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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 21 मार्च 2015

नव वर्ष में माँ का आवाहन--डा श्याम गुप्त

                                


          
माँ का आवाहन

परम-शक्ति माँ से बढकर तो, तीन लोक में कुछ भी नहीं,
अतुलनीय माँ महिमा तेरी, वर्णन की मेरी शक्ति नहीं 

परम-ब्रह्म के साथ युक्त हो, सृष्टि की रचना करती हो, 
रक्षक, पालक तुम हो जग की, जग को धारण करती हो।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश माँ तेरी इच्छा से तन धारण करते,
महा-शक्ति तेरी स्तुति की, जग में क्षमता-शक्ति नहीं।
                                 ----परम शक्ति मां……..
तुच्छ बुद्धि तुझ पराशक्ति के ओर-छोर को क्या जाने,
ममतामयी रूप तेरा ही,  माता वह तो  पहचाने ।

तेरे नव-रूपों के भावों पर,  अगाध श्रद्धा से भर ,
करें अनुसरण और कीर्तन, इससे बढकर भक्ति नहीं ।
                                 -----परम शक्ति मां……
माँ आगमन करो इस घर में, हम पूजन, गुण-गान करें,
धूप, दीप, नैवैध्य समर्पण कर, तेरा  आह्वान  करें ।

इन नवरात्रों में माँ आकर, हम सबका कल्याण करो,
धरें शीश तेरे चरणों पर, इससे बढकर मुक्ति नहीं ॥
                                ----परम शक्ति मां……
    
         -रचयिता...डा. श्याम गुप्त, सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ   
                              


नव संवत्सर ----डा श्याम गुप्त ..

 
                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


सृष्टि रचयिता ने किया, सृष्टि सृजन प्रारम्भ |
चैत्र  शुक्ल  प्रतिपदा से, संवत्सर  आरम्भ ||

ऋतु बसंत  मदमा रही, पीताम्बर को ओढ़ |
हरियाली  साड़ी पहनधरती हुई विभोर  |

स्वर्ण थाल सा नव, प्रथम, सूर्योदय मन भाय |
धवल  चांदनी  चैत की, चांदी सी बिखराय |

फूलै फले नयी फसल, नवल अन्न  सरसाय |
सनातनी  नव-वर्ष  यह, प्रकृति-नटी हरषाय |

गुड़ीपडवा, उगादीचेटीचंड, चित्रेय |
विशु बैसाखी प्रतिपदा,संवत्सर नवरेह |

शुभ शुचि सुन्दर सुखद ऋतु, आता यह शुभ वर्ष |
धूम -धाम  से  मनाएं भारतीय  नव-वर्ष  |

पाश्चात्य  नववर्ष  को, सब त्यागें श्रीमान |
भारतीय  नववर्ष  हित, अब छेड़ें अभियान ||