता रहता है...मस्त -मगन |  यह इतना भी हम इसलिए लिख पारहे हैं कि श्रीमतीजी बिटिया के पास गयी हुई  हैं और हम गृह सुरक्षा का भार सम्भाल रहे  हैं|
                बहरहाल  हम तुरंत् ही ड्यूटी ज्वाइन करने निकल पड़े साथ में श्रीमती जी भी थीं |  कुछ समय बाद परिस्थित नर्म होजाने पर हमने हनीमून हेतु छुट्टी का प्रस्ताव रखा | हमारे इंचार्ज मंडल चिकित्सा अधिकारी( तब डी एम् ओ  ही मंडल का इंचार्ज होता था बाकी सभी चिकित्सक ए एम ओ )  व  डी एस ( तब रेल  मंडल का इंचार्ज का पद डी आर एम्  नहीं होता था अन्य मंडलीय  अफसर भी डी ओएस , डी सी एस आदि ही होते थे ) का कथन था कि छुट्टी कैसे मिलेगी |
                उन दिनों फेमिली प्लानिंग आपरेशन का काफी जोर पर था | हमारे डी एम् ओ साहब बोले  कि डा गुप्ता आप सर्जन तो हो ही अतः एसा करिए कि  मंडल के सभी अस्पतालों में वासेक्टोमी / ट्यूबेक्टोमी आदि आपरेशन के लिए आपरेशन थ्येटर, औज़ार आदि, सारी तैयारियां का निरीक्षण  परीक्षण व आवश्यकताओं का लेखा -जोखा तैयार करिए| दो -दो दिन सभी जगह लुधियाना  जालंधर, अमृतसर, पठानकोट,जम्मू ,,दौरा करिए ........फिर वहाँ से आगे .......देखा जाएगा ..| और हम चल दिए टूर पर सपत्नीक ...बहुत खुश ......|
जंगल कंस्ट्रक्शन साईट पर दवा वितरण टेंट 
जंगल शिविर -केम्प में चाय
                  अब प्रकृति का लेखा देखिये कि सर मुंडाते ही ओले पड़े | जुलाई का महीना और जम्मू ...हुआ यह कि पहाड़ों पर तेज बारिश से नदियों में बाढ़ आई और  जम्मू को शेष देश  से जोड़ने वाला  तवी नदी का रेलवे पुल बह गया और स्थानीय रेल प्रशासन द्वारा तीन दिन तक बार बार बनाया जाता रहा तथा बाकायदा हर बार नदी के केचमेंट एरिया में भयानक बारिश से बहा दिया जाता रहा ...... रेल की आपात स्थित में सारे देश से रेल कर्मियों अफसरों  व लेबर को भेजा गया, शीघ्रातिशीघ्र पुल स्थापित करना था | आखिर कार मिलिटरी की सहायता भी ली गयी |
सुषमा जी द्वारा साईट पर लेबर की हौसला अफजाई
साईट विजिट पर
साईट का विहंगम दृश्य -जंगल, पुल व ट्रेन, विशाल कलेवर की नदी

                    क्योंकि पुल का स्थान राज्य के साम्बा क्षेत्र में था जो कोबरा साँपों का क्षेत्र है ,अतः अस्थायी चिकित्सालय का प्रबंध किया गया और हमें पठानकोट में होने के कारण वहां भेज दिया गया ....फिर चल पड़ा तम्बू में  शिविर-आवास   एवं जम्मू रेलवे  स्टेशन पर निवास का क्रम ....  | लगभग आठ किलोमीटर के सर्प-प्रभावित क्षेत्र में चारों और सर्प -रोधी खाइयां आदि सुरक्षा के इंतजाम, कीटनाशक अदि सेनीटेशन प्रोग्राम, अस्थायी लेटरीन आदि ....| ऊपर से घनी वर्षा ...चारों और जल की बरसाती धाराएं ...लेबर , मशीन , पत्थर और  प्रतिदिन चोटग्रस्त कर्मचारी व रोगियों की समस्याएं ....आदि के मध्य लगभग दो  माह तक हमारा हनीमून चलता रहा | रक्षाबंधन पर भी छुट्टी  न मिलने के आसार होने पर श्रीमती जी को विवाहोपरांत अपने प्रथम रक्षाबंधन पर मायके की याद जोर से सताने लगी बस अश्रुधार की ही कमी रह गयी तो जैसे तैसे हम निर्माण -साईट के इंचार्ज जी एम् व अपने मंडल इंचार्ज से अनुनय-विनय के पश्चात मुक्त हुए |
             एसा जून का माह, वो तारीख व महीने देश भर को तो विस्मृत होते ही नहीं हैं  और हमें भी .....क्या कभी विस्मरण के योग्य हैं |
          

              

शनिवार, 29 जून 2013

कौन सी लट खुली शिव की जटाओं से....... डा श्याम गुप्त ...

