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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति...... सिद्धांत , विश्वास एवं नियम...तथा नायक-पूजा ( हीरो वर्शिप )...डा श्याम गुप्त

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                   

                          ..प्रायः यह कहा जाता है कि भारतीय -जनमानस  धार्मिक व दार्शनिक विचार-तत्वों पर नायक-पूजा में , उनके पीछे चलने में अधिक विश्वास रखते हैं| इसीलिये भारतीय तेजी से प्रगति नहीं कर पारहे हैं |  प्रायः पारंपरिक ज्ञान व शिक्षा में विश्वास न रखने वाले अधुना-विद्वान् भी यह कहते पाए गए हैं कि हमें कुछ ऐसा तरीका, तंत्र या शैली विक्सित करना चाहिए जो सिद्धांतों, विश्वासों एवं नियमों पर आधारित नहीं हो |
                          इस के परिप्रेक्ष्य में फिर यह भी कहा जा सकता है कि तो फिर किसी को  इन विद्वानों के कथन पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए | वस्तुतः जब तक हमारे अंतर में  पहले से ही मौजूद पारंपरिक ज्ञान, विश्वास, विचारों व सिद्धांतों के प्रति  श्रृद्धा व विश्वास नहीं होते एवं  हम उनको पूर्णरूपेण एवं गहराई से जानने एवं समझने योग्य नहीं होपाते | तो हम उन्हें उचित यथातथ्य रूप से विश्लेषित करके वर्त्तमान देश-कालानुसार एवं अपने स्वयं के विचारों और नवीन प्रगतिशील विचारों के अनुरूप नहीं  बना सकते ; जो संस्कृति व सभ्यता की प्रगति हेतु आवश्यक होता है ....
                                   "जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ|
                                    हों बौरी  डूबन  डरी,  रही किनारे  बैठ  |"
अतः क्या आवश्यक है ......
१. स्वयं अपने ही विचारों पर चलकर अति-तीब्रता से प्रगति हेतु अनजान -अज्ञानान्धकार में प्रवेश करके पुनः पुनः हिट एंड ट्रायल के आधार पर चलें .....अथवा ..
२. पहले से ही उपस्थित अनुभवी, ज्ञानी पुरखों के सही  व उचित धार्मिक व सांस्कृतिक ज्ञान के मार्ग पर..(. जो समय से परिपक्व एवं इतने समय से जीवन संघर्ष में बने हुए होने से स्वयं-सिद्ध हैं).... शनैः-शनैः स्थिर  परन्तु उचित गति से प्रगति के पथ पर चलना ..
                                                                 हमें सोचना होगा.....