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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

बैठे ठाले... आलेख- ...डा श्याम गुप्त....

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                                                                            बैठे ठाले...
                                                       

                 भला बताइये शून्य क्या है ? आप छूटते ही कहेंगे कि, अजी ये क्या बात हुई !.... शून्य एक अंक है जो '' से प्रकट किया जाता है.... जिसका अर्थ है - कुछ नहीं, कोई नहीं, रिक्त स्थान आदि | पर हुज़ूर ! आप यह न समझें कि शून्य एक निरर्थक राशि है या कोई राशि ही नहीं है |   साहिबान! यह अंक, शब्द या जो भी है,... है अत्यंत महत्वपूर्ण व महान | क्या कहा ? क्यों तो लीजिये आपने किसी को १०००० रु दिए और लिखे -
 '१०००/- दिए ' ...... अरे ! आप परेशान क्यों हैं ? क्या कहा ? ९००० रु ही रफूचक्कर होगये ! अब रोइए उस महान  शून्य को सिर पकड़ कर |


              इसे  बिंदी  भी कहा जाता है | अब बिंदी की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह न लगाइए वरना समझ लीजिये बस श्रीमतीजी ....... और कहीं महिला संगठनों को पता चल गया आपकी इस विचार धारा का तो बस ...बेलन-थाली-चिमटा, धरना -प्रदर्शन ..और आप पर महिला-विरोधी होने का.....| अरे तभी तो अपने बिहारी जी भी बहक गए --
                 
"कहत सबै बेंदी दिए, आंकु दस गुनों होत |
                  
तिय लिलार बेंदी दिये, अगणित बढ़त उदोत ||"


                 और याद है वह हिन्दी की बिंदी का कमाल जब स्कूल में इमला सत्र में  -" इत्र बेचने वाले को गंधी कहते हैं "..से बिंदी गायब कर देने पर ....मास्टर जी के .झापड़ ही झापड़ ..|


                 र इस शून्य का अर्थ कुछ नहीं और महत्त्व बहुत कुछ है...इस विरोधाभास से न तो हम ही संतुष्ट होंगे, न आप ही | इसका अर्थ कुछ और भी है | यदि न जानते हों तो बताये देते हैं कि हिन्दी के प्रश्न- पत्र  में शून्य का अर्थ सिर्फ कुछ नहीं, कोई  नहीं न लिख दीजिएगा, नहीं तो निश्चिन्त रहिये, शून्य ही नसीब होगा | अब जरा आकाश के पर्यायवाची तो दोहराइए...समझ गए न|  अरे  तभी तो कबीर जी  भी  रहस्य की बात कह गए---

                                                   " सुन्न भवन  में अनहद बाजे,

                                                     जग का साहिब रहता है ||  "


               प्रिय पाठक ! परन्तु इस '0' चिन्ह वाले शून्य को शून्य ही  क्यों कहते हैं | सोचिये | क्योंकि शून्य को आकाश भी कहते हैं और आकाश  है भी शून्य -निर्वात, सुन्न भवन | वह गोल भी है और अनंत भीजैसे शून्य भी गोल है और अनंत भी | इसकी परिधि पर चक्कर लगाने वाले को छोर कहाँ मिलता है | जैसे क्षितिज की और दौडने वाले को क्षितिज नहीं मिलता


             आखिर अपने पूछ ही  लियाशून्य का आविष्कारक कौन है | जितने मुंह उतनी बातें, बात से बात निकालने में क्या जाता है परन्तु शून्य का अविष्कार एक भारतीय मनीषा द्वारा ही हुआ|  इससे पूर्व विश्व-गणना सिर्फ ९ तक ही सीमित थी |


             महर्षि गृत्समद  द्वारा   इस असीम शून्य के आविष्कार के पश्चात् ही गणित व भौतिकी अस्तित्व में आये | ससीम मानव की मेधा असीम की और बढ़ी | सभ्यता को आगे चढ़ने का सोपान प्राप्त हुआ | संसार गणित पर आधारित है और गणित शून्य पर | मानव की ज्ञान व प्रकृति नियमन के चरमोत्कर्ष  की युग-गाथा  कम्प्युटर-विज्ञान भी तो शून्य आधारित सिद्धांत की भाषा-भूमि पर टिका हैजिसके कारण आज मानव स्वयं सोचने वाले रोबोट-यंत्र-मानव बनाकर मानव के सृष्टा होने का सुस्वप्न देखकर ईश्वरत्व के निकट पहुँचने को प्रयास-रत है | और......खैर छोडिये भी....कहाँ आगये ....  " आये थे हर भजन को ओटन लगे कपास " |


                      हाँ तो आपने शून्य का अर्थ और महत्त्व समझ लिया | परन्तु श्रीमान ! यदि आप शिक्षार्थी, विद्यार्थी, परीक्षार्थी हैं तो शून्य के महत्त्व को कुछ अधिक ही अधिग्रहण करके परीक्षा में भी शून्य ही लाने  का  यत्न न करें, अन्यथा फिर एक वर्ष तक शून्य का सर पकड़ कर रोइयेगा |



                      चलिए अब तो अप शून्य का अर्थ समझ ही गए | क्या कहा ! अब भी नहीं समझे ? तो शून्य की भाँति शून्य के चक्कर लगाते रहिये, कभी तो समझ ही जायेंगे ---
                       
"लगा रह दर किनारे पर, कभी तो लहर आयेगी "
 
                       शायद अब तो आप समझ ही गए की शून्य क्या है | यदि अब भी न समझे तो हम क्या करें, आपका मष्तिष्क ही शून्य है और आपकी अक्ल भी शून्य में घास चरने चली गयी है | आपका वर्तमान व भविष्य भी शून्य का भूत ही है | हम तो उस कहावत को सोच के डर रहे हैं कि...    " खाली दिमाग शैतान का घर होता है |"