                                        ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



      भारतीय रेल के फिरोजपुर मंडल में मेरे एक चिकित्सक साथी सहकर्मी डा.साहनी थे | काफी 

तेजतर्रार, खूब बोलने वाले, दुनियादारी में संलग्नमग्न | वे शायद अजमेर के किसी संस्थान में 

क्लेरिकल जॉब करते हुए मेडीकल में सिलेक्ट हुए एवं रेलचिकित्सा-सेवा में आये | अतः अधिक उम्र 

में विवाह हुआ क्योंकि वे सैटिल होकर ही एवं किसी चिकित्सक से ही शादी करना चाहते थे ताकि 

नर्सिंग होम खोला जा सके |


      विवाह के उपरांत वे छुट्टी लेकर हनीमून पर जम्मू-कश्मीर की ओर गए | शीघ्र ही जब मैं 

किसी दौरे आदि से कार्यवश जम्मू गया तो वे दम्पति हनीमून ट्रिप से लौट कर ऑफीसर रेस्ट 

हाउस में बगल के ही कमरे में ही ठहरे थे, मुलाक़ात हुई|
अमरनाथ ५०-६० साल पहले



|

     मैंने सहज ही पूछा,’ डाक्टर साहब हनीमून कैसा रहा ?

     वे अनायास ही बोल पड़े, यार ! बोर होगये, मज़ा नहीं आया|

     मैंने आश्चर्य से दोनों की ओर बारी-बारी से देखा फिर मुस्कुराते हुए पूछ लिया,’ हनीमून पर बोर, मज़ा नहीं आया, क्या मतलब ?

     दिन रात पानी बरसता रहा कहीं निकल ही नहीं पाए कमरे में ही बंद रहे |     

     मैंने हंसते हुए कहा,’ तो किस बेवकूफ ने जून के आख़िरी हफ़्तों में पहाड़ पर घूमने जाने को कहा था|’ 
जल प्रलय के बाद ( कितनी इमारतें अब भी हैं तो कितनी बनी होंगी पृथ्वी पर भार बढाने हेतु )
       मैं आज सोचता हूँ कि शायद वह बात अनायास ही नहीं थी| वास्तव में ही पहले हम लोग जून के आख़िरी सप्ताह से ही मानसून सीज़न मानकर पहाड़ों आदि पर जाना तो क्या घूमना ही स्थगित कर दिया करते थे, जैन व बौद्ध श्रमण आदि चातुर्मास भी तो इन्ही दिनों किसी मुख्य नगर के किसी एक भक्त के यहाँ करते हैं | तो केदारनाथ त्रासदी के समय १५-१६ जून को इतने लोग क्यों वहां थे | इतनी ऊंचाई पर ठेठ हिमालय के आँचल में, नवीन व अस्थिर पर्वत श्रृंखलाओं के शिखरों के मध्य | केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे आदि-स्थलों पर क्या आवागमन स्थगित नहीं किया जा सकता है | सभी जानते हैं कि इस वर्षा की ऋतु में, सावन में सभी नदियाँ बौराई हुई होती होंगी| शिव की जटाओं से मुक्त हो भागने हेतु | न जाने कब कौन सी, किधर की जटा खुल जाय और वही हो जो हुआ है |
        क्यों मनुष्य की लिप्सा का, बाज़ार-धंधे का, अर्थशास्त्रीय दृष्टि का नियमन नहीं होता | क्यों मनुष्य को तीर्थधामों में भी समस्त सुख-सुविधाएं चाहिए|  उत्तराखंड में जहां छोटी-छोटी झौपडियों, स्लेट पत्थर की छतों वाली बिल्डिंगें व बुग्यालों का सौन्दर्य हुआ करता था आज बहुमंजिले इमारतों का घर होता जा रहा है | पुराकाल में तो इन यात्राओं पर आने का अर्थ पुनः न लौट कर आने वाली पांडव-स्वर्गारोहण यात्रा का भाव हुआ करता था | सब कुछ स्थानीय समाज पर निर्भर था| न कोई ख़ास तैयारी, न प्रवंधन, सभी में धर्म-कर्म-सेवा का मूलभाव होता था | अर्थशास्त्र के फैलाव ने यह सब कुछ बदल दिया है | यह भौतिक प्रगति तो है पर गति नहीं है जीवन की... सहज, सरल, शनै:-शनै: प्रवहमान स्वयमेव गति | 




 

सोमवार, 24 जून 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ...आठ ..मुक्तक ..सुमन -१ व ७ ....डा श्याम गुप्त

                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ... 
              
