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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 21 जुलाई 2016

सत्य शुचि आचरण जरूरी है .....जीवन दृष्टि ..से ..डा श्याम गुप्त ..

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..


                              आजकल धर्म व सेवा कार्यों की बाढ़ सी आगई है, कोइ एक लाख पेड़ लगवाता है, कोइ पशुओं की संवेदना-सुरक्षा, कोइ जल-वायु, पर्यावरण की चिंता, कोइ भ्रष्टाचार पर भाषण, कोइ धार्मिक श्रृद्धा जागरण, कोइ देश-जाति सम्मान पर विचार-सेवाएं देने को आतुर-तत्पर है |
                            परन्तु मेरे विचार में ये सब कृतित्व पत्तियों, फल-फूल , शाखाओं आदि पर जल छिड़कने के समान हैं | मानव समाज व जीवन का मूल -मानव आचरण में है, जब तक मानव मात्र का आचरण संवर्धन नहीं होगा कोई भी कार्य सम्पूर्ण नहीं होसकता, संसार के द्वंद्व कम  नहीं होंगे  |
                         ठीक है पत्तियों शाखाओं आदि पर संवर्धन-छिडकाव आदि भी आवश्यक है | परन्तु मानव आचरण सुधार की बात मूल अत्यावश्यक तत्व है | इसके सुधरते ही सब कुछ ठीक होने लगता है .....प्रस्तुत है एक रचना ----

    सत्य शुचि आचरण जरूरी है .....

न कोई नीति नियम, न कोई रीति धरम,
न कोई योग करम शास्त्र ही जरूरी है |
न कीर्तन न भजन, न ज्ञान का प्रवचन,
न कोई तीर्थ न दान-पुण्य जरूरी है |

बात हो अनय-अनीति के समापन की |
या कि सद्नीति- नय के स्थापन की |
एक ही नीति-नियम सर्वदा सनातन है |
सत्य शुचि आचरण मनुज का जरूरी है |

बात चाहे हो दहेज़ के संचारण की |
बात पत्नी के हो दाह की, प्रतारण की |
बात हो चाल-चलन की, अशुभ विचारण की |
सत्य शुचि आचरण मनुज का जरूरी है |

भ्रष्ट आचरण आचार व तन मन से हुए |
भूलकर देश धरम, लिप्त निज स्वार्थ हुए |
कैसे भर पायं स्वयं खोदे हुए अंधे कुए |
सत्य शुचि आचरण मनुज का जरूरी है |

संस्थाएं, नीति-नियम,शास्त्र व समाज सभी ,
जड़, निर्जीव व अविचारी हुआ करते हैं |
जीव, मानव ही तो सोच समझ पाता है ,
सत्य शुचि आचरण मनुज का जरूरी है ||

 

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