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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 27 नवंबर 2013

डा श्याम गुप्त के .....कतए व शेर .....

                                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

डा श्याम गुप्त के .....कतए व शेर .....

                                  
कते....
एक ही शेर में कहन पूरी नहीं कर पाता है | 
शायर कहन को दो शेरों  में सजाता है |
दो शेरों  की इक मुक्त-ग़ज़ल होती है -
शायरों द्वारा श्याम' कतआ कहा जाता है |


बहर से वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार   होती है |

कहने का अंदाज़ जुदा हो, बहरे बहार होती है |

गज़ल तो इक अंदाज़े बयाँ है दोस्त,

श्याम तो जो कहदें, गज़ले-बहार होती है |


मर मर के कभी प्यार निभाया नहीं जाता,
पहले यकीं, फिर प्यार, जताया नहीं जाता |
ख़ुश-ख़ुश निभाया जो प्यार ही क्या है
शर्तों से प्यार को यूं  सताया नहीं जाता |


कहते हैं कि खुदा कहीं नहीं है ,
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है |
मैंने कहा ज़र्रे ज़र्रे में है काविज -
बस खोजने में ही कमी कहीं है |


बहर से वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार होती है |****
छंद-गणों के गणन से कविता बहार होतीहै|
काव्य तो इक दिलो -जां -अंदाज़ है दोस्त ...
भावों में बहकर गाया जाए, गुले -गुलज़ार होती है|


तेरे नयनों से दोस्त आज कुछ ऐसी हँसी छलके,

कि मदिरा जाम से जैसे खुदाई इश्क की छलके |

हसीं चहरे पे हम देखें हँसी वेज़ार थे कब से-

दुआ है श्याम की ताजिन्दगी ही ये हँसी छलके||


दिल के ज़ज्वात दिले-जानां के लिए होते हैं |
कुछ भी कहिये लिखिए समां-सुहाना होते हैं |
कलाम-ऐ-ज़माँ के कुछ नियम होते हैं श्याम –
उन पर चलते हैं तो अशआर सुहाने होते हैं|


शेर...

शे' है मुक्त-छंद है एकल कलाम है,    
इक  कहन हैख्याल है  पयाम है |

यकीं होता है तभी ये दिल मगरूर होता है,
उसकी आमद बिना दिल कहीं संतूर होता है |

एक ही वज़ह होती है जब बेवज़ह हंसते-रोते हैं
हम उनकी यादों को जब तनहाइयों में संजोते हैं |

रत्न यादों के चुनने को किनारे क्यों लपेटे हैं |

डूब के जानिये इसमें लहर चुनने क्यों बैठे हैं |

तवे की गर्म रोटी की सेंक तो अब भी है 
 बस मयस्सर ही नहीं दौड़ते इंसान को...
  
ये ग़ज़ल कितनी प्यारी है |
गोया ज़िंदगी ने संवारी है |

ज़िंदगी एक ग़ज़ल है,तरन्नुम में जिया जाए |**
हो साकी तो बिन पैमाना हे पिया जाए |
किसी भी छंद में फिट बैठता नहीं है ,
बस ख़ास छंद की खासियत यही है |

 राहे शौक में कदम शौक से उठा तो श्याम
मंजिल ढूंढेगी क्यों उनको जो चले ही नहीं  |

 बात मिलने-मिलाने की मत छेडिये, अब छोडिये
हम खुश है ख्वाबो-ख़्वाब में यह भ्रम न तोडिये ||