                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव अरपन .आठ ....मुक्तक ....सुमन -१ व१ ७  .....
 
 
     मुक्तक -सुमन १...

'जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोई '
दुरदसा लखि भजन की मीरा बहुत रोई |
मूढ़ मैं जानी न सत्ता होगी मोर-मुकुट कभी-
कहें  सत्ताधारी कों सब, मेरो पति सोई ||
 
मुक्तक--सुमन -६
 
दुःख कों जीतन कौ है याही एक उपाय ,
कै कबहुं कबहुं दुःख हूँ सिर ओढ़ो जाय |
दरद जीतिबे कौ है सचमुच याही मंतर,
कै दरद दिवानौ बनिकें जीयौ जाय ||


कहूँ कैसे सखी मोहे लाज लागै रे........डा श्याम गुप्त

                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

२३जून को हज़रत अमीर खुसरो के अवधी गीतों का सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ ...तब हमें ज्ञात हुआ कि खुसरो  ने  अवधी  में भी कुछ लिखा है ...हमें बडी कोफ़्त हुई अपनी अज्ञानता पर ...हम तो अब तक यही समझते थे कि खुसरो ने फारसी में लिखा है ....इसके अलावा उनकी रचनाएँ .हिन्दवी अर्थात ब्रज भाषा व खडी बोली में हैं | वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जन्मे व रहे या दिल्ली में ....बहुत ही कम समय वे  लखनऊ व पूर्वी भारत में रहे परन्तु वह उन्हें रास नहीं  आया अतः शीघ्र ही दिल्ली चले गए ..... किसी ने यह अवश्य लिखा है कि........अब तक अमीर खुसरो की भाषा में बृज व खड़ी (दहलवी) के अतिरिक्त पंजाबी, बंगला और अवधी की भी चाश्नी आ गई थी।   अमीर खुसरो की इस भाषा से हिन्दी के भावी व्यापक स्वरुप का आधार तैयार हुआ जिसकी सशक्त नींव पर आज की परिनिष्ठित हिन्दी खड़ी है। | मुझे तो उनकी ये गायन पर प्रस्तुत की हुई रचनाएँ.... कहूं कैसे सखी मोहे लाज लागै रे....मंढा छवाओ रे .....अंबुवा तले डोला रखदे ...अरे हाँ हाँ मोरे बावुल ....
 अवधी की नहीं लगतीं अपितु ब्रज अथवा खडी बोली की लगती हैं....  वैसे भी उनकी प्रसिद्द रचनाओं में इन रचनाओं के या अन्य अवधी रचनाओं के  कहीं उद्दरण नहीं मिलते ....

पद
 छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम बटी का मदवा पिलाइके
मतवाली कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा
अपनी सी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
खुसरो निजाम के बल बल जाए
मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके

गीत
बहुत कठिन है डगर पनघट की।
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निजाम पिया।
पनिया भरन को मैं जो गई थी
छीन-झपट मोरी मटकी पटकी

कह मुकरी
नंगे पाँव फिरन नहीं देत। पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत॥
पाँव का चूमा लेत निपूता। ऐ सखि साजन? ना सखि जूता॥

दोहा
 खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,
जो उबरो सो डूब गया, जो डूबा हुवा पार।

सेज वो सूनी देख के रोवुँ मैं दिन रैन,
पिया पिया मैं करत हूँ पहरों, पल भर सुख ना चैन।

उज्ज्वल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
 देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

होली
दैया री मोहे भिजोया री
शाह निजाम के रंग में
कपडे रंग के कुछ न होत है,
या रंग मैंने मन को डुबोया री
दैया री मोहे भिजोया री

पहेलियाँ
एक थाल मोती से भरा
सबके सर पर औंधा धरा
चारों ओर वह थाली फिरे
मोती उससे एक न गिरे।--( आकाश )


राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टांटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा


शनिवार, 22 जून 2013

केदार नाथ त्रासदी ..डा श्याम गुप्त.....

