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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

वह यहीं है---डा श्याम गुप्त ----

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



वह यहीं है ...ग़ज़ल...


वो कहते हैं कि ईश्वर कहीं नहीं है |
मैं कहता हूँ खोजने में कमी कहीं है |

उनका कहना है, वह बस कल्पना ही है,
है हर कहीं, जग उसकी अल्पना ही है |

उसने कहा किसी ने पाया भला कभी,
मैंने कहा, है, तू ढूंढ पाया नहीं है |

जग की गज़ब कारीगरी क्यों देखता नहीं,
जिसकी है बाजीगरी, बस वह वही है |

सदियों से ज्ञानी, विज्ञजन, तत्वज्ञ, साधु-संत,
क्यों खोज में लगे हैं, उसकी, जो नहीं है |

तत्वों के अंतर में, तारों के पार भी,
जो खोजते साइंसदां, क्या वही नहीं है |

मन में यदि बसाए, परमार्थ प्रीति -भाषा,
स्वारथ को भूलकर, तू देख, तू वही है |

तू ढूँढता फिरे है, जाने कहाँ कहाँ,
बस ढूंढ श्याम' दिल में,वह यहीं है यहीं है ||


पद---

मैं तो खोजि खोजि कें हारो |
ब्रह्म हू जान्यो, पुरानन खोजो, गीता बचन उचारो |
ज्ञान वार्ता, धरम-करम औ भक्ति-प्रीति मन धारो |
कथा रमायन, वेद-उपनिषद् ढूँढो अग-जग सारो |
पोथी पढ़ि पढ़ि भजन -कीरतन रत अति भयो सुखारो |
किधों रहै कित उठै औ बैठे कौन सो ठांव तिहारो |
कबहुं न काहू कतहु न पायो प्रभु का रूप संवारो |
थकि हारो अति आरत , राधे राधे नाम पुकारो |
कुञ्ज-कुटीर में लुकौ राधिका पाँव पलोटतु प्यारो |
सो लीला छवि निरखि श्याम' तन मन अति भयो सुखारो ||



 

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