                                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                       
           हमें व हमारे मीडिया को अपने देश एवं देश की हर व्यवस्था में कमी देखने की आदत सी होगई है | पढ़े लिखे जन भी प्रायः अन्य अमेरिका आदि जैसे देशों से तुलना करके अपने देश की कमी निकालते रहते हैं| अब इतने बड़े देश में प्रत्येक प्रवंधन में समय तो लगता ही है, कमियां भी रहेंगी ही परन्तु उन्हें गुणात्मक सोच से देखा जाना चाहिए |

          अभी हाल में ही अमेरिका में आयी एक बाढ़ में आपदा प्रबंधन द्वारा पूरी ताकत झोंक दी गयी थी और सिर्फ तीन लोगों को बचाने में सफलता की कहानी उनके मीडिया पर बार बार दिखाई जाती रही ..भारतीय मीडिया ने भी उनके इस तथाकथित शाबासी वाले कार्य की बार बार रिपोर्टिंग की गोया कोई बहुत बड़ा कार्य किया जा रहा हो ...परन्तु अपने यहाँ की इतनी बड़ी त्रासदी की आपदा प्रबंधन में सफलताओं की कहानियीं की कथाओं में भी कमियाँ ही कमियाँ प्रदर्शित की जाती रहीं हैं | यदि सेना ने कार्य संभाला हुआ है तो प्रदेश सरकार ने क्या किया, स्थानीय प्रशासन ने क्या किया, केंद्र क्या कर रहा है ...जैसी व्यर्थ की आलोचनाओं का मुख खुला हुआ है बजाय इसके कि इतने बड़े हादसे को अच्छी प्रकार संभालने के प्रयत्नों की प्रशंसा की जाती | सेना भी तो राज्य  सरकार व प्रशासन के तालमेल से ही कार्य करती है |

         हम कब स्वयं पर विश्वास करना सीखेंगे|
 

शुक्रवार, 21 जून 2013

दोहे.. चित्र-विचित्र ... डा श्याम गुप्त......

                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


        

माँ तेरे ही चित्र पर, नित प्रति पुष्प चढ़ायं, 
मिसरी सी वाणी मिले, मंत्री पद पा जायं | 

जबसे कुर्सी मिल गयी, मुखर बैन गए होय,
विक्रम टीले पर चढ़ा, ग्वाला विक्रम होय |

चाहे करौ प्रशंसा, करो प्रेम संवाद ,
पर पानी की बालटी भरना मेरे बाद |

झूठेहि  पब्लिक मांग कहि, फोटो नग्न खिचायं ,
बोल्ड  सीन देती रहें,  हीरोइन बन  जायं |

तेल पाउडर बेचते, झूठ बोल इठलायं,
बड़े महानायक बने, मिलें लोग हरषायं |

खींच-तान की ज़िंदगी वे धनहीन बितायं,
खींच-तान की ज़िन्दगी, वे धन हेतु बितायं |

इक दूजे को लूटते, लूट मची चहुँ और,
चोर सभी, समझें सभी, इक दूजे को चोर |

धन साधन की रेल में, भीड़ खचाखच जाय,
धक्का-मुक्की धन करे, ज्ञान कहाँ चढ़ पाय |

निज को मेल-मिलाप के, लम्बरदार बतायं,
असली पय घृत खाद्य का, नक़ल से मेल करायं  |

अपनी लाज लुटा रही, द्रुपुद-सुता बाज़ार,
इन चीरों का क्या करूं, कृष्ण खड़े लाचार |

ईश्वर अल्लाह कब मिले हमें झगड़ते यार,
फिर मानव क्यों व्यर्थ ही,करता है तकरार ||


   

बुधवार, 19 जून 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ..सात ..ब्रज भाषा -गज़लें ..सुमन -२ ..काम करेंगे ....

                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...  
              
                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..सात ..ब्रज भाषा -गज़लें ..सुमन -२ ..काम करेंगे  ..
बड़े शौक ते आये यहाँ कछु काम करेंगे,
सेवा करेंगे देश की कछु नाम करेंगे |
गंदी बहुरि है राजनीति  या देश की ,
कछु साफ़ सुघरि करेंगे जब काम करेंगे |
काजर की कोठरी है जानत थे हमहू खूब,
इक लीक तौ लगैगी पर नाम करेंगे |
 
बेरिन  ते अपने हम तौ थे खूब हुशियार ,
जानौ न कबहूँ अपुने ही बदनाम करेंगे |
वो संग हूँ चले नहीं अरु खींच लये पाँव,
था भरोसौ कै साथ कदम ताल करेंगे |
सच की ही गैल चलत रहे हम तौ उमरि  भर,
बदलें  जो गैल अब , का नयौ काम करेंगे |
हर डारि पै या ब्रक्ष की उलूकन  के घर बसे,
बदलेंगे ठांव अब का नया धाम करेंगे |
बैठे हैं गिद्ध चील कौवा हर डारि पै,
कूकर हैं भासन देत, गधे गान करेंगे ||